भारत से अमरीका की ओर बढ़ रहा है अवैध प्रवास   

अभी तक तो अमरीका में अवैध घुसपैठ करने वालों में मेक्सिको के ही लोग आगे हैं, लेकिन जिस तेज़ी से भारतीय लोग उनको टक्कर दे रहे हैं, उससे लग रहा है कि भारतीय नागरिक अमरीका के पड़ोसी मेक्सिको को पीछे छोड़ देंगे। हैरानी की बात है कि अमरीका से 17 हज़ार किलोमीटर दूर स्थित भारत, जहां प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में अमृतकाल चल रहा है, वहां के नागरिक अमरीका में घुसने के लिए जान-माल की बाज़ी लगा रहे हैं और वहां से अपमानित करके भगाए जा रहे हैं। यह एक आम भारतीय के लिए और उससे भी ज्यादा सरकार के लिए शर्म की बात होनी चाहिए जिसका दावा है कि देश में 65 साल में जितना विकास हुआ, उससे ज्यादा उसने 10 साल में कर दिया। फिर भी यह स्थिति है कि भारतीय लोग भाग कर अमरीका और कनाडा में बसना चाहते हैं। ज्यादा शर्म की बात यह भी है कि अमरीका में अवैध रूप से घुसने की कोशिश करते समय में पकड़े जा रहे भारतीयों में आधी संख्या प्रधानमंत्री के अपने राज्य के गुजरात के लोगों की है। एक आंकड़ा है कि हर घंटे 10 भारतीय अवैध रूप से अमरीका में घुसने का प्रयास करते हुए पकड़े जा रहे हैं, जिनमें पांच गुजराती होते हैं। पिछले दिनों एक खबर आई थी कि कनाडा के रास्ते अमरीका में घुसने के प्रयास में एक गुजराती परिवार के चार सदस्य ठंड से ठिठुर कर मर गए थे। इस साल अमरीका ने 1100 भारतीयों को अपने देश से वापिस भेजा है। अभी 22 अक्तूबर को भी अमरीका से निकाले गए भारतीयों को लेकर एक जहाज़ पंजाब पहुंचा था। 
सात हज़ार विशेष रेलगाड़ियां चलाने की हवाबाज़ी
पिछले हफ्ते रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव ने प्रेस कॉन्फ्रैंस करके बताया कि इस बार छठ पर्व पर बिहार, झारखंड और पूर्वी उत्तर प्रदेश जाने वाले लोगों को दिक्कत नहीं होगी, क्योंकि रेलवे ने सात हज़ार विशेष रेलगाड़ियां चलाने का फैसला किया है। दावा किया गया कि पिछले साल साढ़े चार हज़ार विशेष रेलगाड़ियां चली थीं और इस बार सात हज़ार विशेष रेलगाड़ियां चलाई जाएंगी। यह भी बताया गया कि विशेष ट्रेनों के 3,050 फेरे लगेंगे। अब सवाल है कि सात हज़ार रेलगाड़ियां चलेंगी तो 3,050 फेरे कैसे लगेंगे? इससे बड़ा भ्रम पैदा हुआ। बाद में रेलवे अधिकारियों के हवाले से खबर आई कि 3,050 रेलगाड़ियां अतिरिक्त चलाई जाएंगी और कुछ रेलगाड़ियों में अतिरिक्त बोगियां लगाई जाएंगी। लेकिन यह नहीं बताया गया कि कहां से कितनी विशेष रेलगाड़ियां चल रही हैं। किस स्टेशन से कब और कितनी रेलगाड़ियां चलेंगी और बिहार, उत्तर प्रदेश या झारखंड में कहां तक जाएंगी? यह भी नहीं बताया गया कि क्या बिहार, झारखंड और उत्तर प्रदेश में रेलवे का बुनियादी ढांचा ऐसा है कि वह इतने छोटे अंतराल में इतनी विशेष रेलगाड़ियों का संचालन संभाल सके? हकीकत यह है कि विशेष रेलगाड़ियों को छोड़िए, नियमित रेलगाड़ियों की हालत खराब है। 6-6 घंटे की देरी से गाड़ियां रवाना हो रही है और 15-15 घंटे की देरी से गंतव्य पर पहुंच रही हैं। रेलवे स्टेशनों पर भगदड़ जैसे हालात हैं और लोग डिब्बों में ठूंस कर या डिब्बों के गेट पर लटकते हुए बिहार, उत्तर प्रदेश और झारखंड में अपने घर तक पहुंच पा रहे हैं।
क्या भारत खेलों में ऐसे बनेगा महाशक्ति?
शायद ही दुनिया के किसी देश में ऐसा होता होगा कि अगर एक मुकाबले में खिलाड़ियों ने अच्छा प्रदर्शन नहीं किया तो अगले मुकाबले से पहले उनके बजट में कटौती कर दी जाए और खिलाड़ियों की संख्या घटा दी जाए। आमतौर पर तो यही होता है कि खराब प्रदर्शन के बाद खर्च बढ़ाया जाता है और खिलाड़ियों का पूल बड़ा किया जाता है यानी उनकी संख्या बढ़ाई जाती है। लेकिन भारत में इसका उलटा हो रहा है। पेरिस ओलम्पिक में भारतीय दल के खराब प्रदर्शन के बाद खिलाड़ियों की संख्या में कटौती और उन पर होने वाले खर्च में भी कमी की जा सकती है। एक रिपोर्ट के मुताबिक मिशन ओलम्पिक सेल यानी एमओसी के सुझावों पर ऐसा किया जाएगा। हालांकि ऐसा नहीं है कि भारत ने ओलम्पिक के लिए खिलाड़ियों की तैयारी पर कोई करोड़ों-अरबों रुपये खर्च किए हैं। रिपोर्ट के मुताबिक टोक्यो ओलम्पिक से पेरिस ओलम्पिक के बीच यानी 2021 से 2024 के तीन साल में टारगेट ओलम्पिक पोडियम स्कीम यानी टीओपीएस के तहत महज 72 करोड़ रुपये खर्च किए गए थे। यह राशि तीन सौ खिलाड़ियों पर खर्च की गई थी। लेकिन जब पेरिस में भारतीय दल का अच्छा प्रदर्शन नहीं रहा तो अब कहा जा रहा है कि तीन सौ से कम खिलाड़ियों को इसका लाभ दिया जाएगा। अगर भारत को खेल महाशक्ति बनना है और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अमरीका, रूस, चीन आदि के वर्चस्व को चुनौती देनी है तो खेल पर होने वाले खर्च में कई गुना बढ़ोतरी करने के बजाय उसमें कटौती करने का क्या मतलब है?
पुनर्वास की प्रतीक्षा में सेवा-मुक्त अधिकारी    
मौजूदा सरकार अपने भरोसेमंद नौकरशाहों को उनके सेवा-मुक्त होने के बाद भी खाली नहीं बैठने देती है। उनका सेवा-मुक्ति करीब आते ही या तो उन्हें सेवा विस्तार दे देती है या फिर सेवा-मुक्त होने के बाद उन्हें किसी और काम में लगा देती है। किसी-किसी को तो पार्टी में शामिल कर राज्यसभा में ले आती है या राज्यपाल बना देती है। लेकिन केंद्रीय गृह सचिव के पद से सेवा-मुक्त हुए अजय कुमार भल्ला का इंतज़ार लम्बा होता जा रहा है। उनकी रिटायरमेंट की पार्टी में खुद गृह मंत्री अमित शाह ने कहा था कि वे थोड़े दिन तक छुट्टी का आनन्द लें, उसके बाद उन्हें बड़ी ज़िम्मेदारी संभालनी है, लेकिन बड़ी ज़िम्मेदारी अभी दिख नहीं रही है। इस बीच देश के नियंत्रक व महालेखापरीक्षक गिरीश मुर्मू नवम्बर में सेवा-मुक्त होने वाले है। उनके बाद दिसम्बर में रिज़र्व बैंक के गवर्नर शक्तिकांत दास सेवा-मुक्त होंगे। शक्तिकांत दास 2018 में रिज़र्व बैंक के गवर्नर बने थे। उन्हें तीन-तीन साल के दो कार्यकाल मिले। अब नया कार्यकाल मिलने की संभावना नहीं है। इसी तरह कैबिनेट सचिव राजीव गौबा भी सेवा-मुक्त होकर बैठे हैं। देखने वाली बात होगी कि इन सब लोगों को सरकार क्या देगी? दिल्ली पुलिस कमिश्नर पद से सेवा-मुक्त हुए राकेश अस्थाना और नीति आयोग से सेवा-मुक्त हुए अमिताभ कांत की तरह भल्ला, गौबा, मुर्मू और दास को कोई ज़िम्मेदारी मिलेगी या नहीं?
बहन से जगन मोहन की कड़वाहट बढ़ी
आंध्र प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री जगन मोहन रेड्डी और उनकी बहन वाई.एस. शर्मिला के बीच पहले से जारी कड़वाहट अब आर्थिक कारणों से बढ़ गई है और इसका असर राजनीति पर भी होगा। कांग्रेस के कई नेता यह संभावना देख रहे थे कि लोकसभा और विधानसभा चुनाव में बुरी तरह से हारने के बाद जगन मोहन बैकफुट पर हैं और ऐसे में उनके साथ बातचीत हो सकती है। पहले की तरह पूरे वाईएसआर रेड्डी परिवार के कांग्रेस में आने की संभावना देखी जा रही थी। वाई.एस. शर्मिला और उनकी मां विजयाम्मा तो पहले ही कांग्रेस में जा चुकी हैं, लेकिन अब एक पावर कम्पनी के शेयरों के ट्रांसफर को लेकर विवाद इतना बढ़ गया है कि जगन मोहन के साथ आने की संभावनाओं पर फिलहाल विराम लग गया है। असल में पावर कम्पनी के शेयरों को लेकर जगन मोहन ने नेशनल कम्पनी लॉ ट्रिब्यूनल में शिकायत की है कि उनकी ओर से अपनी मां को दिए गए शेयर गलत तरीके से वाई.एस. शर्मिला ने अपने नाम से ट्रांसफर करा लिए हैं। दूसरी ओर शर्मिला का कहना है कि जब जगन ने गिफ्ट डीड के ज़रिये अपने शेयर अपनी मां को ट्रांसफर कर दिए तो उन शेयरों को अगर मां आगे किसी को देती हैं तो उस पर आपत्ति का कोई कारण नहीं है। इस पर शुरू हुआ विवाद लम्बा चलने वाला है। वैसे भी अगला चुनाव 2029 में होना है, इसलिए कांग्रेस के नेता इस लड़ाई को दूर से देखेंगे। अगर परिवार में समझौता होता है तो फिर राजनीतिक दांव चले जाएंगे।