जम्मू-कश्मीर में चुनावों के लिए उत्साह

जम्मू-कश्मीर में चुनावों की घोषणा के बाद कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे तथा लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी का जम्मू-कश्मीर का दौरा कई पक्षों से महत्त्वपूर्ण कहा जा सकता है। जम्मू-कश्मीर अब केन्द्र शासित प्रदेश है। पिछले 10 वर्ष से इस क्षेत्र में चुनाव नहीं हुए, क्योंकि 5 वर्ष पहले केन्द्र में भाजपा सरकार द्वारा इसे विशेष राज्य का दर्जा देने वाली धारा 370 को संसद के माध्यम से खत्म कर दिया गया था। उस समय जम्मू-कश्मीर एवं लद्दाख को दो अलग-अलग केन्द्र शासित प्रदेशों में बदल दिया गया था। अब 5 वर्ष तक चले राष्ट्रपति शासन के बाद चुनावों की हुई घोषणा का जहां आम तौर पर स्वागत किया गया है, वहीं इस बात की सम्भावना भी बन गई है कि शीघ्र ही इसे सम्पूर्ण राज्य का दर्जा भी दे दिया जाएगा। केन्द्रीय चुनाव आयोग की ओर से हरियाणा तथा जम्मू-कश्मीर दोनों राज्यों के चुनावों की विगत दिवस  घोषणा की गई थी। हरियाणा के चुनाव एक चरण में ही करवा लिये जाएंगे। जम्मू-कश्मीर के हालात को देखते हुए ये चुनाव तीन चरणों में करवाए जाएंगे। 18 सितम्बर को पहला चरण, 25 सितम्बर को दूसरा चरण तथा एक अक्तूबर को तीसरे चरण के चुनाव होंगे। 
नि:संदेह कुछ वर्ष पहले आतंकवाद तथा पाकिस्तान की ओर से घुसपैठ से यहां के हालात बेहद खराब हो गए थे, परन्तु अब उनमें काफी सीमा तक सुधार हुआ है। इसकी एक उदाहरण इस गर्मी के मौसम में लाखों ही पर्यटकों का इस क्षेत्र में पहुंचना था। इसके साथ ही अमरनाथ की यात्रा में भी भारी संख्या में श्रद्धालुओं ने भाग लिया था, परन्तु इसके बावजूद पाकिस्तान की ओर से लगातार दिखाई जा रही हठधर्मिता के कारण पिछले कुछ सप्ताह में जम्मू क्षेत्र में आतंकवादी गतिविधियों में भी कुछ वृद्धि हुई थी, जिनमें दर्जनों ही आतंकवादी मारे गये तथा सुरक्षा बलों के अधिकारी तथा जवान भी शहीद हुए परन्तु इसके बावजूद यहां चुनाव आयोग की ओर से चुनाव करवाने की घोषणा जहां भारत की लोकतंत्र में दृढ़ता को प्रकट करती है, वहीं यह घोषणा इस क्षेत्र के लोगों के लिए भी नई उम्मीद जगाने वाला सन्देश है। इसमें अब किसी तरह का कोई सन्देह नहीं रहा कि जम्मू-कश्मीर देश का अभिन्न भाग है। 5 वर्ष पहले मोदी सरकार द्वारा दिखाई गई दृढ़ता तथा स्पष्ट सोच के दृष्टिगत धारा 370 को खत्म करने की घोषणा भी देश के लोगों को राहत पहुंचाने वाली कही जाएगी।
अब चुनावों की घोषणा के बाद यहां भी राजनीतिक गतिविधियों ने तेज़ी पकड़नी शुरू कर दी है। इसी क्रम में कांग्रेसी नेताओं के दौरे को लिया जा सकता है। कांग्रेस एवं कुछ अन्य पार्टियों के यत्नों के चलते पिछले लोकसभा चुनावों से पहले देश भर की दो दर्जन से अधिक पार्टियों ने आपसी बातचीत से ‘इंडिया’ नामक गठबंधन बनाने की घोषणा की थी ताकि भाजपा तथा प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की बढ़ती हुई शक्ति को नकेल डाली जा सके और आपसी सहयोग से चुनाव लड़े जाएं। चाहे उस समय यह गठबंधन पूरी तरह सफल नहीं हुआ परन्तु आपसी सहयोग तथा कुछ पार्टियों की इस गठबंधन संबंधी प्रतिबद्धता के कारण लोकसभा चुनावों में इस गठबंधन को संयुक्त रूप में जहां अधिक सीटें मिली थीं, वहीं उनके राजनीतिक विश्वास में भी वृद्धि हुई है। इस वर्ष कुछ राज्यों में होने जा रहे चुनावों में भी कांग्रेस ने कुछ पार्टियों के साथ मिल कर इस गठबंधन के तहत चुनाव लड़ने की योजना बनाई है। इससे उन्हें इस बार भी भारी समर्थन मिलने की उम्मीद है। 
जम्मू-कश्मीर में बदले नये राजनीतिक हालात में वहां हो रहे चुनाव विशेष रूप से महत्त्वपूर्ण बने दिखाई देते हैं। चाहे इस क्षेत्र में पाकिस्तान की बदनीयत के कारण हालात तो कभी भी अच्छे नहीं रहे परन्तु यहां के लोगों ने हर किस्म के चुनावों में उत्साह ज़रूर दिखाया है। यह हालात की विवशता ही कही जा सकती है कि यहां कभी भी मज़बूत प्रशासन नहीं बना। समय-समय पर राजनीतिक पार्टियों द्वारा सत्ता प्राप्ति के लिए बनाये आपसी गठबंधन भी ज्यादा सफल सिद्ध नहीं हुए। वर्ष 1975 में फारूक अब्दुल्ला के पिता शेख अब्दुल्ला के नेतृत्व वाली नैशनल कान्फ्रैंस ने तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस से समझौता करके सरकार बनाई थी, जो सिर्फ दो वर्ष तक ही चल सकी थी। इसी तरह कांग्रेस ने फारूक अब्दुल्ला के करीबी रिश्तेदार ़गुलाम अहमद शाह की मुख्यमंत्री बनने में सहायता की थी, जबकि उस समय फारूक अब्दुल्ला के नेतृत्व वाली पार्टी नैशनल कान्फ्रैंस को बहुमत मिला था। ़गुलाम अहमद शाह की यह सरकार भी अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर सकी थी।
इसी तरह महबूबा मुफ्ती के नेतृत्व वाली पीपुल्स डैमोक्रेटिक पार्टी ने वर्ष 2002 में कांग्रेस के साथ मिल कर सरकार बनाई थी। वह भी पूरा समय शासन नहीं कर सकी थी। वर्ष 2015 में सैद्धांतिक दूरियों के बावजूद समय की वास्तविकता के दृष्टिगत पीपुल्स डैमोक्रेटिक पार्टी तथा भाजपा ने संयुक्त सरकार बनाई थी, वह भी अधर में ही दम तोड़ गई थी। इस क्षेत्र के राजनीतिक हालात अभी भी स्थिर नहीं कहे जा सकते परन्तु चुनावों की घोषणा ने यहां की राजनीतिक गतिविधियों को पूरी तरह गर्मा दिया है। इससे यह उम्मीद की जा रही है कि आगामी समय में ये गतिविधियां क्षेत्र में स्थिरता वाला माहौल बनाने में सहायक हो सकेंगी।

—बरजिन्दर सिंह हमदर्द