अहमदाबाद अधिवेशन की उपलब्धि

विगत दिवस अखिल भारतीय कांग्रेस समिति का अधिवेशन गुजरात के शहर अहमदाबाद में हुआ। दो दिवसीय इस अधिवेशन में देश को दरपेश कई अहम मुद्दों पर विचार किया गया और कई अहम प्रस्ताव भी पारित किए गए, जिनसे इस राष्ट्रीय पार्टी द्वारा अपनाई जाने वाली नीतियां कुछ स्पष्ट ज़रूर होती हैं। कांग्रेस  ने देश में आज़ादी के बाद लम्बी अवधि तक शासन किया है। पंडित जवाहर लाल नेहरू, लाल बहादुर शास्त्री, श्रीमती इंदिरा गांधी के बाद समय-समय पर डा. मनमोहन सिंह तक इसके कई प्रधानमंत्री बने हैं। वर्ष 2014 से नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व  में राजग सरकार बनी हुई है। चाहे तीसरी पारी में भाजपा की संसद में प्रतिनिधिता ज़रूर कम हुई है परन्तु लगातार तीसरी बार उसके द्वारा प्रशासन चलाए जाने ने देश की अन्य विपक्षी पार्टियों विशेष रूप से कांग्रेस में घबराहट भी पैदा की है और इसकी चिन्ता को भी बढ़ाया है। 
हम देश में भाईचारक सांझ के हमेशा समर्थक रहे हैं। वर्ष 1950 में लागू किए गए लिखित संविधान में इन भावनाओं को प्रमुखता दी गई। चाहे ब्रिटिश शासन के समय से ही यहां साम्प्रदायिक दंगे होते रहे हैं। आज़ादी के बाद लगभग सभी सरकारों के समय भी देश भर में कहीं न कहीं साम्प्रदायिक दंगों के कारण तनाव भी बना रहा है, परन्तु फिर भी कांग्रेस के नेतृत्व वाली सरकारें इस संबंध में लोगों में अपना स्पष्ट दृष्टिकोण ज़रूर पेश करती रही हैं। बेशक कई बार कांग्रेस सरकारें भी अपनी विचारधारा को छोड़ कर साम्प्रदायिक ताकतों के समक्ष घुटने टेकते रही हैं, परन्तु मोदी सरकार के शासन के समय लगातार यह प्रभाव ज़रूर बना रहा है कि वह बहुसंख्यक समुदाय के वोट को अपने पक्ष में करने के लिए उनकी धार्मिक भावनाओं को भड़काते रहे हैं, जिस कारण अल्पसंख्यकों विशेष रूप से मुस्लिम समुदाय में डर और गुस्से का माहौल बढ़ता रहा है। ऐसा ही प्रभाव अब वक़्फ बोर्ड बिल को पारित करवाते समय बना है, जिससे इस बड़े अल्पसंख्यक समुदाय में केन्द्र सरकार के प्रति अविश्वास बढ़ा है और यह प्रभाव भी बना है कि मौजूदा सरकार इस अल्पसंख्यकों के धार्मिक मामलों में हस्तक्षेप कर रही है, जिसका देश भर में नकारात्मक प्रभाव पड़ा है।
अहमदाबाद के कांग्रेस सम्मेलन में इस बात के लिए केन्द्र सरकार की कड़ी आलोचना भी की गई है परन्तु इसके साथ ही कांग्रेस आज जाति जनगणना के पक्ष में खड़ी होकर देश में जातिवाद को उभारने का यत्न भी कर रही है, जिसके आगामी समय में नकारात्मक परिणाम ज़रूर निकलेंगे। इसी तरह ई.वी.एम. द्वारा चुनाव संबंधी लगातार शोर-शराबा करके कांग्रेस अनेक स्थानों पर अपनी हुई नमोशीजनक हार को छिपाने का यत्न करती रही है। विगत लम्बी अवधि में कुछ राज्यों में जिनमें कांग्रेस बुरी तरह विफल हो गई थी, वहां भी वह ऐसे ही प्रचार में व्यस्त रही है। इसके साथ वह सामाजिक न्याय की बात करके आरक्षण की नीति को और बढ़ाने के लिए यत्नशील प्रतीत होती है जो इस देश के ढांचे के लिए नकारात्मक परिणामों वाला सिद्ध हो सकता है। सैद्धांतिक रूप से धर्म-निरपेक्ष और प्रगतिवादी पार्टी कहलाती कांग्रेस को केवल वोट के लिए ऐसी नीतियों को अपनाने हेतु परहेज़ करना होगा।
नि:संदेह ऐसे सम्मेलनों में वह पार्टी नेतृत्व परिवारवाद को और मज़बूत करने की नीति पर ही चलता दिखाई दे रहा है, जिसे किसी भी तरह उचित नहीं कहा जा सकता। कांग्रेस ने इस सम्मेलन में ़गरीबी और महंगाई संबंधी मौजूदा सरकार की विफलताओं को ज़रूर उभारा है, परन्तु क्या कांग्रेस से यह पूछा जा सकता है कि उसने अपने दशकों से लम्बे कार्यकाल में इन पक्षों पर कितनी सफलता हासिल की थी? श्रीमती इंदिरा गांधी ने ‘़गरीबी हटाओ’ का नारा दिया था, जिसे यह पार्टी अब तक अपने शासनकाल के दौरान पूरा करने में सफल नहीं हो सकी। हम लगातार बढ़ रही जनसंख्या को देश के लिए बड़ा ़खतरा समझते हैं, परन्तु अपने शासनकाल  के समय और मौजूदा समय में भी कांग्रेस की मूलभूत नीतियों में इस बात पर कभी भी ज़ोर नहीं दिया गया। न ही इस संबंध में इस पार्टी की कोई पुख्ता योजनाबंदी ही सामने आई है। कांग्रेस के जो नेता विगत दशक भर से कोई ठोस योजनाबंदी करके पार्टी को मज़बूत नहीं बना सके, उन्हें पार्टी के सिर पर बिठाए रखना किस सीमा तक जायज़ बात कही जा सकती है।
राहुल गांधी प्रतिदिन चीन द्वारा भारत की हज़ारों किलोमीटर भूमि पर कब्ज़ा होने की बात करते हैं, परन्तु शायद वह यह भूल जाते हैं कि यह सिलसिला पंडित जवाहर लाल नेहरू से शुरू हुआ और उनके बाद आगामी कांग्रेस सरकारों ने चीन द्वारा भारत की हज़ारों किलोमीटर भूमि पर कब्ज़ा किए होने के बावजूद भी चीन आगे घुटने टेके रखे थे। नि:संदेह ऐसे सम्मेलन पार्टी के भीतर गहन और विस्तारपूर्वक विचार-विमर्श की मांग करते हैं। पिछली रह गईं कमियों के प्रति सुचेत होने और संगठन को मज़बूत करने की योजनाबंदी भी होनी चाहिए, सिर्फ सैद्धांतिक बयानबाज़ी भारत जैसे जटिल देश में मामलों का हल नहीं निकाल सकती। इसलिए आगामी समय में इस राष्ट्रीय पार्टी को पुन: गहन विचार-विमर्श करके वोट की राजनीति की लालसा से ऊपर उठ कर देश के संवैधानिक नैतिक-मूल्यों को मज़बूत करने और लोगों की आर्थिक खुशहाली के लिए ठोस प्रण करके आगे बढ़ने की ज़रूरत होगी।

—बरजिन्दर सिंह हमदर्द

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