मणिपुर—केन्द्र सरकार की विफलता
नव वर्ष के पहले दिन उत्तर-पूर्वी राज्य मणिपुर के मुख्यमंत्री बीरेन सिंह ने अपने लोगों से म़ाफी मांगते हुए कहा है कि पिछला वर्ष प्रदेश के लिए बहुत बुरा एवं दुर्भाग्यपूर्ण रहा था, जिसमें लोगों ने अपने सैकड़ों करीबियों को गंवा दिया। कई लोगों को अपने घरों को छोड़ना पड़ा, जिसके लिए वह म़ाफी मांगते हैं। उत्तर-पूर्वी के सात राज्यों में मणिपुर एक छोटा-सा प्रदेश है, जो विगत लम्बी अवधि से अक्सर जातीय हिंसा का शिकार रहा है परन्तु पिछले वर्ष मई मास के शुरू से यहां आपसी नस्ली झगड़ों में जो कुछ हुआ, वह जहां बेहद भयावह था, वहीं दुर्भाग्यपूर्ण भी कहा जा सकता है। मुख्य रूप में इस राज्य में मैतेई और कूकी कबीलों के लोग रहते हैं। कूकी ज्यादातर पहाड़ी क्षेत्रों में बसे हुये हैं तथा मैतेई मैदानी क्षेत्रों में।
मैतेई लोगों की बहुसंख्या होने के कारण यहां किसी भी बनने वाली सरकार में उनका प्रतिनिधित्व अधिक रहता है। पहाड़ी क्षेत्रों में रहते कूकी मैतेई लोगों से अधिक ़गरीबी में रहते हैं। उन्हें विगत लम्बी अवधि से आरक्षण की कुछ सुविधाएं मिली हुई हैं। पिछले वर्ष वहां की उच्च अदालत ने मैतेई लोगों के लिए भी ऐसे आरक्षण का फैसला किया था, जिसके बाद इन दोनों कबीलों में आपसी हिंसक टकराव शुरू हो गए थे। यह हिंसा इतनी ज्यादा बढ़ गई, जिसमें महिलाओं के साथ दुष्कर्म होने के समाचार मिले। बहुत-सी हत्याएं हुईं और भारी संख्या में लूटपाट तथा आगज़नी के समाचार प्राप्त हुए। पहले से ही इन राज्यों में विद्रोही स्वर उठते रहे हैं, जहां कूकी ब़ािगयों ने स्वयं को आज़ाद करवाने के लिए बड़ी संख्या में हिंसक गुट बनाये हुए थे। वहीं मैतेई ब़ागी भी विगत लम्बी अवधि से राष्ट्रीय आज़ाद फ्रंट बना कर प्रदेश एवं केन्द्र सरकार से हथियारबंद हिंसक लड़ाई लड़ते रहे हैं। इनमें ज्यादातर ने अपनी सीमा के साथ लगते म्यांमार में शरण ली हुई है। आपसी जातीय हिंसा के साथ-साथ राज्य को आज़ाद करवाने के लिए ये विद्रोही गुट दशकों से प्रदेश सरकार के लिए चुनौती बने रहे हैं। एक ताज़ा रिपोर्ट के अनुसार मणिपुर में पूरे उत्तर-पूर्वी राज्यों के मुकाबले 77 प्रतिशत हिंसा की घटनाएं हुई हैं। वर्ष 2022 में इनकी संख्या 137 थी। वर्ष 2023 में इनकी संख्या बढ़ कर 187 हो गई तथा नवम्बर 2024 तक इनकी संख्या बढ़ कर 203 हो गई। अब तक जातीय हिंसा में सैकड़ों ही लोग मारे जा चुके हैं तथा लाखों ने शरणार्थी शिविरों में शरण ली हुई है।
मणिपुर में भाजपा के नेतृत्व वाली सरकार है तथा बीरेन सिंह यहां के मुख्यमंत्री हैं। वह मैतेई जाति से संबंध रखते हैं। उनके बारे में यह भी प्रभाव बना रहा है कि वह मैतेई समुदाय का पक्ष-पोषण करते रहे हैं, परन्तु हिंसक घटनाओं के लगातार बढ़ते जाने से केन्द्र सरकार ने इस प्रदेश में अपने हस्तक्षेप को बढ़ा दिया है तथा केन्द्रीय सुरक्षा बल यहां हर तरह से फैली हिंसा को दबाने के लिए पूरी यत्न करते रहे हैं। इसके साथ ही यह मांग भी लगातार उठती रही है कि मुख्यमंत्री स्थिति को सम्भालने में बुरी तरह विफल हुए हैं। इसलिए उन्हें त्याग-पत्र देना चाहिए। देश भर की विपक्षी पार्टियों ने भी केन्द्र सरकार से उनके त्याग-पत्र लेने की मांग को लेकर पूरा दबाव डाला हुआ है, परन्तु हालात किसी भी तरह सुधरते दिखाई नहीं दे रहे, अपितु यह जातिवादी तनाव बेहद बढ़ा हुआ दिखाई देता है। इस स्थिति में ब़ागी संगठन और भी हिंसक हो कर सक्रिय हो चुके हैं। लगातार ऐसी मांग उठने के बावजूद केन्द्र सरकार ने मुख्यमंत्री का त्याग-पत्र नहीं लिया, अपितु इस पूरे हिंसक घटनाक्रम के दौरान वह उनके साथ खड़ी दिखाई देती रही है।
देश भर से पिछले समय में लगातार यह मांग भी उठती रही है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी इस मामले में स्वयं हस्तक्षेप करें या स्थिति को बेहतर बनाने के संबंध में कोई बयान दें या इस प्रदेश का दौरा करें, परन्तु यह आश्चर्यजनक बात है कि उन्होंने अब तक इस संबंध में न तो कोई बयान दिया और न ही इस प्रदेश का दौरा करने का कष्ट उठाया है। अब मुख्यमंत्री बीरेन सिंह की ओर से माफी मांगने के बाद कांग्रेस के महासचिव जय राम रमेश ने एक बार फिर कहा है कि प्रधानमंत्री प्रदेश का दौरा करके यही बात क्यों नहीं कह सकते। नि:संदेह मणिपुर के बेहद गम्भीर घटनाक्रम को पूरी तरह दृष्टिविगत करने संबंधी प्रधानमंत्री की नीति को समझना बेहद कठिन है, जिसने केन्द्र सरकार को एक बार फिर कड़ी आलोचना के कटघरे में खड़ा कर दिया है।
—बरजिन्दर सिंह हमदर्द