स्मारक पर उठा विवाद
पूर्व प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह के निधन के बाद देश-विदेश में उन्हें भावपूर्ण श्रद्धांजलियां दी गई हैं। उनकी देश के प्रति देन को सराहा गया है। उनका अंतिम संस्कार राजकीय सम्मान से किया गया, जिसमें प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के अतिरिक्त उनके मंत्रिमंडल के वरिष्ठ मंत्री भी उपस्थित थे और उनके साथ कांग्रेस के वरिष्ठ नेता तथा उनके लिए सम्मान रखने वाले बड़ी संख्या में उपस्थित थे। उसके बाद वरिष्ठ कांग्रेसी नेताओं द्वारा केन्द्र की इस लिए आलोचना की गई कि संस्कार वाले स्थान निगम बोध घाट में प्रशासन द्वारा किये गए प्रबंध संतोषजनक नहीं थे। दूरदर्शन के अतिरिक्त अन्य टी.वी. चैनलों को अंतिम संस्कार की रस्मों को दिखाने की अनुमति नहीं दी गई। इस चैनल का अधिक ध्यान प्रधानमंत्री सहित अन्य मंत्रियों पर ही केन्द्रित रहा। यहां तक कि परिवार के सदस्यों की भी बड़ी अनदेखी की गई और इन अंतिम रस्मों में शामिल अन्य शख्सियतों तथा कार्यकर्ताओं को भी दृष्टिविगत किया गया। जहां तक डा. मनमोहन सिंह का संबंध है, चाहे वह कांग्रेस द्वारा ही प्रधानमंत्री बनाये गये थे, परन्तु 10 वर्षों के अपने प्रशासन में उन्होंने विपक्षी दलों तथा उनके नेताओं को कभी दृष्टिविगत नहीं किया और प्रत्येक स्थान पर उन्हें बनता सम्मान दिया जाता रहा।
डा. मनमोहन सिंह की श़िख्सयत ऐसी थी, जो अपने दुश्मन पैदा करने वाली नहीं थी। लोकतंत्र में विरोधी पार्टियों के नेताओं द्वारा उनका विरोध करना अप्राकृतिक नहीं था। वह गठबंधन सरकार के प्रधानमंत्री थे, परन्तु इसके अतिरिक्त उन्होंने विपक्षी पार्टियों के नेताओं के साथ भी लगातार संतुलन बनाने का यत्न अवश्य किया। उनके बाद बने इस दृश्य को लेकर राजघाट के निकट उनका स्मारक बनाने की बात ज़रूर चली है जहां कि पहले ही महात्मा गांधी, पंडित जवाहर लाल नेहरू तथा इंदिरा गांधी के अतिरिक्त लगभग सभी पूर्व प्रधानमंत्रियों तथा राष्ट्रपतियों के स्मारक मौजूद हैं। इस संबंध में उठ रहे विवाद को देखते हुए केन्द्रीय गृह मंत्रालय द्वारा यह स्पष्ट किया गया है कि सरकार राजघाट के निकट ही डा. मनमोहन सिंह की यादगार को जल्द ही बनाने के लिए सक्रिय होगी। हम समझते हैं कि डा. साहिब की श़िख्सयत तथा अपने जीवन में उनके द्वारा किये गये कार्यों तथा डाले गये बड़े योगदान के दृष्टिगत ऐसे विवाद नहीं उठने चाहिएं, क्योंकि उनका हमेशा यह यत्न रहा था कि वह स्वयं को अधिक से अधिक विवाद-रहित बनाए रखने का यत्न करें।
डा. साहिब ने भारत की आर्थिकता को एक नया मोड़ दिया है। उन्होंने वित्त मंत्री होते हुए अर्थव्यवस्था में उदारता की नीतियां लागू कीं, जिनसे भारत की अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पहचान बनी। देखने वाली बात यह है कि उनकी नीतियों ने भारतीयों के जीवन पर कितना प्रभाव डाला। आज देश की बड़ी ज़रूरत नौजवानों को रोज़गार देने की है। उस समय इन लागू की गई नीतियों से कितने रोज़गार के साधन पैदा हुए और इनसे देश में फैली गरीबी किस सीमा तक कम की जा सकी, आने वाले समय में उनके द्वारा अपनाई गई ऐसी नीतियां कितना कारगर साबित हो सकेंगी, इस आधार पर ही उन्हें याद किया जाता रहेगा। ऐसी भावना से ही उनके स्मारक का निर्माण किया जाना चाहिए।
—बरजिन्दर सिंह हमदर्द