बौखलाहट की कार्रवाइयां

कश्मीर में एक बार फिर आतंकियों ने अपना खूनी खेल शुरू कर दिया है। अब जम्मू-कश्मीर के गांदरबल में कुछ आतंकियों ने रविवार की रात को सुरंग में काम कर रहे मज़दूरों पर हमला कर दिया, जिसमें 6 मज़दूरों और एक डाक्टर की मौत हो गई। इससे पहले 9 जून को जम्मू-कश्मीर क्षेत्र के ही शहरी ज़िले में आतंकियों द्वारा श्रद्धालुओं की एक बस पर गोलीबारी की गई थी, जिसमें 7 श्रद्धालुओं की मौत हो गई थी और कई गम्भीर घायल हो गये थे। पिछले लगभग 30 वर्षों से ऐसा कुछ जारी है। अब तक हज़ारों ही लोग इस हिंसा की भेंट चढ़ चुके हैं। लाखों ही लोग घरों से बेघर हो गये हैं। चाहे पाकिस्तान द्वारा यह खूनी खेल भारत के हिस्से वाले कश्मीर को हथियाने के लिए खेला जाता रहा है लेकिन उसको इसमें बड़ी निराशा ही मिलती रही है। पाकिस्तान की इन हिंसक कार्रवाइयों की आलोचना करते हुए जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री और नैशनल कांफ्रैंस के प्रधान फारूख अब्दुल्ला ने कहा है कि अब पाकिस्तान को यह खेल बंद कर देना चाहिए क्योंकि इसमें से उसे कुछ भी हासिल नहीं होगा। कश्मीरी लोग अपना विकास चाहते हैं। वे पाकिस्तान के साथ कभी भी मिलने के लिए तैयार नहीं हैं। पाकिस्तान ऐसी आतंकी कार्रवाइयों के साथ, जिस प्रकार की दहशत फैलानी चाहता है, वह ऐसे इरादे में कामयाब नहीं हो सका।
पिछले दिनों भारत के विदेश मंत्री शंघाई शिखर सम्मेलन की कांफ्रैंस में गये थे। चाहे उन्होंने वहां दोनों देशों के आपसी संबंधों के बारे में तो कोई बात नहीं की थी लेकिन उनकी इस यात्रा की बड़े स्तर पर चर्चा ज़रूर हुई थी और इसको लेकर कई तरह की उम्मीदें जताई जाने लगी थीं। यहां तक कि पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री नवाज़ शऱीफ जिनके छोटे भाई शहबाज़ शऱीफ आजकल देश के प्रधानमंत्री हैं, उनकी ओर से भी ये भावनाएं प्रगट की गई थीं कि अब दोनों देशों को ऐसी दुश्मनी खत्म कर देनी चाहिए क्योंकि विगत 75 वर्षों से इससे कुछ भी हासिल नहीं हुआ और दोनों देश बड़ा नुकसान उठाते रहे हैं। आज पाकिस्तान बेहद आर्थिक मंदी के दौर में से गुज़र रहा है। फैले आतंकवाद ने वहां के लोगों का जीना मुश्किल कर दिया है। विश्व भर की नज़रों में वह एक आतंकी देश माना जा रहा है। हम दोनों शरीफ भाइयों की इस बात पर प्रशंसा अवश्य करते हैं कि उन्होंने प्रत्येक संभव ढंग से दोनों देशों के संबंधों को सुधारने का यत्न अवश्य किया, परन्तु वहां की सेना तथा बदनाम खुफिया एजैंसी आई.एस.आई. ने अपनी निर्धारित नीति के तहत भारत-विरोधी बनाई योजनाओं को अभी तक जारी रखा हुआ है। जहां तक वादी के लोगों का संबंध है, उन्होंने समय-समय पर यह अवश्य जता दिया है कि वे इस क्षेत्र में शांति चाहते हैं। जम्मू-कश्मीर में हुए प्रत्येक तरह के चुनावों में पूर्ण उत्साह दिखा कर उन्होंने भारत के साथ अपनी समरसता एवं प्राथमिकता दिखाई है। विगत दिवस यहां हुए विधानसभा चुनावों में भी इस क्षेत्र के लोगों ने बढ़-चढ़ कर भाग लिया था। उमर अब्दुल्ला के नेतृत्व में जम्मू-कश्मीर में नई सरकार की स्थापना हुई है जिससे वहां का माहौल पूरी तरह बदला दिखाई दे रहा है। कश्मीर में लाखों ही पर्यटकों ने आना शुरू कर दिया है, जिसने वादी का वातावरण पूरी तरह से बदल दिया है।
चुनावों से पहले भी आतंकवादी संगठनों ने यहां हिंसा फैलाने के पूरा यत्न किया था, परन्तु वे सफल नहीं हुए थे। अब उनके द्वारा की जा रही ऐसी कार्रवाइयों को उनकी बौखलाहट ही कहा जा सकता है, परन्तु दिखाई गई ऐसी बौखलाहट पहले भी अक्सर अर्थहीन ही सिद्ध हुई है। यह बात भी विश्वास के साथ कही जा सकती है कि पाकिस्तान में आतंकवादियों का एक ऐसा जमावड़ा अंत में उसका ही बड़ा नुकसान करेगा। पहले ही इस का खमियाज़ा उसे भुगतना पड़ रहा है। ऐसी स्थिति में भारत के साथ सामान्य एवं सुखद संबंध बनाने बेहद मुश्किल होंगे। नि:संदेह पाकिस्तान की शह पर आतंकवादी संगठन हारी हुई लड़ाई लड़ रहे हैं, क्योंकि कश्मीरी लोगों ने नई सरकार के गठन में योगदान डाल कर उन्हें अपनी ओर से एक स्पष्ट एवं मज़बूत संदेश अवश्य दे दिया है।    

    —बरजिन्दर सिंह हमदर्द