न्यायालय की टिप्पणियों का प्रभाव

विगत दिवस सुप्रीम कोर्ट में दायर की गई एक याचिका के संबंध में न्यायालय की ओर से की गई टिप्पणी से राजनीतिक गलियारों में एक तीव्र बहस छिड़ गई है। इस याचिका संबंधी फैसला अभी होना शेष है परन्तु अदालत ने अपनी टिप्पणी में कहा है कि ‘कोई आरोपी है तो सिर्फ इस आधार पर ही उसका घर कैसे गिराया जा सकता है? यदि दोषी भी है, तो भी उसका घर नहीं गिराया जा सकता।’ सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा है कि वह सड़कों पर अवैध निर्माणों का समर्थन नहीं करते, परन्तु सम्पत्ति को गिराने की प्रक्रिया कानून के अनुसार होनी चाहिए। सुप्रीम कोर्ट की यह टिप्पणी प्रशासनिक स्तर पर एक दिशा निर्देश ज़रूर देती है। पिछले कुछ वर्षों से कई राज्यों में प्रदेश सरकारों की ओर से कई आरोपियों के घरों को बुल्डोज़रों से गिराये जाने के समाचार एवं तस्वीरें सामने आती रहती हैं, जो प्रशासनिक धक्केशाही का प्रतीक बनी दिखाई देती हैं। यह रुझान बढ़ता ही जा रहा है। जिस पर उच्च अदालत की इस टिप्पणी ने अंकुश लगाने का बड़ा कार्य किया है।
एक रिपोर्ट के अनुसार देश में अप्रैल, 2022 से जून, 2023 के बीच दिल्ली, असम, गुजरात, मध्य प्रदेश एवं उत्तर प्रदेश में फैली साम्प्रदायिक हिंसा के बाद सवा सौ से अधिक सम्पत्तियों को बुल्डोज़रों से गिरा दिया गया था। कई राज्यों में बड़े-छोटे अन्य आरोपियों के घरों का भी इसी ही तरह नुक्सान किया गया था। संबंधित याचिका में ऐसी कार्रवाइयों के जायज़ होने पर सवाल उठाया गया है। बड़े अपराध करने वाले आरोपियों के घरों के अतिरिक्त साम्प्रदायिक दंगों के बाद गिराये गये ज्यादातर घर अल्प-संख्यक समुदाय से ही संबंध रखते हैं। इसलिए यह याचिका जमीयत उलेमा-ए-हिन्द की ओर से दायर की गई है। देश में कानून का शासन है। किसी भी मामले संबंधी नागरिकों पर प्रशासन की ओर से की जाने वाली कार्रवाई कानून के दायरे में ही रहनी चाहिए। सुप्रीम कोर्ट की यह टिप्पणी कि किसी भी घर को सिर्फ इसलिए नहीं गिराया जा सकता, क्योंकि उसका मालिक अपराध में शामिल है। यदि ऐसे आधार बना कर किसी इमारत को ़गैर-कानूनी ढंग से बनाई गई दर्शा कर ऐसी कार्रवाई की जाती है तो उसके लिए भी कानूनी प्रक्रिया का पालन किया जाना चाहिए। उत्तर प्रदेश में यह सिलसिला वर्ष 2017 से शुरू हुआ है। उत्तर प्रदेश की मौजूदा योगी आदित्यनाथ की सरकार का अमन-कानून की स्थिति को ठीक करने के लिए कड़ा रवैया रहा है। इस प्रदेश में नि:संदेह हर तरह के अधिक अपराध होते रहे हैं। इनकी सूची बेहद लम्बी रही है। यह प्रभाव भी लगातार बना आ रहा है कि तत्कालीन सरकारों की ढिल-मुल नीति के कारण ही ऐसा माहौल बना है जिसके लिए कड़ी कार्रवाई करने की ज़रूरत थी। योगी सरकार के समय इस प्रदेश में इस पक्ष से हालात में काफी सुधार आया है। इसका प्रभाव भी दिखाई देता है। प्रदेश में तरह-तरह के अपराधों के समाचार कम हुए हैं। गुंडागर्दी को नकेल पड़ी है। इस पक्ष से लोग सन्तुष्ट होते दिखाई दे रहे हैं परन्तु इसी समय में इस सरकार के साम्प्रदायिक होने या पक्षपात ढंग से सिर्फ अल्पसंख्यकों के विरुद्ध ही इनकी ओर से कार्रवाई करने का प्रभाव भी बढ़ा है। इस कारण भिन्न-भिन्न समुदायों में दरारें भी बढ़ी हैं तथा माहौल भी तनावपूर्ण बना रहा है। इस संबंधी योगी सरकार अपने फज़र् निभाने में असमर्थ रही है। कुछ प्रदेशों में तो उग्र भीड़ की ओर से व्यापक स्तर पर तोड़-फोड़ करने तथा दंगे भड़काने के समाचार भी आते रहे हैं, जो बेहद चिन्ताजनक हैं। ऐसी ही भीड़ों द्वारा किसी संदिग्ध व्यक्ति या व्यक्तियों को हमले करके हिंसा का निशाना बनाया जाता रहा है, जिससे माहौल लगातार दूषित होता रहा है।
नि:संदेह ऐसी एकपक्षीय कार्रवाइयां संविधान की भावना के विपरीत हैं। इन्हें नकेल डालना सामयिक प्रशासन की ज़िम्मेदारी है। सुप्रीम कोर्ट की इस टिप्पणी के बाद उत्तर प्रदेश में व्यापक स्तर पर इस मामले पर विवाद शुरू हो गया है, जिसे किसी परिणाम पर पहुंचाया जाना ज़रूरी है। अब भी इसमें हर बार की तरह उच्च अदालत का हस्तक्षेप ही प्रभावशाली साबित हो सकेगा। अदालत ने कहा है कि किसी भी इमारत को गिराने के लिए उचित कानूनी ढंग अपनाया जाना चाहिए। इसलिए देश भर में सही दिशा-निर्देश जारी होने चाहिएं। इसके लिए नोटिस देना, जवाब के लिए आवश्यक समय देना तथा कानूनी प्रक्रिया का अवसर देना ज़रूरी है तथा इसके बाद ही ऐसे कदम उठाये जाने चाहिएं। यदि कोई आरोपी भी है तो उसके घर को गिराया नहीं जा सकता। कुछ समय पहले अदालत ने उग्र भीड़ों की ओर से दूसरे पक्ष के व्यक्तियों पर किये जाने वाले हमलों संबंधी भी दिशा-निर्देश देकर तथा इस संबंध में आरोपी लोगों को कड़ी सज़ाएं देकर ऐसा ही एक सन्देश दिया था। नि:संदेह ऐसी टिप्पणियां कानून के शासन का समर्थन करती हुई इस भावना को और मज़बूत बनाने में सहायक होंगी।

—बरजिन्दर सिंह हमदर्द