स्कूली शिक्षा की दयनीय दशा

पंजाब की आम आदमी पार्टी नीत भगवंत मान की सरकार के शासन काल के दौरान मनुष्य के लिए सर्वाधिक आवश्यक शिक्षा के धरातल पर व्याप्त अनिश्चितता और अव्यवस्था को लेकर प्रदेश का जन-साधारण चिन्तातुर होते दिखाई दिया है। प्रदेश में यूं तो शिक्षा को लेकर आज तक प्राय: सभी सरकारों ने अवहेलना जैसा रुख अपनाये रखा है। कोरोना रोग के प्रसार के दौरान तो प्रदेश में शिक्षा क्षेत्र पूर्णतया दृष्टिविगत होकर रह गया था, किन्तु पंजाब में आम आदमी पार्टी की भगवंत मान के मुख्यमंत्रित्व में बनी सरकार ने तो जैसे रही-सही सम्पूर्ण कसर निकाल कर रख दी है। मान सरकार ने शासन सम्भालते ही बिजली, आम आदमी के लिए मोहल्ला क्लीनिक और शिक्षा के क्षेत्र में स्कूल्स ऑफ ऐमीनैंस के शीर्षक तले जितने भी कार्य किये, उनका अंजाम विपरीत रूप में ही सामने आता रहा है। प्रत्येक घर में 300 यूनिट तक मुफ्त बिजली के फैसले ने बिजली निगम को तो कंगाली की दलदल में धंसाया ही, पंजाब के प्रत्येक नागरिक को ऋण के बोझ तले दबाने के कृत्य को भी अंजाम दिया है। इसी प्रकार आम आदमी क्लीनिक के धरातल पर भी दुरावस्था का साम्राज्य व्याप्त है। पुरानी सरकारी डिस्पैंसरियों की लीपा-पोती करके बनाये गये इन आम आदमी क्लीनिकों पर न कोई दवा-औषधि उपलब्ध होती है, न विशेषज्ञ डाक्टरों की ही कोई व्यवस्था है। बिना रोगियों के ये केन्द्र अक्सर भायं-भायं करते हैं।
अब शिक्षा के धरातल पर भी इस सरकार की नीतियां पूर्णरूपेण विफल हो गई प्रतीत होती हैं। इस सरकार ने सत्ता सम्भालते ही बड़े ज़ोर-शोर से स्कूल्स ऑफ ऐमीनैंस के शीर्षक तले स्कूली शिक्षा के पुनरुत्थान का बीड़ा उठाने की घोषणा की थी, किन्तु ‘अग्गा दौड़ पिच्छा चौड़’ की कहावत के अनुसार स्कूली शिक्षा का संवरणा तो क्या था, उल्टे प्राईमरी स्कूलों की शिक्षा भी अनिश्चितता के भंवर में गोते खाने लगी। प्राय: विदेशों में तो ऐसा होता ही है, और अपने देश में भी शिक्षा-विदों और विशेषज्ञों की यही राय रही है कि विद्यार्थी की प्रारम्भिक और प्राईमरी शिक्षा ही उसके भविष्य की शिक्षा की मीनार की नींव बनती है। बच्चा प्राईमरी के धरातल पर जो ज्ञान अर्जित करता है, आगे चल कर वही ज्ञान उसके सम्पूर्ण करियर की दिशा और दशा तय करता है, किन्तु पंजाब में आज स्थिति यह है कि क्या साधारण स्कूल और क्या ऐमीनैंस नाम वाले स्कूल, किसी में भी न तो पूरे और विशेषज्ञ शिक्षक उपलब्ध हैं, न शिक्षा हेतु पर्याप्त शिक्षण सामग्री ही प्रदान की गई है। लगभग 600 स्कूलों में मुख्याध्यापक और प्रिंसीपल नहीं हैं। साधारण शिक्षकों और यहां तक कि ़गैर-शिक्षण स्टाफ की भी बड़ी कमी है। एक सर्वेक्षण के अनुसार प्रदेश के सभी 23 ज़िलों में किसी भी कथित ऐमीनैंस स्कूल में स्मार्ट होने जैसी पर्याप्त सुविधाएं नहीं हैं। अध्यापकों के हज़ारों पद खाली पड़े हैं जबकि नई भर्ती पर पहले से रोक लगी है। ऐमीनैंस बने स्कूलों के द्वार-दीवारों पर सिर्फ रंग-रोगन ही किया गया है, इनमें छात्रों के दाखिले के लिए सरकार एवं स्कूलों के शिक्षकों को श्रम-स्वेद एक करना पड़ रहा है। सितमज़रीफी की हद यह है कि प्रदेश भर के सभी 19,138 सरकारी स्कूलों में शिक्षा को लेकर स्थिति पूर्णतया जर्जर हो चुकी है। 
नि:संदेह एक अवसर पर सरकारी दावों एवं घोषणाओं पर विश्वास करके प्रदेश के गरीब और आम मध्य वर्ग के लोगों ने अपने बच्चों को इनमें प्रवेश दिला कर, सुख और राहत की सांस लेने का यत्न किया था, किन्तु शीघ्र ही सरकारी दावों की बिल्ली थैले से बाहर आ गई और सरकारी स्कूलों की नियति पुराने ढर्रे पर लौट आई। सरकारी स्कूलों में पर्याप्त पढ़ाई न हो पाने पर ट्यूशनों की आवश्यकता महसूस होने लगी। दूसरी ओर निजी स्कूलों की पढ़ाई इतनी महंगी है कि आम आदमी के घर-परिवारों के बच्चे वहां पढ़ ही नहीं सकते। लिहाज़ा प्रदेश में शिक्षा का भट्ठा बैठता चला गया। ग्रामीण धरातल पर तो यह स्थिति और भी गम्भीर होते चली गई है। आज पंजाब में स्थिति यह है कि शिक्षा की रेलगाड़ी बिना चालक और बिना संचालक के अनिर्देशित तरीके से दौड़ी चली जा रही है, और बच्चे नि:सहाय से सरपट भागती गाड़ी के पीछे छूटते गुबार को देखते भर रहने के लिए विवश हो गये दिखाई देते हैं। नि:संदेह इस दुर्दशा को संवारने और इस रेलगाड़ी को थाम कर, इसकी दशा एवं दिशा संवारने हेतु बहुत प्रयास किये जाने की आवश्यकता है। ये प्रयास कब और कैसे होंगे, यह अभी भविष्य के गर्भ में है।