सूर्योपासना का महापर्व है ‘छठ पूजा’

भारतीय संस्कृति में हर ऋतु में कोई न कोई पर्व आता है। ऋतु परिवर्तन को मनाने के लिए व्रत, पर्व और त्योहारों की एक शृंखला लोक जीवन को निरंतर आबद्ध किए हुए है। भारतीय संस्कृति की पहली विशेषता है ‘सर्वे भवंतु सुखिन:, अर्थात सभी सुखी हों’। दूसरी विशेषता है ‘आनो भद्रा कतयो यंतु विश्वत:, अर्थात जो श्रेष्ठ हो, कल्याणमय, ज्ञान और कर्म चारों ओर से हमारे पास आएं’। तीसरी विशेषता यह है कि भारतीय संस्कृति उत्सव अनुगामिनी है। साथ ही विश्व में सबसे पुरातन है। भारतीय जीवन पर्वों के माध्यम से अपनी संस्कृति को जीवंत बनाए है। ये पर्व सच्चे अर्थों में भारतीय संस्कृति के रसायन हैं। सभी पर्वों के अपने-अपने उद्देश्य हैं। इन्हीं विशेषताओं में एक है लोक संस्कृति का महापर्व ‘छठ’। इसे सूर्योपासना का महापर्व भी कहते हैं। छठ पूजा का पर्व वर्ष में दो बार आता है। छठ पूजा का पर्व हिंदी कैलेंडर के अनुसार कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की षष्ठि तिथि को मनाया जाता है और दूसरा चैत्र माह की षष्ठि तिथि को आता है, लेकिन मुख्य रूप से कार्तिक मास की छठ पूजा का पर्व ही मनाया जाता है। 
छठ पर्व विदेशों में भी भारतीय संस्कृति की अपनी छाप छोड़ने में कामयाब रहा है। वहां रहने वाले भारतीय प्रवासी इन त्यौहारों का जमकर लुत्फ उठाते हैं। दिवाली की रौनक के छह दिन बाद हर साल छठ का पर्व दस्तक देता है। यह पर्व बिहारवासियों के लिए खास महत्व रखता है। यूपी, बिहार, पूर्वांचल, झारखंड और नेपाल के कई हिस्सों में मनाया जाने वाला यह लोकपर्व आज महापर्व का रूप ले चुका है। इस महापर्व को पवित्रता, निष्ठा, भक्ति और श्रद्धा के साथ ही सूर्य की उपासना और अराधना का प्रतीक माना जाता है। चार दिन तक चलने वाले इस त्यौहार में महिलाएं 36 घंटे का उपवास रखती हैं और अपने पति और पुत्र के लिए दीर्घायु की कामना करती हैं। इस पर्व को राजनीति से जुड़े हुए लोग भी पूरे रीति-रिवाज के साथ मनाते हैं। लालू प्रसाद यादव उन राजनीतिज्ञों में प्रमुख हैं, जो इस पर्व को हर साल एक शानदार तरीके से मनाते आ रहे हैं। छठ पर्व की महिमा अपार है। सुख-स्मृद्धि तथा मनोकामना पूर्ति के लिए इस त्यौहार को सभी स्त्री और पुरुष समान रूप से मनाते हैं।
छठ पूजा की सबसे महत्वपूर्ण बात इसकी सादगी, पवित्रता और लोकपक्ष है। भक्ति और अध्यात्म से परिपूर्ण इस पर्व के लिए न तो विशाल पंडालों की, न भव्य मंदिरों की और न ही ऐश्वर्य युक्त मूर्तियों की ज़रूरत होती है। आधुनिकता की चकाचौंध और शोरगुल से दूर यह पर्व बांस से बने सूप, टोकरी, मिट्टी के बर्तनों, गन्ने, गुड़, चावल और गेहूं से बने प्रसाद और सुमधुर लोक गीतों से सबके जीवन में भरपूर मिठास भरने का काम करता है।
वैसे तो लोग उगते हुए सूर्य को प्रणाम करते हैं, लेकिन छठ पूजा एक ऐसा अनोखा पर्व है जिसकी शुरुआत डूबते हुए सूर्य की आराधना से होती है। शब्द ‘छठ’ संक्षेप शब्द ‘षष्ठि’ से आता है, जिसका अर्थ ‘छ:’ है, इसलिए यह त्यौहार चंद्रमा के आरोही चरण के छठे दिन, कार्तिक महीने के शुक्ल पक्ष पर मनाया जाता है। इसमें सूर्यदेव की उपासना की जाती है। छठ पर्व को लेकर महाभारत और रामायण काल से कथाएं जुड़ी हुई हैं।
यह माना जाता है कि छठ पूजा का उत्सव प्राचीन वेदों में स्पष्ट रूप से बताया गया है। पूजा के दौरान किए गए अनुष्ठान ऋग्वेद में वर्णित अनुष्ठानों के समान हैं, जिसमें सूर्य की पूजा की जाती है। उस समय ऋषियों को सूर्य की पूजा करने के लिए भी जाना जाता था और कि वे अपनी ऊर्जा सीधे सूर्य से प्राप्त करते थे। ऐसा कहा जाता है कि महाभारत काल में महान ऋषि धौम्य की सलाह के बाद द्रौपदी ने पांडवों को कठिनाई से मुक्ति दिलाने के लिए छठ पूजा का सहारा लिया था। इस अनुष्ठान के माध्यम से, वह तत्काल समस्याओं को हल करने में सक्षम रहीं। बाद में, पांडवों ने हस्तिनापुर में अपने राज्य को पुन: प्राप्त किया था। ऐसा कहा जाता है कि सूर्य के पुत्र कर्ण, जो कुरुक्षेत्र के महान युद्ध में पांडवों के खिलाफ लड़े थे, ने भी छठ का अनुष्ठान किया था। पूजा का एक अन्य महत्व भगवान राम की कहानी से भी जुड़ा हुआ है। प्राचीन ग्रंथों के अनुसार राम और उनकी पत्नी सीता जी ने भी उपवास किया था और 14 साल के निर्वासन के बाद शुक्ल पक्ष में कार्तिक के महीने में सूर्य देव की प्रार्थना की थी। तब से छठ पूजा एक महत्वपूर्ण और पारंपरिक हिंदू उत्सव बन गया है जिसे हर साल उत्साह से मनाया जाता है। इन कथाओं के अलावा एक और किंवदंती भी प्रचलित है। पुराणों के अनुसार प्रियव्रत नामक एक राजा की कोई सन्तान नहीं थी। इसके लिए उसने सभी यत्न कर डाले, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ। तब राजा को संतान प्राप्ति के लिए महर्षि कश्यप ने पुत्रयेष्टि यज्ञ करने का परामर्श दिया था।
यज्ञ के बाद महारानी ने एक पुत्र को जन्म दिया लेकिन वह मृत पैदा हुआ। राजा के मृत बच्चे की सूचना से पूरे नगर में शोक छा गया। कहा जाता है कि जब राजा मृत बच्चे को दफनाने की तैयारी कर रहे थे, तभी आसमान से एक ज्योतिर्मय विमान धरती पर उतरा। उसमें बैठी देवी ने कहा, ‘मैं षष्ठि देवी व विश्व के समस्त बालकों की रक्षिका हूं।’ इतना कह कर देवी ने शिशु के मृत शरीर को स्पर्श किया जिससे वह जीवित हो उठा। इसके बाद से ही राजा ने अपने राज्य में यह त्योहार मनाने की घोषणा कर दी।
लोकप्रिय विश्वास यह भी है कि सूर्य भगवान की पूजा कुष्ठ रोग जैसी बीमारियों को भी समाप्त करती है और परिवार की दीर्घायु और समृद्धि सुनिश्चित करती है। यह सख्त अनुशासन, शुद्धता और उच्चतम सम्मान के साथ की जाती है और एक बार जब कोई परिवार छठ पूजा शुरू कर देता है, तो फिर उसका यह कर्त्तव्य हो जाता है कि वह परम्पराओं को पीढ़ियों तक पारित करे। छठ पूजा का पर्व घर परिवार के सभी सदस्यों की सुरक्षा एवं स्वास्थ्य लाभ के लिए मनाया जाता है। इस दिन प्राकृतिक सौंदर्य एवं परिवार के कल्याण के लिए पूजा की जाती है। माना जाता है कि छठ पूजा करने से परिवार में सुख समृद्धि बनी रहती है एवं मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है।
कुछ महिलाएं पुत्र रत्न की प्राप्ति के लिए और पुत्र के कुशल मंगल रहने की कामना को लेकर इस दिन व्रत रखती हैं। वैसे तो इस दिन स्त्री एवं पुरुष दोनों ही लगभग समान रूप से व्रत रखते हैं। पुरुष भी अपने मनवांछित फल की प्राप्ति के लिये इस कठोर व्रत को रखते हैं। रोगी या फिर रोगी के परिवारजन रोग से मुक्ति पाने के पाने के लिए छठ पूजा करते हैं।