महंगाई ने तोड़ा पिछला रिकार्ड

देश में त्योहारों का मौसम शुरू होते ही मानव-उपभोग की वस्तुओं की महंगाई ने आम आदमी को बड़े ज़ोर का झटका दिया है, और नि:संदेह यह झटका  धीमे से लगने के विपरीत बड़े ज़ोर से लगा है। इस एक ही झटके ने एक ओर जहां आम आदमी और ़गरीब वर्ग के घरेलू बजट को गड़बड़ा दिया है, वहीं मध्य-वर्गीय परिवारों की कमर पर भी यह महंगाई अवश्य असर-अंदाज़ हुई प्रतीत होती है। नौकरी-पेशा वर्ग के लोगों में तो इस महंगाई ने त्राहिमाम् जैसी स्थिति बना दी है। प्राप्त आंकड़ों के अनुसार परचून महंगाई की दर पिछले लगभग दस मास से रिकार्ड स्तर पर बढ़ कर 5.49 प्रतिशत हो गई है जबकि थोक महंगाई की दर भी पिछले एक मास में 1.84 प्रतिशत हो गई। यह दर रिज़र्व बैंक द्वारा निर्धारित सीमा-रेखा को भी पार कर गई प्रतीत होती है।  इस कारण देश के जन-साधारण की आर्थिकता बुरी तरह से प्रभावित हुई है। सरकारी सेवाओं में तो फिर भी महंगाई भत्ते आदि की अदायगी होते रहने से कुछ बचाव की मुद्रा दिखती है, किन्तु निजी क्षेत्र की नौकरी तथा दुकानों और छोटे व्यवसायिक केन्द्रों की नौकरी करने वाले लोगों का तो सचमुच बड़ा बुरा हाल हो गया दिखाई देता है। समाज का यह वर्ग इस झटके से बेहद परेशान और निराश दिखाई दिया है। यहां तक कि इसने समाज के जन-साधारण की जीवन-संरचना को भी प्रभावित किया है। इस कारण समाज के गरीब और मध्य-वर्गीय लोगों में निराशा और हताशा का वातावरण तो पैदा हुआ ही है, इससे आम आदमी समाज में आत्म-हत्या करने की प्रवृत्ति को भी बल मिलता है।
देश में महंगाई बढ़ने का आलम यह है कि प्रत्येक वस्तु के दाम व्यापारी वर्ग ने अपनी मर्जी से बढ़ा दिये हैं। यह भी, कि थोक में एक बार किसी वस्तु अथवा मद के दाम बढ़ जाने पर, परचून में भाव स्वत: बढ़ जाते हैं, अथवा बढ़ा दिये जाते हैं, किन्तु थोक में मूल्य कम होने का लाभ परचून में जन-साधारण को कदापि नहीं मिलता। आजकल देश में त्योहारों का मौसम होने के कारण वस्तुओं के दामों का बढ़ना बहुत स्वाभाविक था, किन्तु इन दिनों जिस बेतहाशा एवं अनियंत्रित तरीके से आम आदमी के सामान्य उपभोग की वस्तुओं खास तौर पर खाद्यान्न पदार्थों के दाम बढ़े हैं, उसने न केवल आम आदमी को संकट में डाला है, अपितु स्वयं व्यापारी वर्ग भी बेहद अचम्भित हुआ है। यहां तक कि फल और सब्ज़ियों के दाम तो इस सीमा तक बढ़ गये हैं, कि आम आदमी के लिए ये आकाश-कुसुम-सम हो गये हैं। तिस पर सितमज़रीफी की हद तब होती है जब प्याज़, टमाटर, आलू जैसी सब्ज़ियों के दाम भी व्यापारी वर्ग की पूल नीति अर्थात जमा-खोरी के कारण आम आदमी के लिए असह्य होकर रह जाते हैं। सरकारें तब आम आदमी के ज़ख्मों पर नमक छिड़क कर नश्तर भी चलाती हैं, जब जन-साधारण को भरमाने और लुभाने के लिए थोड़े-बहुत स्टॉक को मंडियों में लाकर अपने चहेतों में वितरित करा देती हैं, किन्तु दो-चार दिन की चांदनी के वाद फिर वही अन्धेरी रातें सामने आती हैं, और उन वस्तुओं के दाम पहले से और बढ़ जाते हैं। पंजाब में पिछले दिनों ऐसा ही हुआ जब सरकार ने कुछ बड़े शहरों की मंडियों में खुले प्याज़ की बिक्री की। यह बिक्री क्या हुई, कि आम ज़रूरतमंद आदमी को तो एक किलो तक प्याज़ कहीं नहीं मिला, किन्तु बढ़े हुए दाम वहीं पर स्थिर होकर रह गये। मंडियों में सस्ती बिक्री का दावा पता नहीं कहां खो गया। खाद्य तेलों और दालों की कीमतों में वृद्धि के स्तर ने तो जैसे लोगों की जेब काट ली है। खाद्य तेल की कीमतें  विगत एक वर्ष में कई बार बढ़ी हैं।
नि:संदेह यह सम्पूर्ण स्थिति न केवल सरकारों की कार्य-प्रणाली पर एक बहुत बड़ा प्रश्न-चिन्ह लगाती है, अपितु  राजनीतिक ढांचे पर बड़ा कटाक्ष भी करती है जिसके तहत मौजूदा दौर के लोकतंत्र में नेताओं का मुख्य कार्य येन-केन-प्रकारेण मत और सत्ता प्राप्त करना ही रह गया है। इसका एक बड़ा प्रमाण यह भी रहा है कि इसी मास सम्पन्न हुए हरियाणा और जम्मू-कश्मीर के विधानसभा चुनावों में महंगाई के विरुद्ध आम आदमी के हित में किसी भी राजनीतिक दल ने हाअ का नारा नहीं लगाया, न किसी दल ने महंगाई को अपने चुनाव प्रचार का हिस्सा बनाया। लिहाज़ा स्थिति यह हो गई है कि महंगाई एवं मूल्य-वृद्धि सुरसा के खुले मुख की भांति निरन्तर बढ़ती जाती है, और कि इस मुख को बंद करने वाला कोई वीर किसी जन-साधारण को दिखाई नहीं दे रहा। अगले कुछ दिनों में त्योहारी मौसम के कारण खाद्यान्न पदार्थों के साथ, अन्य जन-उपभोग की वस्तुओं के दाम और खास तौर पर फल-सब्ज़ियों एवं खाद्य तेलों की महंगाई और बढ़ने की बड़ी आशंका है। नि:संदेह देश का जन-साधारण और खास तौर पर गरीब वर्ग चक्की का दो-दो पाटों में पिस रहा है। हम समझते हैं कि केन्द्र अथवा प्रदेशों में सरकार किसी भी दल की रही हो, जन-साधारण को महंगाई के इस त्रास से मुक्ति दिलाये जाने की आज बड़ी आवश्यकता प्रतीत होती है।