भारत का स्कॉटलैंड है शिलांग
असम को पूर्वोत्तर भारत का प्रवेशद्वार कहा जाता है। गुवाहाटी से लगभग हर पूर्वोत्तर राज्य पहुंचा जा सकता है। एक अन्य कार्यक्रम में ईटानगर (अरुणाचल) जाने के लिए हमें गुवाहाटी से जाना पड़ा। अरुणाचल चीन की सीमा से स्पर्श करता है। वहां सभी को हिंदी बोलते, समझते देख सुखद आश्चर्य हुआ। खैर फिलहाल चर्चा शिलांग की। वह रात हमने गुवाहाटी के एक गेस्ट हाउस में बितायी। अगली सुबह बहुत तड़के ही गाड़ी लेकर शिलांग के लिए रवाना हुए। गुवाहाटी की जबरदस्त गर्मी, भीड़-भाड़, जाम और प्रदूषण से शिलांग के वातावरण के प्रति भी आशंका होने लगी।
हरे भरे घुमावदार पहाड़ी रास्तों पर हमारी कार लगातार ऊंचाई की ओर बढ़ रही थी। एक स्थान पर जलपान के लिए रूके तो वहां भी वहीं सबकुछ बिक रहा था जो दिल्ली सहित हर नगर- महानगर में भी मिलता है। हां, एक साथ पर ताजे पके हुए केले ज़रूर आकर्षित कर रहे थे। बहुत मीठे ये केले महानगरों में तो देखने को भी नहीं मिलते। लगभग 4 घंटे की सड़क यात्रा के बाद हम शिलांग पहुंचे। शिलांग की खूबसूरती और ठंडक का अहसास एक घंटा पूर्व होने लगा था। हमारे रुकने की व्यवस्था श्री राजस्थान विश्राम गृह में थी जो शिलांग के प्रथम पड़ाव गाड़ी खाना के ठीक सामने है। हनुमान मंदिर के साथ स्थित यह विश्रामगृह तीन मंजिला है। प्रथम तल पर रहने के कमरे, द्वितीय पर हाल व कुछ कमरे हैं।
शिलांग पूर्वोत्तर राज्यों के बड़े शहरों में से एक और कृषि उत्पादों का महत्वपूर्ण व्यापार केंद्र है। यहां वाहनों की भीड़ की एक वजह यह भी है कि असम के विभिन्न स्थानों से मिज़ोरम और त्रिपुरा जैसे पूर्वोत्तर राज्यों को जोड़ने वाला राष्ट्रीय राजमार्ग इसी शहर से होकर गुजरता है। शिलांग में भारतीय वायु सेना का पूर्वी कमांड का मुख्यालय है। बहुत ऊंची चोटियों पर बड़े-बड़े रडार लगाए गये हैं। यह देश की सुरक्षा के लिये अत्यंत संवेदनशील है। यहां के अनेक अनुसंधान केंद्रों में डेरी विज्ञान, उद्यान विज्ञान, रेशम उत्पादन संस्थान शामिल हैं। शहर से कुछ मील की दूरी पर उत्तर दिशा में बरपानी जल विद्युत घर स्थित है। यहां पर पाश्चर संस्थान मैडीकल रिसर्च इंस्टिच्यूट व दो अस्पताल हैं। यहां नार्थ-ईस्टर्न पर्वतीय विश्वविद्यालय जो एक केंद्रीय विश्वविद्यालय है, के मुख्य परिसर की स्थापना की गई तथा पूर्वोत्तर परिषद व इंडियन काउसिंग आफ सोशल साइंस रिसर्च के क्षेत्रीय मुख्यालय भी हैं।
इस कार्यक्रम के अन्तिम दिन वन-विहार तय था। सीमा सुरक्षा बल की बस गाड़ी खाना में हमारी प्रतीक्षा कर रही थी। मेरे साथ वाली सीट पर आचार्य राधा गोविंद थोड़ांग थे। बस आगे बढ़ी तो मैंने पूर्वोत्तर के इतिहास-भूगोल पर चर्चा छेड़ दी। आचार्य ने बताया कि कभी हिन्दू बहुल्य रहा पूर्वोत्तर आज ईसाई बाहुल्य है। इसके अनेकानेक कारणों में स्वयं हमारे धर्माचार्यों की निष्क्रि यता भी कम जिम्मेवार नहीं है। आज भी बहुत कम ही ऐसे हैं जो धर्म और संस्कृति के बदल जाने के बावजूद भाषा को बचाने की लड़ाई लड़ रहे हैं। हैगिंग ब्रिज के पास मुनीष ने गुजरात से लाई सिंहदाना (नमकीन मूंगफली) सहयात्रियों को वितरित की तो चर्चा का क्रम बदल गया। शिलांग और उसके आसपास अनेक दर्शनीय स्थल में प्रमुख है-
शिलांग पीक- यह शिलांग का सबसे ऊंचा प्वाइंट है। इसकी ऊंचाई 1965 मीटर है। यहां से पूरे शहर का विहंगम नज़ारा देखा जा सकता है। रात के समय यहां से पूरे शहर की लाइट असंख्य तारों जैसी चमकती है।
लेडी हैदरी पार्क- यह लगभग हर प्रकार के फूलों से सुसज्जित खूबसूरत पार्क है। इसमें एक छोटा चिड़ियाघर और अनेक प्रजातियों की तितलियों का संग्रहालय है।
कैलांग राकमेरंग- नोखलॉ रोड पर ग्रेनाइट की एक ऊंची और विशाल चट्टान है जिसे कैलांग राक के नाम से जाना जाता है। यह एक गोलाकार गुम्बदनुमा चट्टान है जिसका व्यास लगभग 1000 फुट है। वार्डस में कृत्रिम झील है जो घने जंगलों से घिरी है।
मीठा झरना- हैप्पी वैली में स्थित यह झरना बहुत ऊंचा और बिल्कुल सीधा है। मानसून में इसकी खूबसूरती देखते ही बनती है। हाथी झरना- यह अपर शिलांग में स्थित है जहां वायुसेना का ईस्टर्न एयर कमांड है। यहां कई छोटे-छोटे झरने एक साथ गिरते हैं। एक छोटे से रास्ते के सहारे नीचे जाकर झरने को निहारा जा सकता है जहां एक छोटी झील बनी हुई है। विश्व प्रसिद्ध आस्ट्रिया के वाटर फाल्स का सौंदर्य इससे कमतर ही है।
मियाम- शिलांग से 20 किलोमीटर दूर स्थित यह एक वाटर स्पोट्स काम्प्लेक्स है जो उमियाम हाइड्रो इलेक्ट्रिक प्रोजेक्ट की वजह से बनी झील पर स्थित है। यहां कई प्रकार के वाटर स्पोर्ट्स का आनन्द लिया जा सकता है। इसी प्रकार जैकरम, हाट सप्रिंग प्रकृति की अद्भुत देन यह स्थान बहुत ही सुंदर है। सल्फर युक्त गर्म पानी जो कि झरने से निकलता है चरम रोगाें के लिये बहुत चमत्कारिक औषधि का कार्य करता है। महादेव खोला मंदिर सुरंगमय पहाड़ियों के बीच में गोरखा रेजीमेंट द्वारा निर्मित एक प्राचीन मंदिर है। इस मंदिर से भगवान शंकर की अनेक दंत कथाएं जुड़ी हुई हैं। शिलांग के मारवाड़ी समाज के लिये यह श्रद्धा का केन्द्र है। शिवरात्रि के दिन यहां बड़ा मेला लगता है। इसके अतिरिक्त देवी के शक्तिपीठों में शामिल जयन्तियां शक्तिपीठ यहां की जयंती पहाड़ियों में स्थित है। शिलांग में खरीदारी करने के लिए प्रमुख स्थान पुलिस बाज़ार, पलटन बाज़ार, बारा बाज़ार और लैटूमुखराह है। पूर्वी मेघालय से भी लोग यहां अपना सामान बेचने आते हैं। पुलिस बाज़ार के मध्य में कचेरी रोड़ के किनारे बहुत-सी दुकानें हैं जहां हाथ की बुनी हुई विभिन्न आकारों की सुन्दर टोकरियां मिलती हैं। हाथ से बुनी हुई शाल, हैंन्डीक्राफ्ट, संतरी शहद और केन वर्क की खरीददारी की जा सकती है।
हमारी वापसी की उड़ान अगले दिन गुवाहाटी से थी। प्रथम दिवस मुनीष और नांदेड़ के राजेन्द्र ब्रह्मपुत्र में नौका विहार के बाद वहां के पर्यटन स्थल देखने चले गये लेकिन मैंने भरपूर आराम किया। अगली सुबह प्रात: 5 बजे हम कामाख्या मंदिर में दर्शनों के लिए पहुंच गये। गुवाहाटी से महज 32 किमी की दूरी पर स्थित सुआलकुची अपने सिल्क उत्पादों एंडी व मूंगा के लिए पूरी दुनिया में मशहूर है। इस गांव को पूरब का मैनचेस्टर कहा जाता है। पूरी दुनिया में मूंगा सिल्क का उत्पादन सिर्फ इसी गांव में होता है। गुवाहाटी में शिलांग से बिल्कुल उल्ट काफी गर्मी थी। हमने गुवाहाटी के पलटन बाज़ार से वहां की मशहूर चाय ली। हम एयरपोर्ट के लिए रवाना हुए। (उर्वशी)