हंगामापूर्ण रहेगा संसद का शीतकालीन सत्र
संसद का शीतकालीन सत्र 25 नवम्बर से शुरू हो रहा है, जो 20 दिसम्बर तक चलेगा। विपक्ष की मुखरता के चलते हंगामेदार तो ज़ाहिर तौर पर होगा ही, क्योंकि विपक्ष पहले से ज्यादा मज़बूत होकर लोकसभा में आया है। लेकिन खास इस मामले में होगा कि सरकार कुछ बहुत बड़े और अहम विधेयक पेश कर उन्हें पारित कराने की कोशिश करेगी। मणिपुर के मामले में भी विपक्ष हमलावर होगा क्योंकि राज्य में नए सिरे से हिंसा भड़क गई है, लेकिन मणिपुर के अलावा पेश किए जाने वाले विधेयकों को लेकर ज्यादा विवाद होगा। सरकार जितने भी विधेयक पेश करने की तैयारी में है, विपक्ष उन सबका विरोध करेगा। संसदीय कार्य मंत्री कीरेन रिजीजू ने कहा है कि सरकार ‘एक देश, एक चुनाव’ का विधेयक इस सत्र में लाएगी। इस पर बड़ा विवाद होगा क्योंकि सभी विपक्षी पार्टियां इस विचार को खारिज कर चुकी हैं। हालांकि सरकार ज़ोर-जबरदस्ती से इसे पारित तो करा सकती है लेकिन लागू करना मुश्किल होगा। राज्यों की सहमति के बिना विधानसभाओं को भंग करने या उनका कार्यकाल छोटा करने का फैसला लागू नहीं किया जा सकेगा। इसी तरह सरकार वक्फ कानून में बदलाव का विधेयक लाएगी। इस पर संयुक्त संसदीय समिति में विचार हो रहा है लेकिन सबको पता है कि विचार के बाद जो संशोधित बिल आएगा, उसमें विपक्ष का कोई सुझाव शामिल नहीं किया जाएगा। अगर सरकार इसी सत्र में समान नागरिकता कानून का विधेयक लाने का प्रयास करती है तो विवाद और बढ़ेगा।
मोदी की नज़रें 2029 पर
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बारे में यह आम धारणा है कि वह हमेशा चुनावी मोड में रहते हैं और एक चुनाव जीतते ही अपनी टीम के साथ दूसरे चुनाव की तैयारी में जुट जाते हैं। अब यही बात भाजपा के सहयोगी और आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू ने औपचारिक रूप से कह दी है। उन्होंने एक मीडिया समूह के कार्यक्रम में कहा कि 2024 का लोकसभा चुनाव समाप्त होने और नई सरकार बनने के साथ ही मोदी अगले चुनाव यानी 2029 के चुनाव के लिए तैयारी में जुट गए हैं। नायडू के मुताबिक मोदी ने अगला चुनाव जीतने की योजना बना ली है। नायडू की माने तो भाजपा और मोदी की राजनीति के मुकाबले कांग्रेस और राहुल गांधी की राजनीति में फर्क साफ दिखाई देगा। कांग्रेस तो लोकसभा चुनाव के बाद हुए चार राज्यों के विधानसभा चुनावों की तैयारी भी ठीक से नहीं कर सकी और न ही इन चुनावों में उसने प्रचार ठीक से किया जबकि मोदी ने 2029 के लिए काम शुरू कर दिया है। इससे मोदी की सत्ता की भूख तो ज़ाहिर होती ही है, यह भी साबित होता है कि उन्होंने अपनी पार्टी को चुनाव लड़ने की मशीनरी बना दिया है। सरकार के फैसले भी चुनाव के हिसाब से होते हैं। इस लिहाज से कह सकते हैं कि भाजपा उस विद्यार्थी की तरह है, जो एक परीक्षा खत्म होते ही अगली परीक्षा की तैयारियों में जुट जाता है और कांग्रेस उस विद्यार्थी की तरह है, जिसकी पढ़ाई परीक्षा का टाइम टेबल आने के बाद शुरू होती है।
नाम बदलने का सिलसिला
भाजपा की सरकारों का ऐतिहासिक इमारतों, शहरों, जिलों, रेलवे स्टेशनों, हवाई अड्डों, मार्गों आदि का नाम बदलने का सिलसिला जारी है। देश के किसी न किसी हिस्से से आए दिन खबर आती है कि अमुक शहर का या अमुक स्टेशन का नाम बदल दिया गया या अमुक मार्ग का नया नाम रख दिया गया। इन सब में एक बात सामान्य होती है और वह यह कि पुराना नाम किसी मुस्लिम का होता है या उर्दू ओरिजिन का होता है। अभी ताज़ा मामला असम और राजस्थान सरकार का है। असम में हिमंत बिस्वा सरमा ने एक जिले का नाम बदल दिया है तो राजस्थान में सरकार ने अजमेर के एक होटल का नाम बदला है। अजमेर में राज्य पर्यटन निगम के होटल ‘खादिम’ का नाम बदल कर ‘अजयमेरू’ कर दिया गया है। कहा जा रहा है कि राजस्थान विधानसभा के अध्यक्ष और अजमेर उत्तर के विधायक वासुदेव देवनानी के आदेश पर ऐसा किया गया है। बताया जाता है कि पृथ्वीराज चौहान के समय और उससे पहले अजमेर का नाम अजयमेरू ही था। बहरहाल, अजमेर में किंग एडवर्ड मेमोरियल का नाम भी बदल कर स्वामी दयानंद सरस्वती के नाम पर करने का निर्देश दिया गया है। अजमेर के होटल के अलावा दूसरा बदलाव असम में हुआ है, जहां राज्य सरकार ने करीमगंज जिले का नाम बदल कर श्रीभूमि कर दिया है। मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने कहा है कि करीमगंज को सबसे पहले रबींद्रनाथ टैगोर ने श्रीभूमि-मां लक्ष्मी की भूमि कहा था। उनके दृष्टिकोण का सम्मान करते हुए यह नाम रखा गया है।
बीरेन सिंह के ब़ागी तेवर
मणिपुर में राष्ट्रपति शासन लगाने या नया मुख्यमंत्री बनाने की सुगबुगाहट के बीच राज्य के मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह ने विद्रोही तेवर दिखाते हुए संकेत दिया है कि वह आसानी से पद छोड़ने वाले नहीं हैं। उन्होंने विधायकों की बैठक बुला कर अपना शक्ति प्रदर्शन किया है और एक तरह से भाजपा के शीर्ष नेतृत्व यानी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह को चुनौती दी है। राज्य में भाजपा और उसके सहयोगी दलों के विधायकों की बैठक के बाद बीरेन सिंह ने केंद्र सरकार से मांग की है कि वह मणिपुर से अफस्पा यानी सशस्त्र बल विशेष अधिकार कानून हटाए और कुकी उग्रवादियों के खिलाफ सख्ती से कार्रवाई करे। लेकिन उनकी इस मांग का मकसद राजनीतिक है। दरअसल बीरेन सिंह कुकी आदिवासी समुदायों के खिलाफ बयानबाजी करके मैतेई समुदाय को अपने साथ जोड़े रखना चाहते हैं और भाजपा के आलाकमान को संदेश देना चाहते हैं कि अगर उन्हें हटाया गया तो बहुसंख्यक उनके साथ होंगे। बताया जा रहा है कि बीरेन सिंह को इस बात की जानकारी है कि भाजपा के शीर्ष नेतृत्व ने महाराष्ट्र और झारखंड में विधानसभा चुनाव की प्रक्रिया पूरी होने के बाद उन्हें हटाने का फैसला कर लिया है, इसलिए वह भी अपनी तैयारी कर रहे हैं। वह आसानी से समर्पण करने वाले नहीं हैं। वैसे भी भाजपा आलाकमान उत्तर भारत के राज्यों में जिस तरह कभी भी मुख्यमंत्री बदल देता है, उस तरह का बदलाव असम के अलावा पूर्वोत्तर के किसी राज्य में संभव नहीं है। इसलिए एक बार जो बन गया, वह बना हुआ है।
एग्ज़िट पोल की तमाशेबाज़ी
दुनिया के सभ्य और विकसित देशों में एग्ज़िट पोल काफी विश्वसनीय होते हैं। उनमें सर्वे एजेंसियां जो बताती हैं, वह आम तौर पर सही साबित होता है और इसलिए लोग उस पर भरोसा करते हैं, लेकिन भारत में ऐसा नहीं होता है। भारत में एग्ज़िट पोल की बुनियादी बातों का भी ध्यान नहीं रखा जाता है। यही वजह है कि अगर 10 एजेंसियां एग्ज़िट पोल करने का दावा करती हैं तो सबके नतीजे अलग-अलग होते हैं। इसका मतलब है कि एग्ज़िट पोल करने वाली एजेंसियां मनमाने तरीके से निष्कर्ष तैयार करती हैं या मतदाता भी उनके मजे लेते हैं और उनके सवाले के उलटे-सीधे जवाब देते हैं। इस बार दो राज्यों के विधानसभा चुनाव में एक दर्जन एग्ज़िट पोल हुए हैं, जिनमें आधी से ज्यादा एजेंसियां बिल्कुल नई हैं और लोगों पहली बार ही उनका नाम सुना है। लोकसभा चुनाव में और उसके बाद हरियाणा के विधानसभा चुनाव में बुरी तरह से फेल होने के बाद कई पुरानी और जमी-जमाई एजेंसियां इस बार शांत बैठी रहीं तो दूसरे लोगों को मौका मिल गया। कई नई एजेंसियां मार्केट में आ गईं, जिनमें से कुछ ने दावा किया कि दोनों राज्यों में भाजपा गठबंधन की सरकार बनेगी तो कुछ ने दावा किया कि दोनों जगह ‘इंडिया’ ब्लॉक की सरकार बनेगी। किसी की कोई जवाबदेही नहीं है। इनमें से किसी न किसी को तो सही साबित होना ही था। जो सही साबित हुआ, उसकी दुकान थोड़े दिन चलेगी और फिर कोई दूसरा उसकी जगह ले लेगा।