साल 2024 के जाते-जाते इसरो का एक और कीर्तिमान 

इसरो ने अंतरिक्ष के क्षेत्र में पहले भी अनेक कीर्तिमानी कार्य किए हैं पर इस साल का उसका यह आखिरी अभियान ‘स्पेडेक्स मिशन’ का सफलतापूर्वक लांच नि:संदेह ऐतिहासिक है। स्पेडेक्स अर्थात स्पेस डॉकिंग एक्सपेरिमेंट। डाकिंग यानी पृथ्वी की निचली कक्षा में एक अंतरिक्ष यान के दूसरे से जुड़ने की क्षमता, जो भविष्य में मानवयुक्त अंतरिक्ष मिशनों और उपग्रह अभियानों के लिए सर्वाधिक महत्वपूर्ण तकनीक होगी। सही बात तो यह है कि इसके बिना मंगलयान, गगनयान, भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन के बनने, उसे कार्यरत होने अथवा चांद या अन्य ग्रहों से नमूने लाने की हमारी अंतरिक्षीय महत्वाकांक्षा अधूरी थी। इस एक अभियान की सफलता से कई मनोरथ एक साथ सध सकेंगे। आगामी 7 जनवरी 2025 को इस मिशन के अंतर्गत जब अंतरिक्ष में बुलेट की रफ़्तार से चक्कर लगा रहे दो स्पेसक्राफ्ट्स को आपस में जोड़ा जाएगा, तो अगर मिशन सफल रहा तब हम रूस, अमरीका और चीन के ऐसा करने वाले दुनिया के महज चौथे देश होंगे। यह ठीक है कि अमरीका ने यह कारनामा 58 साल पहले, रूस ने 57 और चीन ने 13 बरस पहले कर लिया पर भारत की यह सफलता उनसे कई मायनों में अनूठी है। तमाम अनुबंधों और समझौतों के बावजूद जब किसी अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष एजेंसी ने भारत से यह अत्यंत जटिल प्रणाली और तकनीक प्रक्रिया को साझा नहीं किया तो हमने अपनी स्वदेशी डॉकिंग मैकेनिज्म को विकसित कर इसे ‘भारतीय डॉकिंग सिस्टम’ नाम दिया और इस डॉकिंग सिस्टम पर अपना पेटेंट लिया। 
स्पैडेक्स के डिजाइन और निर्माण में यूआर राव सैटेलाइट सेंटर का प्रमुख हाथ है, जबकि दूसरे इसरो केंद्रों वीएसएससी, एलपीएससी, एसएसी, आईआईएसयू और एलईओएस का सहयोग था पर बड़ी बात यह कि उपग्रहों का पूर्ण एकीकरण और परीक्षण बैंगलोर स्थित मेसर्स अनंत टेक्नोलॉजीज में किया गया, जिसे हाल ही में देश के अंतरिक्ष नियामक, द्वारा ‘बेनिफीशरी ऑफ ऑपर्चुनिटी’ की घोषणा का लाभार्थी नामित किया गया था, आज यह कम्पनी भू-स्थिर कक्षा संचार उपग्रह की सेवाएं प्रदान करने वाली पहली निजी भारतीय उपग्रह ऑपरेटर कम्पनी है। यह उल्लेख इसलिए कि सरकार द्वारा अंतरिक्ष क्षेत्र को निजी ऑपरेटरों के लिये खोलने का बड़ा लाभ हासिल होता नजर आ रहा है। ऐसे महत्वपूर्ण मौकों पर इस योगदान को रेखांकित करना आवश्यक है। स्पेडेक्स मिशन के तहत एक ही रॉकेट पीएसएलवी-सी60 के जरिए धरती की 475 किमी ऊपर उसकी वृत्ताकार कक्षा में 55 डिग्री झुकाव पर प्रक्षेपित किए जाने वाले 220-220 किलो के एसडीएक्स ए और एसडीएक्स बी नामक दो पेलोड को अंतरिक्ष में अलग-अलग जगहों पर छोड़ा गया, जिसका स्थानीय समय चक्र लगभग 66 दिन का और कार्यावधि दो साल होगी। पहले में निगरानी और इमेजिंग के लिए हाई-रेज़ोल्यूशन कैमरा, दूसरे में संसाधनों की निगरानी और अंतरिक्ष विकिरण अध्ययन के लिए मिनिएचर मल्टी-स्पेक्ट्रल पेलोड के अलावा जैविक अनुसंधान हेतु कुछ उपकरण हैं। इनमें एक चेसर सैटेलाइट होगा, जो दूसरे टारगेट उपग्रह को पकड़ेगा, उससे डॉकिंग करेगा। 
पृथ्वी के ऊपर 475 किलोमीटर के परिपत्ति पथ में इन्हें एक-दूसरे से 30 किलोमीटर दूर स्थापित कर फिर इनके वेग को नियंत्रित करके इन्हें तीन मीटर से अधिक करीब लाकर एक-दूसरे से जोड़े जाने की प्रक्रिया यानी डॉकिंग की जाएगी। इस प्रक्रिया के दौरान किसी अंतरिक्ष यान की गति करीब 28,800 किलोमीटर प्रति घंटे होती है जो किसी यात्री विमान की रफ्तार से 35 गुना और बुलेट की स्पीड से 10 गुना अधिक है। इसलिये अंतरिक्ष में सटीक डॉकिंग प्रक्रिया सबसे कठिन होती है। फिर ये दोनों पेलोड तो अपेक्षाकृत बहुत हल्के और छोटे भी हैं। डॉकिंग के बाद दोनों के बीच विद्युत आपूर्ति सुनिश्चित की जायेगी और फिर उन्हें एक-दूसरे से अलग या अनडॉक किया जायेगा। यह जटिल प्रक्रिया प्रक्षेपण के लगभग 9 दिन बाद होगी। यह परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद दोनों उपग्रह दो साल तक अंतरिक्ष में माइक्रोग्रैविटी तथा कुछ जैविक प्रयोग करते हुये वही रहेंगे तथा लगातार आंकड़े और चित्र भेजते रहेंगे। स्पेडेक्स की लांचिंग में दो मिनट की देरी इसलिये हुई क्योंकि समान कक्षा में उसी पथ पर कुछ दूसरे उपग्रह भी मौजूद थे। अंतरिक्ष में उपग्रहों की भीड़ है। अकेले स्टरलिंक के 7 हजार उपग्रह चक्कर काट रहे हैं, जो बढकर 12 हजार पहुंचने वाले हैं। बाकी हजारों दूसरे भी हैं। बहुतेरे निष्क्रिय हो मलबे तौर पर हैं इस अंतरिक्षीय कचरे से निबटना एक समस्या है। संभव है कि सैटेलाइट रोबोटिक आर्म के जरिए किसी दूसरे टारगेट क्यूबसेट को पकड़कर अपनी ओर खींचने का तजुर्बा भी करे, इससे न सिर्फ कक्षा में भटके उपग्रहों को सही जगह लाया जा सकता है बल्कि निष्क्रिय उपग्रहों के मलबे की समस्या से भी निबटा जा सकता है। इससे कक्षा में ही किसी उपग्रह की गड़बड़ी सुधारने और रीफ्यूलिंग का तरीका मिलेगा। 
यह मिशन अंतरग्रही अभियानों, उन्नत अंतरिक्ष खोजों, भविष्य के चंद्रमा मिशन, ग्रहों के बीच प्रवास और ‘भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन’ के निर्माण के लिए पथ प्रशस्त करेगा। हमारा लक्ष्य 2035 तक अंतरिक्ष स्टेशन बनाने और 2040 तक भारतीय अंतरिक्ष यात्री को चंद्रमा पर पहुंचाने का है साथ ही 2027 तक चंद्रयान-4 मिशन से चंद्र नमूने लाने का भी है। इन सबके लिये यह मिशन अनिवार्य था। हम जिस ‘भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन’ की योजना बना चुके हैं उसमें पांच मॉड्यूल होंगे, जिन्हें अंतरिक्ष में एक साथ ले जोड़ना होगा, पहला साल 2028 में लॉन्च होगा। इस तकनीक के बिना उनका जुड़ना असंभव था। स्पेस स्टेशन बनाने और उसके बाद वहां जाने-आने तथा धरती से आपूर्ति पहुंचाने के लिये भी इस तकनीक की आवश्यकता है। यदि यह तकनीक हासिल नहीं होगी तो इसरो के अगले चंद्र मिशन चंद्रयान-4 के लिए दो अलग-अलग लॉन्च और अंतरिक्ष में उनकी डॉकिंग असंभव थी। स्पेडेक्स अभियान के दौरान इसरो द्वारा कई विशेष परीक्षण वास्तविक परिस्थितियों में किए जाने का अवसर प्राप्त होगा। जैसे डॉकिंग के अंतिम चरण का परीक्षण करने के लिए डॉकिंग मैकेनिज्म परफॉर्मेंस टेस्ट, नियंत्रित परिस्थितियों में डॉकिंग तंत्र का परीक्षण करने के लिए वर्टिकल डॉकिंग एक्सपेरिमेंट लेबोरेटरी और रीयल टाइम सिमुलेशन के साथ रेंडेज़वस सिमुलेशन लैब जो इसके एल्गोरिदम को जांचेगा।
कुल मिलाकर इसरो का यह मिशन सफल रहा तो पृथ्वी से लगभग 470 किलोमीटर की ऊंचाई पर हम उसका यह कीर्तिमानी कमाल देखेंगे जिसके चलते अंतरिक्ष के क्षेत्र में रूस, अमरीका और चीन के बाद ऐसा करने वाले हम चौथे देश बन जायेंगे। यह अहसास नि:संदेह नव वर्ष के आरंभ में ही राष्ट्र को गर्व से भर देगा। फिलहाल तो कामयाब प्रक्षेपण के बाद इंतज़ार 7 जनवरी, 2025 को होने वाली सफल मैंनयुवरिंग की है। 

-इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर 

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