कांग्रेस को अडानी, ईवीएम का मुद्दा छोड़ देना चाहिए
अगर हम सही दिशा में आगे बढ़ रहे हैं तो देर सवेर मंजिल तक पहुंच जाएंगे, अगर हम विपरीत दिशा में जा रहे हैं तो कभी भी मंजिल तक नहीं पहुंच पाएंगे। इसका मतलब है कि अगर हम चलते जा रहे हैं और मंजिल दूर होती जा रही है तो हमें अपनी दिशा पर विचार करना चाहिए। पिछले दस सालों से कांग्रेस पतन की ओर जाती दिखाई दे रही है लेकिन कांग्रेस यह समझने को तैयार नहीं है कि वो गलत दिशा में आगे बढ़ रही है। वास्तव में पिछले दस सालों से कांग्रेस राहुल गांधी के नेतृत्व में चल रही है और लगातार रसातल की ओर जाती दिखाई दे रही है। कांग्रेस को बेशक यह बात समझ नहीं आई है कि राहुल गांधी में राजनीतिक नेतृत्व करने की क्षमता नहीं है लेकिन उसके गठबंधन के सहयोगी अब समझ चुके हैं कि राहुल गांधी में नेतृत्व की क्षमता नहीं है। भाजपा से सीधे मुकाबले में कांग्रेस के लचर प्रदर्शन और उसके अहंकारी व्यवहार ने विपक्षी दलों को उसके खिलाफ खड़ा कर दिया है। अब विपक्षी दलों में राहुल गांधी के खिलाफ मुखरता बढ़ती जा रही है।
4 जून 2024 को जब लोकसभा चुनाव के नतीजे आये थे तो कांग्रेस की सीटें 99 तक पहुंच गई थी और विपक्षी गठबंधन की सीटें भी 232 तक पहुंच गई थी, तब राहुल गांधी का कद बहुत बड़ा दिखाई देने लगा था। पहले हरियाणा में कांग्रेस की बड़ी हार हुई और उसके बाद अब महाराष्ट्र में विपक्षी गठबंधन का लगभग सफाया हो गया है। हरियाणा के बाद महाराष्ट्र की हार ने विपक्षी गठबंधन में खलबली पैदा कर दी है। ममता बनर्जी ने राहुल गांधी को नेतृत्व में अक्षम करार देते हुए ‘इंडिया’ गठबंधन का नेतृत्व करने के लिए खुद को प्रस्तुत कर दिया है। ममता बनर्जी का कहना है कि उन्होंने ही ‘इंडिया’ गठबंधन को खड़ा किया था और वो उसका नेतृत्व करने को तैयार हैं। देखा जाये तो यह पूरा सच नहीं है बल्कि इस गठबंधन को खड़ा करने का श्रेय नितीश कुमार को दिया जाना चाहिए। नितीश कुमार ने ही कांग्रेस को साथ लेकर नया गठबंधन बनाना शुरू किया था। कई विपक्षी दल कांग्रेस के साथ गठबंधन नहीं करना चाहते थे लेकिन उनकी कोशिश के कारण वो कांग्रेस के साथ आने को तैयार हो गए।
कांग्रेस के लिए समस्या यह है कि ममता बनर्जी ने नेतृत्व करने के लिए खुद को प्रस्तुत किया तो समाजवादी पार्टी, एनसीपीए राजद और आम आदमी पार्टी ने उनका समर्थन कर दिया। कांग्रेस के लिए यह अच्छी खबर नहीं है कि सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी होने के बावजूद एक राज्य तक सीमित तृणमूल कांग्रेस की नेता को विपक्षी दल राहुल गांधी से बड़ी नेता मानते हैं। समाजवादी पार्टी के नेता रामगोपाल यादव ने बयान दिया कि कांग्रेस जहां भी भाजपा से लड़ रही है, वो वहां उससे पिट रही है। उन्होंने इसकी एक लिस्ट बना दी कि कांग्रेस कहां-कहां भाजपा से हारी है। इसका दूसरा मतलब यह है कि कांग्रेस विपक्षी दलों की मदद से भाजपा को हराने में कामयाब हो रही है जबकि वो जहां अकेले भाजपा से मुकाबला कर रही है, वहां वो हार रही है। कई विपक्षी नेताओं का कहना है कि अगर कांग्रेस भाजपा का मुकाबला कर पाती तो मोदी तीसरी बार प्रधानमंत्री नहीं बन पाते।
वास्तव में विपक्षी दल समझ चुके हैं कि वो कांग्रेस के नेतृत्व में सत्ता हासिल नहीं कर सकते। बड़ा सवाल यह है कि सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी को छोड़कर भी क्या विपक्षी दल सत्ता हासिल कर सकते हैं। मेरा मानना है कि यह संभव नहीं है और इस बात को नितीश कुमार भी जानते थे इसलिए उन्होंने सभी दलों को कांग्रेस के साथ गठबंधन करने के लिए मनाया था। वर्तमान भारतीय राजनीति का सच यह है कि विपक्षी दल कांग्रेस से ज्यादा राहुल गांधी से निराश हैं। राहुल गांधी कांग्रेस के सबसे बड़े नेता हैं इसलिए विपक्षी दल कांग्रेस से ही दूर जा रहे हैं। बेशक कांग्रेस में कोई नेता राहुल गांधी के नेतृत्व और नीतियों पर सवाल नहीं उठा सकता लेकिन गठबंधन के घटक दल सवाल उठाने लगे हैं। विपक्ष के कई नेता शुरू से राहुल गांधी को अपना नेता नहीं मानते हैं। इसमें ममता बनर्जी, अखिलेश यादव, केजरीवाल और शरद पवार जैसे नेता शामिल हैं। यही कारण है कि ममता बनर्जी का नाम आते ही कई नेता उनके नाम से सहमत हो गए जबकि सच्चाई यह है कि सबसे बड़ी पार्टी के नेता का नेतृत्व ही गठबंधन में होना चाहिए। क्षेत्रीय दलों का मानना है कि उन्होंने ही भाजपा की बढ़त को कम किया है जबकि कांग्रेस भाजपा को रोकने में असफल हुई है। कांग्रेस के पास भाजपा के खिलाफ मुद्दा ही नहीं है इसलिए वो भाजपा का मुकाबला नहीं कर पा रही है।
वायनाड से चुनाव जीतकर प्रियंका गांधी भी संसद में पहुंच गई हैं। प्रियंका गांधी ने लोकसभा में अपने पहले भाषण में ही बता दिया कि उनके पास भी कुछ नया नहीं है। उन्होंने अपने पहले भाषण में राहुल गांधी की लाइन पर चलकर अडानी, ईवीएम, हाथरस, उन्नाव और संभल का मुद्दा उठाया। राहुल गांधी पिछले दस सालों से अडानी और ईवीएम का मुद्दा उठा रहे हैं लेकिन इससे कांग्रेस को कुछ हासिल नहीं हो रहा है। अपने पहले भाषण में प्रियंका गांधी में आत्मविश्वास की कमी नज़र नहीं आई हालांकि इसके बावजूद वो राहुल गांधी से बेहतर नज़र आईं। प्रियंका गांधी को राहुल गांधी की लाइन से हटकर नई पहचान बनाने की ज़रूरत है। बेशक वो राहुल गांधी जैसे मुद्दे उठाती नज़र आयी लेकिन इसके बावजूद उनमें अभी भी उम्मीद नज़र आ रही है। प्रियंका गांधी ने भी राहुल गांधी की तरह भाजपा और प्रधानमंत्री मोदी पर बेतुके आरोप लगाए। उन्होंने कहा कि हिमाचल प्रदेश की हालत बहुत खराब है। हिमाचल प्रदेश का सेब किसान रो रहा है, हिमाचल प्रदेश में सारे कानून बड़े-बड़े उद्योगपतियों के लिए बन रहे हैं। उन्होंने इशारा किया कि अडानी के लिए हिमाचल प्रदेश में सबकुछ किया जा रहा है। उन्हें यह भी याद नहीं रहा कि हिमाचल प्रदेश में उनकी पार्टी की ही सरकार चल रही है।
वास्तव में अडानी और ईवीएम का मुद्दा न तो जनता का मुद्दा है और न ही विपक्ष का मुद्दा है। देखा जाये तो यह दोनों मुद्दे कांग्रेस के भी नहीं हैं। आज कांग्रेस की तीन प्रदेशों में सरकार चल रही है और इसके अलावा भी तीन प्रदेशों में कांग्रेस की गठबंधन में सरकार चल रही है। क्या इन सरकारों को चुनने के लिए जनता ने ईवीएम से वोट नहीं डाले थे। इसके अलावा तमिलनाडु, केरल व बंगाल में भाजपा की हालत अच्छी नहीं है जबकि चुनाव तो वहां भी ईवीएम से होते हैं। कांग्रेस को खुद से पूछना चाहिए कि क्या एम.के. स्टालिन, पिनराई विजयन और ममता बनर्जी ईवीएम के खिलाफ कांग्रेस का साथ दे सकते हैं। खुद प्रियंका गांधी ने ईवीएम से चुनाव लड़कर बड़ी जीत हासिल की है लेकिन अपने पहले ही भाषण में ईवीएम को कोस रही हैं। कांग्रेस जब ईवीएम पर उंगली उठाती है तो जनता की भावनाओं से खेलती है। कांग्रेस को ईवीएम के नाम पर जनादेश का अपमान नहीं करना चाहिए। राहुल गांधी को अडानी का विरोध बंद करना चाहिए क्योंकि न केवल विपक्षी दलों की सरकारें बल्कि कांग्रेस की सरकारें भी अडानी के साथ मिलकर काम कर रही हैं। अडानी का मुद्दा कांग्रेस को नुकसान पहुंचा रहा है, यह बात राहुल गांधी को जितनी जल्दी समझ आ जाए बेहतर है। कांग्रेस की बदहाली का कारण ही यही है कि वो जनता के मुद्दों को छोड़कर हवा-हवाई मुद्दों के पीछे दौड़ रही है।