16वां ब्रिक्स शिखर सम्मेलन : क्या भारत, रूस व चीन तोड़ेंगे डॉलर की हेकड़ी ?

आज से रूसी संघ के एक घटक गणराज्य तातारस्तान की राजधानी कजान में 16वां ‘ब्रिक्स’ सम्मेलन शुरु हो रहा है, जिसमें भाग लेने के लिए भारत के प्रधानमंत्री मोदी भी गये हैं। मध्य पूर्व में तनाव और रूस-यूक्रेन युद्ध के दौरान हो रहा यह सम्मेलन जो कि 23 अक्तूबर, 2024 तक चलेगा, कई मायनों में बहुत महत्वपूर्ण है। मसलन रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने सम्मेलन की पूर्व संध्या में कहा है कि ब्रिक्स पश्चिमी प्रतिबंधों से मुक्त ‘स्विफ्ट’ जैसी सीमा-पार भुगतान प्रणाली की संभावनाएं तलाश रहा है। गौरतलब है कि स्विफ्ट ‘सोसायटी फॉर वर्ल्डवाइड इंटरबैंक फाइनेंसियल टेलीकम्युनिकेशन’ एक अंतर्राष्ट्रीय भुगतान प्रणाली है, जिसका उपयोग दुनियाभर के बैंक और वित्तीय संस्थान सीमापार लेनदेन के लिए करते हैं। इसका मुख्य उद्देश्य दुनियाभर के बैंकों के बीच सुरक्षित और कुशल तरीके से वित्तीय संदेशों (जैसे कि भुगतान निर्देश) का आदान-प्रदान करना होता है। इस प्रणाली के माध्यम से बैंक और अन्य वित्तीय संस्थान एक-दूसरे को सुरक्षित संदेश भेज सकते हैं, जिससे अंतर्राष्ट्रीय व्यापार और धन का स्थानांतरण तेज़ और सुरक्षित होता है। 
पुतिन का मानना है कि अगर ब्रिक्स यानी ब्राज़ील, रूस, भारत, चीन और दक्षिण अफ्रीका की अर्थव्यवस्थाएं, जिन्हें दुनिया की उभरती हुई अर्थव्यवस्थाएं माना जाता है, अपना एक वैकल्पिक स्विफ्ट विकसित कर लें तो दुनियावी कारोबार में हावी अमरीकी डॉलर के वर्चस्व को खत्म किया जा सकता है। इसकी शुरुआत के लिए रूस के राष्ट्रपति का सुझाव है कि ब्रिक्स समूह के देशों को आपसी भुगतान हेतु अपनी ‘राष्ट्रीय डिजिटल मुद्राओं’ के इस्तेमाल पर जोर देना चाहिए। पुतिन ब्रिक्स देशों को अपनी राष्ट्रीय डिजिटल मुद्राओं के इस्तेमाल को इसलिए प्रोत्साहित कर रहे हैं तो ये कई मायनों में पारम्परिक मुद्राओं के मुकाबले इस्तेमाल में किफायती साबित होती हैं। हालांकि उनके किफायती होने का स्तर इस बात पर निर्भर होता है कि किस प्रकार की डिजिटल मुद्रा की बात हो रही है? साथ ही किन स्थितियों में उनका उपयोग किया जा रहा है। 
दरअसल डिजिटल मुद्राओं के कई रूप हैं, जैसे कि क्रिप्टोकरेंसी, सेंट्रल बैंक डिजिटल करेंसी (सीबीडीसी) और इलेक्ट्रॉनिक मनी (ई-मनी)। जहां तक क्रिप्टोकरेंसी की बात है तो कुछ देशों में तो इसकी स्वीकार्यता है मसलन जापान, स्विट्जरलैंड और सिंगापुर ने क्रिप्टोकरेंसी के उपयोग को अपनी वित्तीय प्रणाली में शामिल कर लिया है। इन देशों में क्रिप्टोकरेंसी को कानूनी मान्यता भी दी गई है। इसी तरह अमरीका और यूरोपीय संघ में भी क्रिप्टोकरेंसी को अपने यहां मान्यता दी है। लेकिन इन सभी देशों के बीच आपसी व्यापार में क्रिप्टोकरेंसी को बहुत सीमित लगभग टेस्ट के स्तर पर ही उपयोग हो रहा है। यही नहीं इन ज्यादातर देशों की अपनी कोई क्रिप्टोकरेंसी भी नहीं है मसलन जापान को ही लें,जापान की कोई राष्ट्रीय क्रिप्टोकरेंसी नहीं है, लेकिन मोनाकॉइन या मोना नाम से एक क्रिप्टोकरेंसी है, जिसका इस्तेमाल ही मुख्य रूप से जापान में किया जाता है उस पर भी इन्होंने बहुत कड़े नियम लागू किए हैं। यही हाल अमरीका और यूरोपीय संघ का भी है। 
इसलिए ब्रिक्स देशों के बीच जिस डिजिटल करेंसी में आपसी व्यापार की कल्पना की जा सकती है, उसमें कम से कम क्रिप्टो तो नहीं ही हो सकती। क्योंकि भारत और चीन तो साफ तौर पर क्रिप्टोकरेंसी के प्रति सख्त रुख अपनाते हैं। चीन ने लगभग सभी प्रकार की क्रिप्टोकरेंसी गतिविधियों पर प्रतिबंध लगा दिया है, जबकि भारत में इस पर काफी नियम और विनियम लागू हैं, हालांकि पूर्ण प्रतिबंध यहां भी नहीं है। अब मुख्यत: बचती है सेंट्रल बैंक डिजिटल करेंसी यानी सीबीडीसी। सवाल है क्या सीबीडीसी के जरिये ब्रिक्स देश आपसी व्यापार कर सकते हैं ? यह एक संभावित विकल्प तो है और इस दिशा में कुछ कदम भी उठाए जा रहे हैं। क्योंकि सीबीडीसी वह डिजिटल मुद्रा होती है, जिसे किसी देश के सेंट्रल बैंक द्वारा जारी किया जाता है और नियंत्रित भी किया जाता है। इसलिए यह फिएट करेंसी (एक राष्ट्रीय मुद्रा है, जिसका मूल्य किसी भौतिक वस्तु की कीमत से जुड़ा नहीं होता) का डिजिटल संस्करण है और इसका उद्देश्य डिजिटल भुगतान को अधिक सुरक्षित, तेज और सस्ता बनाना होता है। 
ब्रिक्स देशों के बीच सीबीडीसी का उपयोग करने के कई फायदे हो सकते हैं- जैसे कि आपसी व्यापार लेन-देन में बिचौलियों को हटाना, मुद्रा विनिमय लागत को कम करना और सीमा-पार भुगतान को तेज करना। चूंकि ब्रिक्स देश कई वर्षों से आपसी व्यापार में अमरीकी डॉलर पर निर्भरता को कम करने के लिए विभिन्न विकल्पों पर विचार कर रहे हैं, इसलिए यह सबसे उपयुक्त विकल्प हो सकता है। चीन और रूस तो पहले से ही किसी हद तक ऐसा कर रहे हैं। चीन की डिजिटल मुद्रा युआन (ई-सीएनवाई) और रूस की डिजिटल रूबल के बीच आपसी कारोबार काफी आगे बढ़ चुका है। लेकिन जहां तक अपने देश की बात है, तो भारत अपनी डिजिटल मुद्रा ‘ई-रुपी’ का उपयोग मुख्य रूप से देश के भीतर ही करता है वह भी बहुत सीमित पैमाने पर। अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर हमने अभी तक किसी देश के साथ सीधे डिजिटल रुपये के माध्यम से कारोबार शुरु नहीं किया। हालांकि इसमें कोई दो राय नहीं है कि हम अपनी सेंट्रल बैंक डिजिटल करेंसी) यानी ‘ई-रूपी’ के विकास और विस्तार की योजना बना रहे हैं  है। लेकिन यह योजना अभी पायलट चरण में है और केवल कुछ बड़े बैंकों और उपयोगकर्ताओं तक सीमित है। अभी तक इसका सीमा-पार व्यापार या अंतर्राष्ट्रीय लेन-देन में कोई उपयोग नहीं किया गया है। 
मगर इसके बारे में सोचा जा रहा है क्योंकि इसके कई फायदे साफ तौर पर दिख रहे हैं। सबसे पहले तो इससे डॉलर पर निर्भरता कम होगी। चूंकि अभी तक अधिकतर अंतर्राष्ट्रीय व्यापार अमरीकी डॉलर में होता है, इसलिए वैश्विक कारोबार में अमरीकी वित्तीय प्रणाली का वर्चस्व बना रहता है। अगर ब्रिक्स देश अपनी डिजिटल मुद्राओं यानी सीबीडीसी में आपसी कारोबार शुरू करते हैं तो इनकी आर्थिक संप्रभुता मजबूत होगी। साथ ही यह भुगतान तेज़ और सस्ता होगा। चूंकि विभिन्न देशों की सेंट्रल बैंक डिजिटल करेंसी सीधे उन देशों की सेंट्रल बैंक से नियंत्रित होती है, इसलिए पूरी तरह से अगर बिचौलियों की ज़रूरत खत्म न हुई तो भी कम होगी, जिससे लेन-देन की लागत और समय कम हो सकता है। साथ ही लेन-देन आज के मुकाबले कहीं ज्यादा पारदर्शी और सेंट्रल बैंकों के कारण सुरक्षित भी होगा। इससे मनी लॉन्ड्रिंग और अन्य अवैध गतिविधियों में भी कमी आ सकती है।
अगर ब्रिक्स  देश अपनी-अपनी डिजिटल मुद्राओं के माध्यम से एक साझा या समन्वित भुगतान प्रणाली विकसित कर लेते हैं, तो यह अंतर्राष्ट्रीय व्यापार को सरल और स्वतंत्र बना सकता है। इसलिए रूस की मेजबानी में आयोजित होने जा रहे ब्रिक्स नेताओं के 16वें वार्षिक शिखर सम्मेलन से पहले पुतिन का यह कहना बहुत मौजूं है कि अगर 10 देशों का यह समूह अपनी डिजिटल मुद्राओं के जरिये कारोबार की राह निकाल लेता है तो डॉलर का वर्चस्व अतीत की बात हो सकती है।

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