बात ज़हरीले होते जा रहे पानी की
पानी जीवन है। स्वच्छ पानी जीवन की धड़कन है, पहले समय बारे यह प्रभाव बना रहा है कि लोग तब स्वस्थ जीवन व्यतीत करते थे। इसका एक कारण उनकी सरल जीवनशैली हो सकती है तथा एक और बड़ा कारण उस समय के पानी की गुणवत्ता को माना जा सकता है। कल-कल बहती नदियों और दरियाओं के किनारों पर ही मानवीय सभ्यताएं बढ़ीं और प्रफुल्लित होती रहीं। ज्यों-ज्यों जीवनशैली बदलती गई, पानी की गुणवत्ता कम होती गई, त्यों-त्यों मनुष्य के स्वास्थ्य में प्रत्येक पक्ष से बदलाव आते गए। पानी की ज़रूरत भी बढ़ती गई तथा अनेक कारणों के दृष्टिगत पानी प्रदूषित भी होना शुरू हो गया। पिछली सदियों में इसका कारण विश्व भर में औद्योगिक प्रसार था। उद्योग फैलते गए प्रदूषण बढ़ता गया। ऐसे प्रदूषण को रोकने के लिए यत्न भी किये जाने लगे परन्तु औद्योगिक प्रसार और जीवनशैली बदलते जाने के कारण ये यत्न कम पड़ते गए। आज भी ये यत्न जारी हैं, परन्तु इनके बावजूद यदि पानी की गुणवत्ता कम होती जा रही है और इनमें प्रदूषण बढ़ता जा रहा है तो यह बड़ी चिन्ताजनक बात है। आज अनेक ही बीमारियां पानी के प्रदूषण के कारण बढ़ती जा रही हैं।
भारत में केन्द्रीय जल बोर्ड लगातार इस पर नज़र रख रहा है। प्रदेशों में भी प्रदूषण बोर्ड बने हुए हैं, जो समय-समय पर अपनी रिपोर्टें प्रकाशित करते रहते हैं। इन रिपोर्टों को पढ़ कर अधिक चिन्ता होने लगती है। विगत दिवस भूमिगत पानी के संबंध में केन्द्रीय जल बोर्ड (सी.जी.डब्ल्यू.बी.)की ओर से जो नई रिपोर्ट जारी की गई है, उसे संबंधित सरकारों की ओर से बेहद गम्भीरता से लेने की ज़रूरत है, जिसके अनुसार देश के ज्यादातर प्रदेशों में पीने वाले पानी में नाइट्रेट बढ़ती जा रही है। इसके साथ ही फ्लोराइड और आर्सेनिक तत्वों के बढ़ने से भी मानवीय शरीर पर इनका नकारात्मक प्रभाव प्रत्यक्ष रूप से देखा जा सकता है। इस रिपोर्ट के अनुसार देश भर में 15000 से भी अधिक स्थानों पर पानी के नमूने लिए गए, जिनमें ऐसे तत्वों की अधिकता पाई गई है। खास तौर पर बच्चों में ब्लू बेबी सिंड्रोम के अतिरिक्त मनुष्य के कैंसर, त्वचा रोग तथा गुर्दों की बीमारियां अधिक प्रभावित करने लगी हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन की ओर से घोषित किए गए मापदंडों के अनुसार भारत के पानी में यूरेनियम की मात्रा ज्यादातर स्थानों पर कहीं अधिक है।
पंजाब के पानी संबंधी हम अक्सर लिखते रहते हैं। कभी यह पानी ज़िन्दगी की धड़कन का सन्देश देता था, अब यह पानी बीमारियों की आमद का सन्देश दे रहा है। यहां की कृषि के लिए भी लगातार रासायनिक खादों का अधिक इस्तेमाल किये जाने से भूमिगत पानी भी ज़हरीला होना शुरू हो गया है। उद्योगों का प्रसार और बढ़ते शहरीकरण ने इस पानी को प्रदूषित करने में ज्यादा योगदान डाला है। दशकों से हमारी सरकारें इस ओर यत्न ज़रूर करती रही हैं परन्तु परिणाम यह निकला कि वह इस मुहाज़ पर बुरी तरह विफल हो गई हैं। यहां तक कि लुधियाना के बुड्ढा दरिया के ज़हरीले पानी की बात भी दशकों से चलती आ रही है परन्तु हमारी तत्कालीन सरकारें इस पक्ष से बुरी तरह पिछड़ गई हैं। आज पानी की गुणवत्ता को लेकर प्रत्येक पक्ष और प्रत्येक स्तर पर ज़ेहाद छेड़ने की ज़रूरत है। इस पक्ष की अनदेखी निश्चय ही जीवन की धड़कन को बेहद धीरे कर देगी और समाज के हिस्से सिर्फ पछतावा ही रह जाएगा।
—बरजिन्दर सिंह हमदर्द