शब्दों के कुछ निश्चित अर्थ क्यों होते हैं ?

‘दीदी, मुलायम का अर्थ नरम ही क्यों होता है, कठोर क्यों नहीं? दरअसल, मैं यह जानना चाहता हूं कि शब्दों के कुछ निश्चित अर्थ ही क्यों होते हैं?’
‘अगर किसी शब्द का निश्चित या निर्धारित अर्थ नहीं होगा तो आप मेरी और मैं आपकी बात को कैसे समझ पायेंगे।’
‘यह बात तो है।’
‘दरअसल, शब्द वास्तव में ‘कोड’ या सिंबल होते हैं जो किसी चीज़ के लिए स्टैंड करते हैं। वह मानव द्वारा उत्पन्न ध्वनि से निर्मित होते हैं। जब दो या अधिक इंसान तय करते हैं कि खास ध्वनि या ध्वनियों के समूह का समान अर्थ होगा तो उनके पास एक भाषा हो जाती है।’
‘इसका मतलब यह हुआ कि शब्दों का निश्चित अर्थ केवल इसलिए होता है क्योंकि मानवों के कुछ समूह ने तय कर लिया है कि उनका यह अर्थ होना चाहिए।’
‘जी। मसलन, जब ह, आ, थ और ई की ध्वनियों को एक क्रम में मिलाया जाता है तो इससे हाथी शब्द बनता है। हिंदी बोलने वाले लोग जानते हैं कि ‘हाथी शब्द एक खास जानवर के लिए बोला जाता है।’
‘और जब डी, ओ, जी की ध्वनियों को एक क्रम में मिलाया जाता है तो अंग्रेज़ी जानने वाले लोग जान लेते हैं कि डॉग एक खास जानवर के लिए बोला गया शब्द है।’ 
‘लेकिन रुसी तो नहीं समझेगा। उसके लिए तो यह शब्द अर्थहीन है। डॉग इमेज के लिए रुसी सोबाका शब्द का प्रयोग करता है। ..और जब एक इतालवी को कुत्ते की ओर इशारा करना होता है तो वह केन शब्द का इस्तेमाल करता है।’
‘शायद इसी वजह से हर भाषा में शब्दों के प्रयोग करने के नियम भी अलग अलग हैं।’
‘यह इस बात पर निर्भर करता है कि संबंधित भाषा के लिए क्या सहमति बनी है। मसलन, अंग्रेज़ी में जब आपको एक से अधिक कुत्तों के बारे में बताना हो तो डॉग में एस जोड़कर उसे डॉग्स कर दिया जाता है। लेकिन इतालवी में केन के अंतिम अक्षर ई को बदलकर आई कर दिया जाता है और आपको केनी शब्द मिलता है।’
‘किसी भाषा के शब्दों के अर्थ और उनके प्रयोग को हम कब सीखते हैं।’
‘अपनी मातृभाषा में तो यह सिलसिला बचपन में ही शुरू हो जाता है। एक शिशु अपने पैरेंट्स और आसपास के लोगों की ध्वनियों की नकल करना शुरू कर देता है। वह फिर ध्वनियों को खास चीज़ों, एक्शंस या विचारों से जोड़ने लगता है। जब वह शब्दों को खास अंदाज़ में प्रयोग करना और उनमें अर्थ के लिए आवश्यक परिवर्तन करने लगता है तो वह भाषा सीख जाता है।’
-इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर 

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