महिलाओं के प्रति बहुत क्रूर और असंवेदनशील है तालिबान

तालिबान सुधरने को तैयार नहीं है महिलाओं के प्रति तालिबान की सोच 16वीं शताब्दी से बाहर नहीं निकल पाए रही है हाल ही में तालिबान ने एक के बाद एक ऐसे प्रतिबंध जारी किए हैं जिनमें महिलाओं को पुरुषों की तुलना में बहुत निचले दर्जे का नागरिक व लैंगिक भेदभाव की शिकार बनाया जा रहा है। आपको बता दें कि क्रूरता और खून खराबे के बाद अफगानिस्तान की सत्ता हासिल करने वाले तालिबान ने महिलाओं की जिंदगी नरक बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी है। क्रूर शासन के लिए जाने जाने वाले तालिबानी राज में जिस प्रकार से महिलाओं पर अत्याचार बढ़ता जा रहा है, वह पूरे वैश्विक समाज के लिए चिंता का विषय होनी चाहिए, क्योंकि अफगानिस्तान पर जब से तालिबान ने कब्ज़ा किया है, तब से लेकर अब तक सबसे ज्यादा अगर किसी पर जुल्म हुआ है, तो वह महिलाएं ही हैं। इस देश में जिस प्रकार से महिलाओं पर एक के बाद एक प्रतिबंध लगाए जा रहे हैं, उससे उनकी जिंदगी नर्क से भी बदतर होती जा रही है। हकीकत यह है कि यह देश महिलाओं के लिए नर्क के समान बनता जा रहा है, क्योंकि जिस प्रकार से उनको पाबंदियों के बेड़ियों में जकड़ा जा रहा है, उससे उनका सांस लेना भी दूभर होता जा रहा है। इस देश में महिलाओं के शिक्षा और स्वास्थ्य जैसे बुनियादी अधिकारों को तालिबान ने सत्ता में वापसी के बाद से पहले ही सौमित कर दिया है। 
तालिबान का नया फरमान है कि अफगानिस्तान में छठी कक्षा से ऊपर की लड़कियों को निजी शिक्षा केंद्रों में जाने पर बैन लगा दिया है। जिससे अफगानिस्तान में महिला शिक्षा पर प्रतिबंध और कड़े हो गए है। हेरात में तालिबान के शिक्षा निदेशक रहमतुल्लाह जाबेर ने तालिबान के सर्वोच्च नेता हिबतुल्लाह अखुंदजादा के एक आदेश का हवाला देते हुए एक पत्र में निर्देश की पुष्टि की। पत्र में प्रांत भर के सभी निजी शिक्षा केंद्रों में छठी कक्षा से ऊपर की लड़कियों की शिक्षा पर प्रतिबंध लगाने का आदेश दिया गया है।
यह कदम तालिबान द्वारा लड़कियों की माध्यमिक और विश्वविद्यालय शिक्षा पर पहले लगाए गए प्रतिबंधों के बाद उठाया गया है, जिसके कारण कई लड़कियों ने भाषा कक्षाओं और कला कार्यक्रमों जैसे वैकल्पिक शिक्षण अवसरों की तलाश की। कई लोगों के लिए, ये केंद्र आशा और उद्देश्य की अंतिम शरणस्थली थे।
शिक्षा केंद्रों पर तालिबान के प्रतिबंध ने हेरात में लड़कियों की उम्मीदों को और तोड़ दिया। हेरात में लड़कियों और युवतियों का कहना है कि शिक्षा पर तालिबान के नवीनतम प्रतिबंध ने सीखने और आत्म-सुधार की उनकी बची हुई उम्मीदों को नष्ट कर दिया है।
अब महिलाओं के बाहर की दुनिया देखने की आज़ादी पर भी रोक लगाने के लिए नया फरमान जारी किया है। इसके तहत नए बनने वाले घरों में खिड़कियां बड़कियां नहीं बनाई जाएंगी। नए फरमान के मुताबिक घरों में अब ऐसी खिड़कियां नहीं हो सकती हैं जिससे आंगन, रसोई घर, पड़ोसी का कुआं या महिलाओं के इस्तेमाल की जाने वाली किसी भी जगह की झलक दिखती हो। तालिबानी सोच के अनुसार महिलाओं को रसोई घर में काम करते हुए, बरामदे में आते-जाते या कुएं से पानी लेते हुए देखने पर अश्लील हरकतें होने की आशंका रहती है। अफगानिस्तान में तालिबान के सर्वोच्च नेता ने नए कानून की घोषणा करते हुए कहा है कि महिलाएं अगर घर से बाहर देखेंगी या फिर आते-जाते उनकी झलक गैर मर्दों को मिलेगी तो इससे अश्लील हरकतें हो सकती हैं। अगर देखा जाए तो यह महिलाओं पर होने वाले जुल्मों का इंतहा है, क्योंकि सत्ता में आने के बाद से तालिबान ने पहले से ही कई प्रतिबंध लगा रखे हैं। उन्हें अपनी मर्जी से कपड़े पहनने और अकेले बाहर जाने तक की आज़ादी नहीं है। तालिबान के तरफ से महिलाओं से जुड़ा एक और आदेश जारी किया गया है, जिसके तहत महिला कर्मचारियों को काम पर रखने वाले सभी राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय गैर-सरकारी संगठनों (एनजीओ) को बंद कर दिया जाएगा। यह कदम दो साल पहले दिए गए एक आदेश का विस्तार है, जब तालिबान ने अफगान महिलाओं को एनजीओ के कार्यों में शामिल होने से रोकते हुए उन्हें इस्लामी हिजाब सही तरीके से पहनने की शर्त पर काम करने की अनुमति दी थी। तालिबानी सरकार के अर्थव्यवस्था मंत्रालय ने हाल ही में एक पत्र जारी कर चेतावनी दी है कि यदि ये आदेश पालन नहीं किया गया, तो अफगानिस्तान में एनजीओ को काम करने के लिए दिया गया लाइसेंस रद्द कर दिया जाएगा। मंत्रालय ने कहा कि वह सभी राष्ट्रीय और विदेशी संगठनों की गतिविधियों का पंजीकरण, समन्वय, नेतृत्व और निगरानी करेगा। इस पत्र में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि तालिबान द्वारा नियंत्रित नहीं किए जाने वाले संस्थानों में महिला कर्मचारियों को काम पर रखने की गतिविधियों को बंद किया जाएगा, और ऐसे संस्थानों के लाइसेंस को रद्द कर दिया जाएगा। यह आदेश एनजीओ के कामकाजी ढांचे को और अधिक कड़ा बना देगा। तालिबान का यह कदम एनजीओ में महिला कार्यकर्ताओं की बढ़ती संख्या को प्रतिबंधित करने की ओर एक और बड़ा कदम है, जबकि संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने पहले ही यह चिंता जताई थी कि तालिबान द्वारा महिला अफगान मानवीय कार्यकर्ताओं के काम में बाधा डाली जा रही है। इसके बावजूद तालिबान इन आरोपों से इंकार करता है कि वह राहत कार्यों में हस्तक्षेप कर रहा है। तालिबान ने पहले ही अफगान महिलाओं को कई सरकारी नौकरियों, सार्वजनिक स्थानों और छठी कक्षा से ऊपर की शिक्षा से प्रतिबंधित कर दिया है। अगस्त, 2021 में जब से तालिबान सत्ता में लौटा है, तब से महिलाओं को धीरे-धीरे सार्वजनिक जगहों से हटाया जा रहा है। यह पहली बार नहीं हुआ जब खिड़कियों पर बैन लगाने जैसा कोई महिला विरोधी आदेश जारी किया गया है। इससे पहले कानून बनाया गया था कि महिलाएं घर से बाहर किसी भी सार्वजनिक स्थान पर चुप रहेंगी। यदि उन्हें किसी भी वजह से बोलना पड़ रहा है कि वह अपनी बात ऊंची आवाज करके नहीं बोल सकतीं। तालिबान सरकार ने घर के भीतर भी महिलाओं के लिए सख्त नियम बनाए गए हैं। महिलाओं के लिए कानून हैं कि वह घर के अंदर भी गाना नहीं गा सकतीं। इतना ही नहीं, वह जोर-जोर से कुछ पढ़ भी नहीं सकती है। 
तालिबान अपनी महिलाओं को हर दायरे से बाहर रख कर भले अपनी तथाकथित परंपरा को बचा लेने का दावा करे लेकिन हकीकत यह है कि इस तरह वहां एक अधूरा समाज बनेगा, जिसमें महिलाओं का जीवन दोयम दर्जे का होगा। कोई भी समाज महिलाओं को हाशिये पर रख कर मानवीय होने का दावा नहीं कर सकता। हालांकि तालिबानी सोच में कोई परिवर्तन नहीं आने वाला है। ऐसे में ज़रूरत है इस मुद्दे पर वैश्विक देश मुखर होकर तालिवानी हुकूमत का विरोध करें। ज़रूरत पड़ने पर महिलाओं को नर्क से निकालने के लिए वैश्विक स्तर पर सैन्य कार्रवाई भी की जाए। दुनिया में मानव अधिकार की दुहाई देने वाले संगठनों को भी ज़रूरत बनता है कि वह अफगानिस्तान की महिलाओं की मदद के लिए आगे आएं। संभव है कि वैश्विक दबाव में आने बाद शायद तालिवान के सोच में परिवर्तन आए, जिससे महिलाओं को उनका अधिकार मिल सकें। ऐसी तंग सोच के साथ तालिबान कब तक सत्ता में बना रहेगा और लैंगिक अत्याचार जारी रखेगा कहा नहीं जा सकता है तमाम दुनिया इस बदतमीजी भरी महिला दमन की पराकाष्ठा पर तमाशबीन बनी है। 

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