केन्द्र सरकार द्वारा नक्सलवाद पर अंतिम प्रहार की तैयारी

भारत की तीन बड़ी समस्याएं हैं जिनसे देश को बड़ा खतरा माना जा रहा है। आतंकवाद, नक्सलवाद और अलगाववाद से देश की एकता और अखंडता को बड़ा खतरा है। इन समस्याओं के पीछे देशी और विदेशी शक्तियां हैं जो भारत को तोड़ने की कोशिश में वर्षों से लगी हुई हैं। 2014 में मोदी सरकार ने सत्ता में आने के बाद आतंकवाद के साथ-साथ नक्सलवाद के खिलाफ भी बड़े कदम उठाये थे, लेकिन इसकी ज्यादा चर्चा नहीं हुई क्योंकि नक्सलवाद से आम जनता ज्यादा पीड़ित नहीं थी। नक्सलवादी ज्यादातर नेताओं के अलावा  सरकारी अधिकारियों और कर्मचारियों के खिलाफ ही कार्यवाही करते हैं। इसलिए नक्सलवाद से अप्रभावित क्षेत्रों की जनता को नक्सलवाद बड़ी समस्या नहीं लगती। नक्सलवादी अपने प्रभाव वाले इलाकों में ही हिंसक घटनाओं को अंजाम देते हैं जबकि आतंकवादी देश के किसी भी हिस्से में वारदात को आंजाम दे देते हैं। 
मोदी सरकार ने सत्ता में आने के बाद आतंकवादियों को जम्मू-कश्मीर तक सीमित कर दिया है। अब आतंकवादी इस स्थिति में पहुंच गए हैं कि उनके लिए जम्मू-कश्मीर से बाहर अपनी गतिविधियां चलाना संभव नहीं रहा। 2014 से पहले देश में आतंकवाद कितनी बड़ी समस्या थी। पूर्वोत्तर में लगभग सभी राज्य आतंकवाद से बुरी तरह पीड़ित थे। मोदी सरकार ने सत्ता में आने के बाद ज्यादातर राज्यों से इस समस्या को खत्म कर दिया है। अब सिर्फ मणिपुर और नागालैंड में यह समस्या बची है जिसमें से मणिपुर ज्यादा चर्चा में है। नक्सलवाद के खिलाफ सरकार ने जो काम किया है, इसका अहसास देश की जनता को नहीं है। नक्सलवाद के कारण आदिवासियों की ज़िन्दगी दूभर हो गई थी क्योंकि उनके इलाकों में विकास कार्य करना संभव नहीं था। अब नक्सलवाद पर काबू पाकर सरकार ने इन इलाकों में विकास कार्य शुरू किए हैं। 
 गृहमंत्री अमित शाह ने घोषणा की है कि मोदी सरकार मार्च 2026 तक नक्सलवाद को देश से पूरी तरह खत्म कर देगी। नक्सल प्रभावित सात राज्यों के मुख्यमंत्रियों, पुलिस महानिदेशकों, मुख्य सचिवों के साथ-साथ केंद्रीय मंत्रियों और सुरक्षा एजेंसियों के प्रमुखों के साथ अमित शाह ने एक बैठक की है। अमित शाह ने बैठक में नक्सलवाद के खिलाफ ज़ीरो टॉलरेंस की नीति अपनाने को कहा है और इसके साथ-साथ विकास एवं जन-कल्याणकारी योजनाओं को जनता तक पहुंचाने पर ज़ोर दिया है। उन्होंने नक्सलवाद को आदिवासी क्षेत्रों के विकास में सबसे बड़ी रुकावट और इसे मानवता का दुश्मन करार दिया है। उनका कहना है कि आदिवासी क्षेत्रों का सम्पूर्ण विकास करने के लिए इसे पूरी तरह से खत्म करना आवश्यक है। 
नक्सलवाद के खिलाफ लड़ाई में मिली सफलता के लिए उन्होंने राज्यों के सहयोग की प्रशंसा की है और मुख्यमंत्रियों द्वारा दिये गए सुझावों पर अमल करने का आश्वासन दिया है। अमित शाह ने कहा है कि बिहार एवं झारखंड के चकरबंधा और बूढ़ा पहाड़ जैसे कई इलाकों से नक्सलवाद को पूरी तरह खत्म कर दिया गया है। इसके अलावा छत्तीसगढ़ में नक्सलियों की 85 प्रतिशत कैडर क्षमता को खत्म कर दिया गया है। उन्होंने नक्सल प्रभावित इलाकों में और नए सुरक्षा कैम्प स्थापित करने की बात कही है। उन्होंने बैठक से स्पष्ट रूप से घोषणा कर दी है कि अब नक्सलवाद पर सरकार अंतिम प्रहार करने जा रही है। 
 अमित शाह का कहना है कि तीस साल में पहली बार 2022 में नक्सली हिंसा में हुई मौतों की संख्या 100 से भी कम रही है। उनका कहना सही है कि 2014 से 2024 के बीच देश में नक्सली हिंसा की घटनाओं में बहुत कमी आ गई है। पिछले दस सालों में 14 शीर्ष नक्सली नेता पुलिस ने मार गिराए हैं। उन्होंने जानकारी दी कि 2004 से 2014 के बीच नक्सली हिंसा की 16,463 घटनाएं हुई थी जो 53 फीसदी कम होकर वर्ष 2014 से 2024 के दौरान 7,700 तक रह गईं। इस दौरान आम लोगों और सुरक्षाबलों की मृत्यु दर भी 70 प्रतिशत कम हो गई है। नक्सली हिंसा की रिपोर्ट करने वाले ज़िलों की संख्या भी 96 से घटकर सिर्फ 16 रह गई है।  इसके अलावा हिंसा की सूचना देने वाले पुलिस स्टेशन भी 465 से कम होकर 171 रह गए हैं। 
सुरक्षा संबंधी व्यव पर मोदी सरकार ने पिछली संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (संप्रग) सरकार के 1180 करोड़ की जगह 3006 करोड़ रुपये खर्च किये हैं। केंद्रीय एजेंसियों को नक्सलवाद के लिए 1055 करोड़ रुपए दिए गए हैं। उन्होंने कहा है कि अब तक इसके लिए 14367 रुपये अनुमोदित किये गए हैं जिसमें से 12000 करोड़ रुपए खर्च हो चुके हैं। इस समस्या से निपटने के लिए नए पुलिस स्टेशन बनाये गए हैं और इन इलाकों में सड़कों का जाल बिछाया गया है। रोड कनेक्टिविटी के अलावा मोबाइल कनेक्टिविटी बढ़ाने के लिए 6000 टावर लगाए गए हैं। आदिवासी क्षेत्रों में शिक्षा का स्तर बढ़ाने के लिए एकलव्य मॉडल स्कूलों की संख्या बढ़ाई गई हैं। 
देखा जाए तो नक्सली समस्या को खत्म करने में सरकार की कथनी और करनी में कोई अंतर नहीं है। बेशक नक्सली हिंसा में कमी हो गई है, लेकिन सरकार ने इन इलाकों में केंद्रीय सुरक्षा बलों की तैनाती में कोई कमी नहीं की है। इसलिए उसने घोषणा कर दी है कि अब इस समस्या को देश से समाप्त कर दिया जाएगा। भूमि व्यवस्था के खिलाक पश्चिम बंगाल के नक्सलवादी इलाके से शुरू हुआ आंदोलन अब खत्म होना चाहिए क्योंकि यह व्यवस्था बदलने का नहीं बल्कि व्यवस्था को खत्म करके अराजकता फैलाने का आंदोलन है। इसने आदिवासियों को उनका हक दिलाने की जगह उनके विकास को रोक दिया है। मोदी सरकार अब नक्सलवाद को खत्म करके आदिवासियों को देश की मुख्यधारा में लाना चाहती है क्योंकि नक्सलियों के कारण आदिवासी इलाके देश से कट गए थे।  भारत विरोधी शक्तियों ने नक्सलवादी आंदोलन के सहारे भारत के विकास को बाधित करने की कोशिश की है। 
 आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई चल रही है और अलगाववाद के खिलाफ भी संघर्ष जारी है, लेकिन नक्सलवाद की समाप्ति नजदीक दिखाई दे रही है। उम्मीद है कि मोदी सरकार नक्सलवाद के खिलाफ अपनी लड़ाई में सफलता प्राप्त करेगी।  (युवराज)