दिल्ली विधानसभा चुनाव को लेकर शुरू हो गई स़ौगातों की प्रतिस्पर्धा
आम आदमी पार्टी (आप) संयोजक अरविंद केजरीवाल की मौजूदगी में दिल्ली की मुख्यमंत्री आतिशी खो गयी थीं, उस समय जब आतिशी मंत्री थीं और खुद केजरीवाल मुख्यमंत्री। आज भी आतिशी चुनावी अभियान में बहुत प्रभावी नहीं लग रही हैं जबकि ‘आप’ के कई अन्य नेता आधिक प्रभावी लग रहे हैं। केजरीवाल का फायदा यह है कि वह जेल गये। दिल्ली के उप-मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया भी जेल गये। ‘आप’ के राज्यसभा सांसद संजय सिंह भी जेल गये। स्वास्थ्य मंत्री सत्येंद्र जैन भी जेल गये। आतिशी के साथ ऐसा नहीं हुआ, लेकिन केजरीवाल का कहना है कि आतिशी पर भी झूठे आरोप लगाये जायेंगे। मुख्यमंत्री पद पर आतिशी एक अस्थायी विकल्प हैं। केजरीवाल फिर मुख्यमंत्री बनना चाहते हैं! लेकिन इस बार यह आसान नहीं लगता। केजरीवाल ने जो मुद्दे उठाये और वायदे किये हैं, वे बदलाव की ओर इशारा करते हैं। ‘धर्मनिरपेक्ष’ से केजरीवाल ‘नरम हिंदुत्व’ की ओर बढ़ गये हैं। अनिश्चितता राजनेताओं से ऐसा कराती है। केजरीवाल अब पहले जैसे आत्मविश्वासी नहीं रहे। दिल्ली चुनाव के इस संस्करण में केजरीवाल संदेह से ग्रस्त हैं। समय की मांग के अनुरूप हिंदुत्व की ओर बदलाव का माहौल मोदी और योगी के पक्ष में है, जिससे केजरीवाल को नरम हिंदुत्व की ओर जाने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है। आम धारणा के विपरीत केजरीवाल हिंदुओं के करीब हैं, हिंदुओं के शुभचिंतक हैं और मददगार भी हैं! किसने सोचा होगा कि केजरीवाल द्वारा उठाये गये हिंदू मुद्दों पर भारतीय जनता पार्टी को मुंह की खानी पड़ेगी? ‘आप’ भाजपा से अधिक हिंदू दिखने के लिए कड़ी मेहनत कर रही है। नये साल की पूर्व संध्या पर केजरीवाल ने दिल्ली के पुजारियों और ग्रंथियों के लिए 18000 रुपये प्रति माह मानदेय की घोषणा की। अब भाजपा ने इस बारे में क्यों नहीं सोचा, उन्होंने भाजपा को भाजपा शासित राज्यों में भी ऐसा करने की चुनौती दी। उधर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने दिल्ली विधानसभा चुनावों का बिगुल बजाते हुए दिल्ली में 4500 करोड़ रुपये के प्रोजैक्टों की उद्घाटन किया है। इस अवसर पर मोदी ने अशोक विहार स्थित स्वाभिमान अपार्टमैंट में ‘सलम पुनर्वास प्रोजैक्ट’ के तहत झुग्गी-झोंपड़ी समूह के लोगों के लिए 1675 फ्लैटों की उद्घाटन करते हुए लाभपात्रियों को चाबियां सौंपी। विडम्बना यह है कि केजरीवाल की इस योजना की घोषणा तब की गयी जब दिल्ली के मौलाना और मौलवी पिछले 18 महीनों से ‘आप’ सरकार द्वारा दिये गये ‘वेतन’ का वितरण न किये जाने का विरोध कर रहे थे। केजरीवाल का मौलाना आउटरीच ‘आप’ की मुस्लिम-फर्स्ट नीति का हिस्सा था, जिसका मुकाबला भाजपा नहीं कर सकी।
आज भाजपा ‘आप’ की हिंदू आउटरीच के खिलाफ शिकायत कर रही है। क्या केजरीवाल भाजपा को परेशान कर रहे हैं? क्या अब जब केजरीवाल ने नरम हिंदुत्व का रंग ले लिया है, तो भाजपा अपने हिंदुत्व को लेकर सुरक्षित महसूस नहीं कर रही है? क्या भाजपा के पास ‘एक हैं तो सुरक्षित हैं’ जैसे नरेंद्र मोदी के नारे और ‘बंटेंगे तो कटेंगे’ जैसे योगी आदित्यनाथ के नारे जैसे शक्तिशाली हिंदुत्व-प्रतीक नहीं हैं? योगी आदित्यनाथ पिछले सप्ताह दिल्ली में एक ज़ोरदार भाषण देने आये थे। उन्होंने भाजपा समर्थकों की भीड़ से कहा, ‘आपकी दिल्ली गंदी है, शीला दीक्षित के कार्यकाल में यह बहुत साफ थी।’ ‘सुरक्षा और सफाई के लिए गाज़ियाबाद और नोएडा आइये।’
केजरीवाल ने नहीं सुना, उन्होंने नये साल की पूर्व संध्या पर भाजपा के साथ मतदाताओं के नाम हटाने और कैश-फॉर-वोट के बारे में आरोप लगाये, जो भाजपा के खिलाफ एक शिकायत थी, जिसे केजरीवाल ने आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत के पास दर्ज कराया, जो चाहते हैं कि ‘सामाजिक सद्भाव’ के लिए समझदार हिंदू आवाज़ प्रबल हो, जो उनके दिल के करीब का विषय है। गत सप्ताह आतिशी ने दिल्ली के उप-राज्यपाल वी.के. सक्सेना पर दिल्ली में मंदिरों को गिराने का आदेश देने का आरोप लगाया, जिसे सक्सेना ने झूठ बताया। आतिशी पीछे नहीं हटीं, वह ‘आप’ के नरम-हिंदुत्व को व्यक्त कर रही थीं, जिसके कई अर्थ हैं, जिनमें से एक अक्सर सामने आता है— इन चुनावों में ‘आप’ की घबराहट।
दिल्ली में अजेय समझे जाने वाली ‘आप’ एक मुद्दे से दूसरे मुद्दे में उलझ रही है। अगर यह बांग्लादेशियों, रोहिंग्या और पूर्वांचलियों के बारे में नहीं है, तो यह पानी और भ्रष्टाचार या महिलाओं को लक्षित करने वाली योजनाओं के बारे में है। अरविंद केजरीवाल यह आभास दे रहे हैं कि वह भीड़-भाड़ और तंगहाली से घिरे हुए हैं। उन्हें इस बात की चिंता है कि पार्टी और उनके लिए क्या होने वाला है। उन्हें एहसास है कि वह जीत के लिए मुसलमानों और मुफ्तखोरी पर पूरा भरोसा नहीं कर सकते!
क्या होगा अगर दिल्ली के मतदाता महाराष्ट्र के मतदाताओं और हरियाणा के मतदाताओं और उत्तर प्रदेश के नौ उप-चुनावों में मतदान करने वालों की तरह ‘बटेंगे तो कटेंगे’ और ‘एक हैं तो सेफ हैं’ के लिए वोट करें? समय की भावना हिंदुत्व के पक्ष में है, कम से कम हिंदी क्षेत्र में और दिल्ली भी हिंदी क्षेत्र का हिस्सा है। इसका मतलब यह नहीं है कि भाजपा 100 प्रतिशत जीत की उम्मीद कर रही है। कथित लाभों के बावजूद भाजपा पूरी तरह आश्वस्त नहीं है। उसे नहीं पता कि अरविंद केजरीवाल अपनी चुनावी टोपी से क्या निकालते हैं।
इसके अलावा दिल्ली के मतदाताओं ने मुफ्तखोरी के लिए अपनी लालसा नहीं खोई है। अगर कोई जानता है कि यह कैसे संभव है, तो यह एक अच्छा विचार है। बिना खर्च के जीने के स्वाद को यदि कोई जानता है तो वह है दिल्ली का आम मतदाता है। दिल्ली के लोग अरविंद केजरीवाल और उनके वायदों के आदी हो चुके हैं, चाहे वे वास्तविक हों या खोखले। (संवाद)