लोकसभा उप-चुनाव : वायनाड में प्रियंका के लिए जीत आसान नहीं
नामांकन वापिस लेने की अंतिम तिथि समाप्त होने के साथ ही केरल के तीन उप-चुनावों में तस्वीर साफ हो गयी है। सीपीआई (एम) को पलक्कड़ और चेलक्करा विधानसभा क्षेत्रों में स्पष्ट बढ़त हासिल है जबकि वायनाड लोकसभा क्षेत्र में प्रियंका गांधी के लिए जीत आसान नहीं है।
राहुल गांधी द्वारा रायबरेली निर्वाचन क्षेत्र को बरकरार रखने के लिए सीट खाली करने के बाद वायनाड उप-चुनाव की आवश्यकता पड़ी। पलक्कड़ और वायनाड विधानसभा क्षेत्र कांग्रेस के शफी परम्बिल और माकपा के के. राधाकृष्णन द्वारा खाली किये गये थे, जिन्होंने क्रमश: वडकारा और अलाथुर से लोकसभा चुनाव जीता था। जहां एक ओर प्रियंका गांधी को वायनाड के लिए कांग्रेस उम्मीदवार बनाया गया है, युवा कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष राहुल मंगूट्टाथिल और रेम्या हरिदास जो अलाथुर से लोकसभा चुनाव हार गये थे, पलक्कड़ और चेलाक्कारा के लिए पार्टी के उम्मीदवार हैं।
कांग्रेस, जिसने लगातार तीन बार पलक्कड़ जीता है, इस बार मुख्य रूप से राहुल की उम्मीदवारी के खिलाफ आंतरिक विद्रोह के कारण कठिन चुनौती का सामना कर रही है, जो पलक्कड़ जिला कांग्रेस समिति (डीसीसी) और स्थानीय पार्टी नेताओं और कार्यकर्ताओं की इच्छा के विरुद्ध है। डीसीसी चाहती थी कि वरिष्ठ कांग्रेस नेता के. मुरलीधरन पलक्कड़ से चुनाव लड़ें। दिलचस्प बात यह है कि पहली सूची में राहुल का नाम बिल्कुल भी नहीं था! मुरली पर विचार नहीं किया गया क्योंकि वह केरल में विपक्ष के नेता वी.डी. सतीसन की नज़र में खटकते हैं। यह एक तरह से शफी और सतीशन द्वारा पलक्कड़ में राहुल को थोपने की साज़िश थी।
एकतरफा कार्रवाई ने पलक्कड़ में एक बड़ा विद्रोह शुरू कर दिया, जिसकी परिणति कांग्रेस के राज्य डिजिटल मीडिया सेल के संयोजक पी. सरीन के इस्तीफे और उनके सीपीआई (एम) में शामिल होने के रूप में हुई। इस फैसले के कारण कुछ और कांग्रेसी नेता भी पार्टी से बाहर हो गये। एक चतुर चाल में सीपीआई (एम) ने सरीन को निर्वाचन क्षेत्र से एलडीएफ समर्थित स्वतंत्र उम्मीदवार के रूप में नामित किया है। यह एक अच्छा कदम था क्योंकि सरीन न केवल सीपीआई (एम) के वोट हासिल करेंगे बल्कि असंतुष्ट कांग्रेस के वोटों का एक बड़ा हिस्सा भी छीन लेंगे। लेफ्ट डेमोक्रेटिक फ्रंट (एलडीएफ ) खेमा इस बात को लेकर आशान्वित है कि इस चुनाव में जो पार्टी पिछले तीन चुनावों में तीसरे स्थान पर रही थी, वह बदली हुई राजनीतिक स्थिति को देखते हुए विजेता बनकर उभरेगी।
वायनाड लोकसभा सीट पर त्रिकोणीय मुकाबला होने वाला है। कांग्रेस की राष्ट्रीय सचिव प्रियंका गांधी (यह उनका पहला चुनावी मुकाबला है) पार्टी की उम्मीदवार हैं, वहीं सीपीआई ने एलडीएफ उम्मीदवार के तौर पर पार्टी के वरिष्ठ नेता सत्यनमोकेरी को मैदान में उतारा है। भाजपा ने अपने उम्मीदवार के तौर पर नया चेहरा नव्या हरिदास को उतारा है। नव्या एक राजनीतिक रूप से कमज़ोर चेहरा हैं, जिन्हें मालाबार क्षेत्र में भाजपा का युवा चेहरा माना जाता है। वह कोझिकोड निगम में दो बार भाजपा की प्रतिनिधि रह चुकी हैं। कांग्रेस आत्मविश्वास से भरी तस्वीर पेश करती दिख रही है। पार्टी नेताओं का कहना है कि दिलचस्प बात सिर्फ यह है कि प्रियंका की जीत का अंतर कितना है। गौरतलब है कि पिछले आम चुनाव में वायनाड से जीतने वाले राहुल गांधी का वोट शेयर 2019 में 64.94 प्रतिशत से घटकर 59.69 प्रतिशत रह गया। इसके विपरीतए सीपीआई की एनी राजा ने अपने वोट शेयर में 0.8 प्रतिशत की वृद्धि की, जबकि भाजपा के. के. सुरेंद्रन, जो पार्टी की केरल इकाई के प्रमुख हैं, के वोट शेयर में वृद्धि देखी गयी।
कांग्रेस को लगता है कि प्रियंका के लिए चुनाव जीतना आसान होगा। हालांकि ज़मीनी हकीकत कुछ और ही है। सीपीआई ने इस बार पार्टी के वरिष्ठ नेता सत्यन मोकेरी को मैदान में उतारा है। सत्यन को हराना कोई आसान काम नहीं है। उन्होंने वायनाड से पिछले चुनाव में कांग्रेस उम्मीदवार एमआई शानवास को एक लाख से अधिक वोटों से कम करके मात्र 20,000 वोटों पर लाकर उन्हें डरा दिया था!
सत्यन की बेदाग साख ही उनकी खासियत है। किसानों के मुद्दों पर आवाज़ उठाने के कारण वह वायनाड में बेहद लोकप्रिय हैं। एक अतिरिक्त प्लस पॉइंट उनका विशाल विधायी अनुभव है। सत्यन ने 1987 से 2001 तक तीन कार्यकालों के लिए नादापुरम विधानसभा सीट का प्रतिनिधित्व किया था। वह अखिल भारतीय किसान सभा राज्य समिति के सदस्य और उपाध्यक्ष थे। एलडीएफ ने मोकेरी की जीत सुनिश्चित करने के लिए हरसंभव प्रयास किया है। उन्होंने एक सुव्यवस्थित अभियान शुरू किया है जिसे उत्साहपूर्ण अनुकूल प्रतिक्रिया मिल रही है।लेफ्ट डेमोक्रेटिक फ्रंट (एलडीएफ) ने पलक्कड़ और चेलाक्कारा उप-चुनावों को पिनाराईविजयन सरकार के साथ बढ़ते सार्वजनिक असंतोष के बैरोमीटर के रूप में चित्रित करने के संयुक्त विपक्ष के प्रयास को विफल करने में कामयाबी हासिल की है। यह केरल में कांग्रेस समर्थित बढ़ते बहुसंख्यक और अल्पसंख्यक सांप्रदायिकता के खिलाफ एक राजनीतिक संघर्ष के रूप में चुनावी लड़ाई को ढालने में भी सफल रहा है।
एलडीएफ ने मोदी सरकार द्वारा केरल को आर्थिक रूप से कमज़ोर करने के प्रयास पर कांग्रेस की चौंकाने वाली चुप्पी पर भी ध्यान केंद्रित किया है, जिसने वायनाड भूस्खलन पीड़ितों को अनिवार्य सहायता देने से इन्कार कर दिया। (संवाद)