आम आदमी पार्टी के लिए एक और अवसर

पंजाब में सत्तारूढ़ आम आदमी पार्टी ने विधानसभा के चार क्षेत्रों पर हुए उप-चुनावों में से तीन क्षेत्रों में जीत हासिल करके एक बार पुन: अपनी राजनीतिक पकड़ बनी रहने का प्रमाण पेश किया है। नि:संदेह इससे आम आदमी पार्टी के नेताओं तथा कार्यकर्ताओं में उत्साह पैदा हुआ है। कुछ मास पहले लोकसभा के हुए चुनावों में पंजाब में इस पार्टी को बुरी तरह हार का सामना करना पड़ा था तथा यह 13 लोकसभा सीटों में से सिर्फ 3 सीटें ही जीत सकी थी। इसलिए उप-चुनावों में पार्टी को मिली जीत उसके लिए विशेष महत्त्व रखती है।
गिद्दड़बाहा से इसके उम्मीदवार हरदीप सिंह डिम्पी ढिल्लों अपने विरोधियों से बड़े अन्तर के साथ जीते हैं। डेरा बाबा नानक से गुरदीप सिंह रंधावा एवं चब्बेवाल से युवा नेता इशांक कुमार सफल रहे हैं परन्तु बरनाला क्षेत्र से इस पार्टी के नेता हरिन्दर सिंह धालीवाल चुनाव हार गए हैं। उनकी हार का कारण भी आम आदमी पार्टी के ब़ागी उम्मीदवार गुरदीप सिंह बाठ बने हैं, जोकि 16 हज़ार से अधिक वोट ले गये, जबकि हरिन्दर सिंह धालीवाल कांग्रेस के उम्मीदवार कुलदीप सिंह काला से मात्र 2157 मतों के अन्तर से ही हारे हैं। यदि उप-चुनावों में आम आदमी पार्टी की जीत का विश्लेषण करें तो यह बात उभर कर सामने आती है कि इसे प्रदेश में सत्तारूढ़ होने का भारी लाभ मिला है। आम आदमी पार्टी की सरकार ने अभी अपना अढ़ाई वर्ष का कार्यकाल ही पूरा किया है। इसका आधा कार्यकाल शेष पड़ा है। आज के समय में मतदाता बहुत सचेत रूप में अपने मताधिकार का उपयोग करते हैं। मतदाताओं ने इस उम्मीद से मतदान किया है कि जिस पार्टी ने अभी अढ़ाई वर्ष सत्ता में बने रहना है, उसके उम्मीदवारों को प्राथमिकता दी जाए ताकि उससे निजी कामकाज तथा विकास कार्य करवाए जा सकें।
दूसरी बात यह भी हुई है कि शिरोमणि अकाली दल की ओर से चुनाव मैदान खाली छोड़ने का लाभ भी आम आदमी पार्टी को मिला है। अकाली दल के मतदाताओं ने भाजपा या कांग्रेस की ओर जाने को ज्यादा प्राथमिकता नहीं दी। डेरा बाबा नानक में तो सुच्चा सिंह लंगाह के नेतृत्व में अकाली कार्यकर्ताओं ने आम आदमी पार्टी के उम्मीदवार गुरदीप सिंह रंधावा को वोट देने की सार्वजनिक तौर पर घोषणा ही कर दी थी। लोकसभा के चुनावों में कांग्रेस ने 7 सीटें जीत कर यह संकेत दिया था कि पंजाब की राजनीति में अब अगली बारी उसकी ही है, परन्तु उप-चुनावों ने उसका यह भ्रम तोड़ दिया है। इसके कई कारण रहे हैं। सबसे बड़ा कारण यह रहा है कि कांग्रेस प्रभावशाली ढंग से उप-चुनावों में प्रचार अभियान चलाने में असफल रही है। कांग्रेस हाईकमान ने भी पंजाब के इन उप-चुनावों में कोई ज्यादा दिलचस्पी नहीं दिखाई। कांग्रेस अध्यक्ष अमरेन्द्र सिंह राजा वड़िंग की पत्नी अमृता वड़िंग के चुनाव लड़ने के कारण उनकी सक्रियता ज्यादातर गिद्दड़बाहा तक ही सीमित हो गई थी। कांग्रेस के दो वरिष्ठ नेताओं की ओर से अपने ही पारिवारिक सदस्यों को चुनाव लड़वाना भी शायद कांग्रेसी कार्यकर्त्ताओं एवं मतदाताओं को ज्यादा उचित नहीं लगा। दूसरी ओर केन्द्र में सत्तारूढ़ भाजपा के  पंजाब विरोधी कुछ फैसलों एवं पंजाब भाजपा अध्यक्ष सुनील जाखड़ की पार्टी हाईकमान से नाराज़गी के कारण भाजपा उम्मीदवारों की चुनावी सम्भावनाएं बुरी तरह प्रभावित हुई दिखाई दी हैं। इन चुनाव परिणामों की रौशनी में कांग्रेस एवं भाजपा दोनों को अपनी-अपनी कमज़ोरियों पर विश्लेषण करना पड़ेगा।
जहां तक आदम आदमी पार्टी का संबंध है, हम समझते हैं कि प्रदेश के मतदाताओं ने लोकसभा चुनावों में अपनी नाराज़गी दिखाने के बाद उसे एक और अवसर दिया है। पिछले अढ़ाई वर्षों में उसके द्वारा लागू की गई नीतियों एवं उसकी कार्यशैली के प्रति लोकसभा चुनावों में लोगों ने असन्तोष का प्रकटावा किया था। अब जब मतदाताओं ने उस पर एक बार पुन: विश्वास प्रकट किया है तो उसे अपनी कमियों-कमज़ोरियों का खुले मन से विश्लेषण करना चाहिए चाहिए। कृषि संकट, औद्योगिक विकास में जड़ता, बेरोज़गारी, शिक्षा एवं स्वास्थ्य के क्षेत्र में अध्यापकों एवं डाक्टरी स्टाफ के रिक्त पड़े पदों एवं अमन-कानून की बिगड़ती स्थिति आदि मुद्दे सरकार का विशेष तौर पर ध्यान आकर्षित करते हैं। समूचे तौर पर प्रदेश की वित्तीय हालत सुधारना भी एक बड़ी चुनौती है। आगामी अढ़ाई वर्षों के लिए प्रदेश सरकार को समुचित नीतियां बना कर लागू करनी चाहिएं, ताकि प्रदेश एक बार फिर तेज़ गति से विकास के मार्ग पर आगे बढ़ सके।

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