किसान की चिन्ता

पंजाब में गेहूं एवं धान दो मुख्य फसले हैं, जिन पर बड़ी सीमा तक किसान एवं प्रदेश की आर्थिकता निर्भर करती है। इन फसलों के समुचित मंडीकरण के लिए फसल मंडियों में आने से पहले ही इस संबंध में हर तरह की व्यवस्थाएं की जानी ज़रूरी होती हैं ताकि जो कटाई के उपरांत मंडियों में आते ही फसल की उचित सार-सम्भाल हो सके तथा किसानों को किसी तरह की कोई समस्या का सामना न करना पड़े। विगत कुछ मास से धान की ़फसल की खरीद एवं उसके उठान के संबंध में किये जाने वाले कार्यों की पूर्ति के लिए अपनाई गई सुस्त चाल तथा बेपरवाही वाली नीति संबंधी अंगुलियां उठनी शुरू हो गई थीं। किसान नेताओं की ओर से केन्द्र और प्रदेश सरकार को सचेत करने संबंधी बयान भी दिए गए थे। ़फसल के मंडियों में आने के बाद उसके उठान एवं शैलरों में इसकी छटाई का काम पूर्ण करने के बाद चावल को गोदामों में रखा जाना तथा उसके बाद उसे आवश्यक स्थानों पर बाहर भेजना ज़रूरी होता है। इसके लिए केन्द्र एवं प्रदेश सरकार दोनों को आपसी तालमेल से काम करना पड़ता है, परन्तु इस बार देखने में आया है कि पंजाब के गोदामों में धान एवं गेहूं के पिछले साल के ही भंडार भरे पड़े हैं। उन्हें संबंधित केन्द्रीय एजेंसी द्वारा बाहर ही नहीं भेजा गया।
एक अनुमान के अनुसार इस बार धान के 185 लाख मीट्रिक टन का उत्पादन होने की सम्भावना है। एक अक्तूबर से मंडियों में इसकी खरीद करने की घोषणा की गई थी परन्तु 19 अक्तूबर तक प्रदेश के खाद्य आपूर्ति मंत्री के बयान अनुसार अभी तक मात्र 16.37 लाख मीट्रिक टन धान की ही खरीद की गई है, जिसमें से 2.62 लाख मीट्रिक टन ़फसल ही उठाई जा सकी है। इससे यह स्पष्ट होता है कि आगामी दिनों में मंडियों में धान की अधिक आमद से धान के अम्बार लगने शुरू हो जाएंगे, जिसकी खरीद, सार-सम्भाल एवं उठान के लिए अग्रिम रूप से निश्चित नीति के अनुसार आवश्यक प्रबन्ध नहीं हो सके।
खरीद न होने के कारण किसान मंडियों में ही अपनी बारी का इंतज़ार करने के लिए विवश हैं। शैलर मालिक अपनी समस्याएं ब्यान कर रहे हैं तथा कह रहे हैं कि पहले ही गोदाम भरे होने के कारण वे छटाई करके चावलों को कहां रखेंगे? छटाई के बाद चावल लम्बी अवधि तक रखने के कारण इनका सूखना और खराब होना अधिक होने लगता है। आढ़ती एवं मज़दूर भी अब तक इस काम में अपनी-अपनी समस्याओं को लेकर अपने क्षेत्र में सक्रिय नहीं हुए। इसी कारण किसान अनिश्चितता के आलम में पहुंच गया है। उसमें धैर्य के लिए और शक्ति नहीं बची। इस कारण उसे सड़कों पर उतरने हेतु विवश होना पड़ा है। इस संबंध में पहले ही मुख्यमंत्री एवं संबंधित अधिकारियों के साथ किसान संगठनों की बैठकें हो चुकी हैं परन्तु उनमें से अब तक कोई ठोस हल निकलता दिखाई नहीं दे रहा।
नि:संदेह पहले कभी इस ़फसल की इतनी बेकद्री नहीं हुई थी। इस काम में पंजाब सरकार तो केन्द्र से समय पर समुचित सम्पर्क बनाने में असमर्थ सिद्ध हुई है परन्तु केन्द्र सरकार की ओर से भी इस संबंध में कोई बड़ा समर्थन नहीं मिला तथा न ही उसके द्वारा सकारात्मक रवैया ही धारण किया गया है, जिससे कि निकट भविष्य में ़फसल की खरीद एवं उठान के लिए कोई विश्वास पैदा हो सके। दिन-प्रतिदिन स्थिति और भी नाज़ुक होती जा रही है, जिसके लिए केन्द्र सरकार को शीघ्र हस्तक्षेप करके इसका कोई उचित हल निकालने की ज़रूरत होगी ताकि पैदा हो रही इस गम्भीर समस्या का शीघ्र समाधान किया जा सके।

—बरजिन्दर सिंह हमदर्द