भारत के लिए नई सम्भावनाएं पैदा कर सकता है व्यापार युद्ध 

व्यापार युद्ध क्या है, इसका उदाहरण अमरीका द्वारा दुनिया के उन देशों पर जिनके साथ उसके व्यापारिक संबंध हैं, अपने बनाये टैरिफ  को लागू करना है। यह कदम उन देशों विशेषकर चीन जो एक महाशक्ति बन चुका है और वे जो उसे चुनौती दे सकते हैं, पर लगाम लगाने की कोशिश करना है। इसे ब्लैकमेल करना भी कह सकते हैं। जो उस पर निर्भर हैं वे सोच सकते हैं कि अमरीका उनके बनाए सामान का सबसे बड़ा खरीददार है, इसलिए उसकी बात न मानना ख़तरे को न्यौता देना है। यह उसकी दरियादिली नहीं कि तीन सप्ताह तक चीन के अतिरिक्त बाकी देशों में टैरिफ  लागू नहीं होंगे, बल्कि इस बात का संकेत है कि यह व्यक्ति योजनाबद्ध तरीके से काम कर रहा है। भारत को केवल अमरीका के संदर्भ से हटकर चीन के नज़रिये से भी सोचना होगा क्योंकि वह महाशक्ति बन चुका है। 
भारत के लिए चुनौती 
जहां तक हमारे देश का संबंध है, इस बात पर चिंतन और मनन करना ज़रूरी हो जाता है कि जो देश हमसे दो वर्ष बाद सन् 1949 में स्वतंत्र हुआ, वह आज हमसे बहुत आगे निकल गया तो कुछ तो इसके कारण होंगे। वर्तमान समय में यह तुलना आवश्यक ही नहीं आर्थिक विकास की नीतियों पर दोबारा सोचने के लिए भी महत्वपूर्ण है। चीन में भी राजशाही थी और भारत में भी राजे रजवाड़े, नवाब और शहंशाह हुकूमत करते थे। हमारी नीतियां कम्युनिस्ट चीन से कोई मेल नहीं खातीं जिसने अपने-आप को एक ऐसे पर्दे में कैद कर लिया था जिसे भेदना आसान नहीं था जबकि हम वसुधैव कुटुंबकम् की बात करते रहे हैं। 
अमरीका पूंजीवादी देशों में अग्रणी है। यह नौकरी या व्यवसाय करने के लिए पहली पसंद रहा है। भारत का दुर्भाग्य और अमरीका का सौभाग्य है कि हमारे वैज्ञानिक हों या आईटी प्रोफेशनल, वहां जाकर पढ़ना, नौकरी करना और उसे समृद्ध बनाने में मदद करना जीवन का लक्ष्य बना लेते हैं।
चीन और भारत
चीन न अपने यहां किसी को बुलाता और न ही वहां बसने के लिए प्रेरित करता है। आज भी नौकरी या व्यापार के लिए चीन बेशक जाना पड़ जाए, लेकिन जो लोग वहां गए हैं, वे चीन के विकास की ऊंचाइयों तक पहुंचने की बात तो करते हैं, लेकिन उनके यहां के नियमों और पाबंदियां का हर किसी के लिए पालन करना मुश्किल है। सन् 1978 के बाद चीन की अर्थव्यवस्था में क्रांतिकारी बदलाव आया। उनके नेताओं की चीन प्रथम की सोच थी जैसे अब ट्रम्प अमरीका प्रथम और हम भारत प्रथम कहते हैं। इसके लिए यह सोच बदलनी होगी कि किसी भी तरह विदेश जाओ और वहां से पैसे कमाकर भारत भेजो और कभी घूमने या अपनी जन्मभूमि की सैर करने का मन करे तो आ जाओ। अपने बच्चों को दिखाओ कि हम किस देश से आयें हैं जो उन्हें कभी अपना नहीं लगता और जल्दी से जल्दी यहां से चले जाना चाहते हैं। 
भारत के लिए आपदा में अवसर 
भारत के लिए यह एक चेतावनी है कि अगर हमने अपनी व्यापारिक नीतियों में सुधार नहीं किया तो उसका असर अर्थव्यवस्था पर पड़ेगा। सरकार की नीति है कि हमारी बनाई वस्तु हमें महंगी मिले और उसका निर्यात हो तो वह विदेश में सस्ती मिले। इसे बदलकर नए सिरे से किसी भी वस्तु के मूल्य तय करने की नीति बनानी होगी ताकि व्यापार संतुलन बनाए रखा जा सके। अमरीका का फल भारत में सस्ता मिल सकता है, लेकिन अपने देश में उगे फल के ज़्यादा दाम देने पड़ते हैं। इसी तरह इंजीनियरिंग गुड्स हों या बड़ी मशीनरी और उनके पुर्जे या फिर कोई अन्य उपकरण, घरेलू खपत के लिए अलग पैमाना और निर्यात के लिए एक्सपोर्ट क्वालिटी का कहकर अलग। यह अनुचित व्यापार है क्योंकि आप देशवासियों को घटिया और विदेशियों को बढ़िया और वह भी सस्ते दाम पर नहीं बेच सकते। 
आत्मनिर्भर भारत की कल्पना यही है कि सबसे पहले देशवासियों की आवश्यकताएं पूरी हों। आंतरिक व्यापार नियंत्रित होना ज़रूरी है। इससे भारत में ही अधिक से अधिक वस्तुओं का उत्पादन होगा, लोगों को रोज़गार मिलेगा, स्वदेशी उत्पादों की गुणवत्ता बेहतर होगी और वे भी एक्सपोर्ट क्वालिटी के बनाये जाएंगे। ग्रामीण क्षेत्रों में चाहे कृषि हो, पशुपालन हो या स्थानीय स्तर पर स्थापित लघु उद्योग हों, उनमें जितने लोगों की ज़रूरत है, वे वहीं रहकर उन्हें करें और शेष सभी व्यक्ति शहरों या कस्बाई इलाकों में अपना व्यवसाय शुरू करें या नौकरी करें, मतलब वे फालतू समय न गंवायें। 
एक सबसे ज़्यादा ज़रूरी काम है कि व्यापारिक नियमों को आसान, सरल और सुविधाजनक बनाना होगा। टैक्स में कमी और व्यापारी को अनावश्यक बंधनों से मुक्त करना, जीएसटी और इनकम टैक्स की दरों में विशेष छूट और कुछ मामलों में एक निश्चित अवधि में कोई तय टारगेट पूरा करने पर पूरी तरह से करमुक्त किया जा सकता है।  
विदेश व्यापार 
बाह्य व्यापार की बात करें तो यह वर्तमान टैरिफ  संकट से स्पष्ट हो गया है कि हम केवल कुछ देशों के साथ व्यापार नहीं कर सकते। ऐसे देशों के साथ मुफ्त व्वापार समझौते करने होंगे जो अभी विकास के मामले में हमसे बहुत पीछे हैं लेकिन उनके यहां प्राकृतिक संसाधनों की कोई कमी नहीं है। उनके पास टेक्नोलॉजी नहीं है, शिक्षा के साधन नहीं हैं और वे नहीं जानते कि प्राकृतिक भंडार का उपयोग कैसे किया जा सकता है। भारत विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में बहुत आगे है। हमारे पास अपनी बनाई टेक्नोलॉजी का खज़ाना है। इसके निर्यात से हम गरीब और अविकसित देशों को उद्योग स्थापित करने में सक्षम बना सकते हैं जिसमें इसमें हमारी हिस्सेदारी होगी। उनका विकास होगा और हम मुनाफे के हकदार होने से आर्थिक रूप से समृद्ध होंगे।  
हमें बड़े, नामचीन और अमीर देशों के साथ उनकी शर्तों पर व्यापार करने की अपेक्षा उन देशों से व्यापारिक संबंध अधिक से अधिक बढ़ाने होंगे जो हमारी नीतियों से मेल खाते हैं और वे भी विकासशील होना चाहते हैं। हमें उनकी गरीबी दूर नहीं करनी और न कोई दबाव बनाना है बल्कि स्थिति का फायदा उठाना है और उचित मूल्य और सहमति के आधार पर उनके साथ व्यापार करना है। इससे जहां अमरीका जैसे देश पर निर्भरता कम होगी वहीं हमारे पास शेष दुनिया व्यापार के लिए उपलब्ध होगी। यह व्यापार युद्ध आपदा में अवसर तलाशने के समान है और हमें इसका लाभ अपनी अर्थव्यवस्था को मज़बूत करने के लिए उठाना ही चाहिए। इससे जहां एक ओर अमरीका जैसे देशों की दादागिरी और दबंगई से मुक्ति मिलेगी वहीं अपने ही संसाधनों से विकास करने की खुशी भी मिलेगी। 

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