मुफ्त के वायदों पर गर्मायी राजनीति

चुनावों के दौरान राजनीतिक पार्टियां मतदाताओं को लुभाने के लिए तरह-तरह के वादे और प्रतिवादे करती है। सरकार बनने के बाद चुनावी वादे पूरा करने में पार्टियों के पसीने छुट जाते है। कई राज्यों की अर्थव्यवस्था तो चौपट तक हो जाती है जिसके कारण सम्बद्ध सरकारों को अपने कर्मचारियों के वेतन आदि  चुकाने के लाले पड़ जाते है। हाल ही एक चुनावी गारंटी की योजना पर कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे को कहना पड़ा कि ऐसे वादे नहीं करे जो बाद में पूरे नहीं किये जा सकते। इससे सरकार को दिवालियेपन का सामना करना पड़ सकता है। इस पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक्स पर हैशटैग कांग्रेस के झूठे वादे के साथ पोस्ट की एक श्रृंखला में कहा कि पूरे भारत में यह अहसास बढ़ रहा है कि कांग्रेस को वोट देना गैर-शासन, खराब अर्थव्यवस्था और बेमिसाल लूट के लिए वोट है। उन्होंने कहा कि कांग्रेस की तथाकथित गारंटी अधूरी है, जो इन राज्यों के लोगों के साथ भयानक धोखा है। खड़गे और मोदी के वार पलटवार से देश की राजनीति गरमा उठी और चुनावी वादों बनाम रेवड़ी कल्चर का जिन्न एक बार फिर बोतल से बाहर आ गया। गौरतलब है हरियाणा और जम्मू कश्मीर के बाद महाराष्ट्र और झारखंड विधानसभा चुनावों में एक बार फिर रेवड़ी कल्चर की गूंज सुनाई देने लगी है। चुनाव आते ही वोटरों को लुभाने के लिए जिस तरह राजनीतिक दल और उनके नेता मुफ्त उपहार के वायदों की बरसात करते हैं, उससे एक नया शब्द रेवड़ी कल्चर भी जुड़ गया है। रेवड़ी कल्चर को चुनावों में जीत की गारंटी माना जाने लगा है। महाराष्ट्र और झारखंड के विधानसभा चुनावों में मुफ्त की बारिश हो रही है। राजनैतिक पार्टियों द्वारा मत हासिल करने के लिए राजकीय कोष से मुफ्त सुविधाएं देने का प्रकरण राजनतिक हलकों में गर्माने लगा है। देश की प्रबुद्ध जमात का मानना है इससे हमारे लोकतंत्र की बुनियाद हिलने लगी है। राजनीतिक दलों द्वारा चुनावों के दौरान इस तरह के वादे करने का चलन लगातार बढ़ता ही जा रहा है। चुनाव प्रचार के दौरान राजनीतिक पार्टियां आम लोगों से अधिक से अधिक वायदे करती हैं। इसमें से कुछ वादे मुफ्त में सुविधाएं या अन्य चीजें बांटने को लेकर होती हैं। यह देखा गया है कुछ सालों से देश की चुनावी राजनीति में मुफ्त बिजली-पानी, मुफ्त राशन, महिलाओं को नकद राशि, सस्ते गैस सिलेंडर आदि आदि अनेक तरह की घोषणाओं का चलन बढ़ गया है। विशेषकर चुनाव आते ही वोटर्स को लुभाने का सिलसिला शुरू हो जाता है। हरियाणा और जम्मू कश्मीर के चुनाव इसके ज्वलंत उदाहरण है। मुफ्त का मिल जाये तो उसका जी भर उपयोग करना। ये मुफ्त की नहीं है अपितु जनता के खून पसीनें की कमाई है जो राजनीतिक दलों और सरकारों द्वारा दी जा रही है ताकि चुनाव की बेतरणी आसानी से पार की जा सके। देश के प्रधानमंत्री रेवड़ी कल्चर का विरोध कर चुके है मगर चुनावों में उनकी पार्टी भाजपा सहित कांग्रेस और ‘आप’ सहित सभी पार्टियां रेवड़ी कल्चर में डुबकियां लगा रही है। 
देखा गया है चुनावों में सभी दल लोकलुभावन वादों के जरिए दूसरे दलों से आगे निकलने की जुगत में हैं। आम आदमी पार्टी मुफ्त सुविधाएं देने के वादों में सबसे आगे है। यह पार्टी मतदाताओं को मुफ्त बिजली पानी आदि लुभावनी घोषणाएं कर दिल्ली और पंजाब में सत्ता हासिल कर चुकी है। जिन्हें मुफ्त की योजनाएं मिल रही हैं वो कहते हैं कि फ्रीबीज या रेवड़ी कल्चर सही है, लेकिन जो टैक्सपेयर हैं और जिनकी कमाई का कुछ हिस्सा टैक्स में जाता है वो इसे गलत बताते हैं। पिछले अनेक चुनावों में मुफ्त उपहार और सुविधाएं देने की एक परंपरा सी पड़ गई। मतदाता भी ऐसी घोषणाओं का इंतज़ार करते है जो किसी भी स्थिति में लोकतंत्र के हितकारी नहीं कहा जा सकता। 
सुप्रीम कोर्ट में दाखिल की गई एक जनहित याचिका में ऐसे राजनीतिक दलों के रजिस्ट्रेशन रद्द करने और उनके चुनाव चिंह जब्त करने की मांग की गई, जो मतदाताओं को मुफ्त में सुविधाएं देने के वादे कर रहे हैं। इस याचिका में कहा गया है कि राजनीतिक लाभ हासिल करने के लिए पब्लिक फंड से चुनाव से पहले वोटरों को लुभाने के लिए मुफ्त उपहार देने का वादा करने या मुफ्त उपहार बांटना स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव के खिलाफ है। यह वोटरों को प्रभावित करने और लुभाने का प्रयास है। इससे चुनाव प्रक्रिया प्रदूषित होती है। याचिकाकर्ता ने कहा कि इससे चुनाव मैदान में एक समान अवसर के सिद्धांत प्रभावित होते हैं। याचिका में याचिकाकर्ता ने कहा है, कि अब वह समय दूर नहीं, जब एक राजनीतिक दल कहेगा कि ‘हम आपके आवास में आपके लिए खाना बनाएंगे’। जबकि, दूसरा यह कहेगा कि हम न केवल खाना बनाएंगे, बल्कि आपको खिलाएंगे भी।