माफियावाद का बढ़ता दायरा

नशीले पदार्थों की तस्करी, अवैध हथियारों की बरामदगी और इनसे जुड़े माफिया गिरोहों से वाबस्ता हालिया दो ़खबरों ने एक ओर जहां देश के शांतप्रिय जन-साधारण को चौंकाया है, वहीं इससे यह भी पता चलता है कि देश में अमीबा की तरह पांव पसारते जाते माफियावाद और गैंगस्टरवाद की बाहें कितनी दूर और गहरे तक विस्तृत हो चुकी हैं। इनमें से एक ़खबर कनाडा में परिष्कृत नशा तैयार करने वाली एक प्रयोगशाला के पकड़े जाने, और वहां से अब तक की नशीले पदार्थों की सबसे बड़ी बरामदगी होने से ताल्लुक रखती है, और दूसरी खबर गैंगस्टरों से सम्बद्ध आपराधिक तत्वों से बड़ी मात्रा में हथियार बरामद होने की है। इन दोनों खबरों से उपजता एक त्रासद पक्ष यह भी है, कि इन दोनों घटनाओं का संबंध प्रत्यक्ष रूप से पंजाब से जुड़ता है। यहां तक कि कनाडा की घटना को लेकर गिरफ्तार होने वाला व्यक्ति भी पंजाबी मूल का ही है। इससे यह भी पता चलता है कि नशीले पदार्थों की तस्करी, गैंगस्टरवाद और माफिया गतिविधियों के लिए कनाडा की धरती भी एक बड़ा केन्द्र बनती जा रही है। सम्भवत: इसी कारण पंजाब और इसकी सीमाओं से जुड़े हरियाणा, राजस्थान और राजधानी दिल्ली के आस-पास के क्षेत्र आजकल गैंगस्टरवाद के लिए बेहद ज़रखेज़ बने हुए दिखाई देते हैं।
माफिया और गैंगस्टरवाद से जुड़ी जिस एक अन्य खबर ने आजकल पूरे देश को दहला कर रखा हुआ है, वह अपराध जगत पर बड़ी तेज़ी से उभरे एक आपराधिक-तत्व लारैंस बिश्नोई से वाबस्ता है, और लारैंस का संबंध भी पंजाब, हरियाणा, दिल्ली और राजस्थान से है।  अपने देश में माफियावाद को इतना विशाल आकार पिछली शताब्दी के आठवें-नौवें दशक में मुम्बई और दुबई में बैठ कर दबंगता करने वाले दाऊद इब्राहिम ने दिया था, हालांकि इससे पूर्व भी हाजी मस्तान, करीम लाला, अरुण गवली और छोटा राजन जैसे कई माफिया गिरोह अपने वजूद का दबदबा दर्शाते रहे हैं। दाऊद इब्राहिम के कारण ही इस माफिया गिरोह को डी-कम्पनी कहा जाता था, जिसका अगला छोर, मौजूदा समय के बेहद घातक सिद्ध हुए गैंगस्टर लारैंस बिश्नोई की एल-कम्पनी से जा जुड़ता है। डी-कम्पनी और एल-कम्पनी के बीच एक सांझा सूत्र यह भी दिखाई देता है कि जैसे दाऊद एक समय विश्व के कई देशों में आतंक का पर्याय बना था, वैसे ही आज लारैंस बिश्नोई के नाम का आपराधिक डंका भारत के अलावा कनाडा, नेपाल, पाकिस्तान, बांग्लादेश, सिंगापुर, थाईलैंड, फिलीपीन्स जैसे कई देशों में बज रहा है। गैंगस्टरवाद और माफियाओं का आतंक बेशक भारत में स्वतंत्रता-प्राप्ति के बाद से निरन्तर किसी न किसी रूप में बना रहा है, किन्तु आजकल इस दहशत का दायरा भारत देश से बाहर वहां-वहां बड़ी शिद्दत के साथ दरपेश हुआ है, जहां-जहां भारतीय और खास तौर पर पंजाबी बड़ी संख्या में रहते हैं। 
वैश्विक मानचित्र पर माफिया शब्द का चलन इटली में हुआ माना जाता है, किन्तु कालांतर में इटली का यह माफियावाद भारत में पनपना शुरू हुआ, तो देश के मुम्बई, गोवा, कोलकाता आदि कई राज्यों को इसने आतंक, भय और हिंसा की दल-दल में आकण्ठ धकेल दिया था। आज इस माफिया कम्पनी के आतंक का आलम यह है कि लारैंस बिश्नोई ने  देश में बाकायदा एक समानांतर सत्ता स्थापित कर रखी है। लारैंस के खुद विगत 12 वर्ष से जेल में होने बावजूद उसके गिरोह के गुर्गे फिरौतियां, रंगदारी मांगते हैं, और अपहरण तथा हत्याएं करते हैं। जब्री कब्ज़े, भाड़े की हत्याएं और हेरोइन आदि नशीले पदार्थों का कारोबार भी इस कम्पनी की गतिविधियों में शामिल रहता है जिससे इन्हें करोड़ों रुपये की सालाना आय अर्जित होती है। इस माफिया की कार्य-प्रणाली का विश्लेषण करने से पता चलता है कि इस गिरोह में लगभग 770 सक्रिय सदस्य भर्ती हैं जो माल सप्लाई के अतिरिक्त हथियार लाने-लेजाने और सूचनाओं के आदान-प्रदान का काम करते हैं। गैंग में 123 शार्प शूटर भी शुमार हैं जिनका कार्य केवल लक्षित हत्याएं करना और सुपारी का लेना-देना होता है। इस कम्पनी की गतिविधियों को जान-समझ कर यह अनुमान भी सहज रूप से लगाया जा सकता है कि आज की एल-कम्पनी कल वाली डी-कम्पनी की राख में से उपजे कुकनूस जैसी ही है। स्थितियों का एक त्रासद पक्ष यह भी है कि एल-कम्पनी की आगे एकाधिक शाखाएं-उपशाखाएं आक्टोपस की भांति राष्ट्र की प्रतिष्ठा और अस्मिता को ग्रसने लगी हैं। नि:संदेह इस घटनाक्रम ने विदेशों में राष्ट्र की छवि को धूमिल किया है। विगत समय में कनाडा में हुईं भिन्न-भिन्न आपराधिक घटनाओं में भी इस गिरोह का नाम सामने आया था। यहां बता दें कि पंजाबी गायक शुभदीप सिंह उर्फ सिद्धू मूसेवाला तथा महाराष्ट्र के विधायक बाबा सिद्दीकी की हत्या करवाने के पीछे भी इसी गिरोह का हाथ बताया जा रहा है।
हम समझते हैं कि यह स्थिति देश की भावी नियति के लिए बेहद घातक प्रतीत होती है। इसने देश और समाज की एकता, अखण्डता एवं साम्प्रदायिक सौहार्द को भी आघात पहुंचाया है। इसे नकेल डालने के लिए नि:संदेह राजनीतिक एवं प्रशासनिक दृढ़ता के साथ एक प्रतिबद्ध एवं दृढ़ इच्छा-शक्ति की भी बड़ी ज़रूरत है। चूंकि आज इस कम्पनी के बढ़ते दायरे के भीतर अन्य आपराधिक तत्व भी जुड़ने लगे हैं, अत:  इस पर नियंत्रण पाने के लिए देश और खासकर उत्तर भारतीय राज्यों की सभी सरकारों और इनकी गुप्तचर एवं गोपनीय एजेंसियों को पूरी प्रतिबद्धता के साथ सक्रिय किया जाना ज़रूरी होगा। हम यह भी समझते हैं कि इससे पहले कि यह एक राष्ट्र-विरोधी होता गठबन्धन देश की एकता एवं अखण्डता को प्रभावित करने लगे, इस आक्टोपस के वजूद को कानून के शिकंजे में लपेटना होगा।