हॉलीवुड में तहलका मचाने वाले अभिनेता साबू दस्तगीर
क्या आपको मालूम है कि हॉलीवुड व पश्चिम की फिल्मों में तहलका मचाने वाला पहला भारतीय एक्टर कौन था? जब लोगों ने ओमपुरी व इरफान खान के नाम भी नहीं सुने थे, तब साबू दस्तगीर ने अपनी असाधारण अदाकारी से पश्चिमी दुनिया को मंत्रमुग्ध कर दिया था, यह अलग बात है कि कम उम्र में उनका निधन हुआ और बॉलीवुड उनकी प्रतिभा का फायदा न उठा सका। साबू (27 जनवरी 1924-2 दिसम्बर 1963) ने 1937 में मात्र 13 साल की आयु में हॉलीवुड में कदम रखा था और फिर 39 वर्ष की अल्प आयु में अपने निधन तक वह पश्चिम के टॉप एक्टर्स में शामिल रहे। उनका नाम वास्तव में सेलार साबू था और उनके भाई का नाम दस्तगीर था, जो उनके साथ अमरीका गये थे। लेकिन इमीग्रेशन का फॉर्म भरते समय कुछ गलतफहमी हो गई और साबू का नाम साबू दस्तगीर हो गया। उनके पिता मैसूर के महाराजा के यहां महावत थे। दोनों भाई बचपन में ही यतीम हो गये थे और महाराजा ने उनकी परवरिश की ज़िम्मेदारी ली। लेखिका फ्रांसिस फलाहेर्टी और उनके निर्देशक पति रोबर्ट फलाहेर्टी या उनके कैमरामैन ओसमोंड बोर्राडेले ने साबू को स्पॉट किया जब वह 1935 में फिल्म ‘एलीफैंट बॉय’ के लिए लोकेशन की तलाश कर रहे थे। यह फिल्म रुडयार्ड किपलिंग की ‘जंगल बुक’ की चर्चित कहानी ‘तूमाई एंड द एलीफैंट्स’ पर आधारित थी। इसकी कुछ शूटिंग रोबर्ट ने मैसूर में की और शेष ज़ोल्टन कोर्डा द्वारा इंग्लैंड के डेनहैम स्टूडियो में की गई थी। एलेग्जेंडर कोर्डा साबू को इंग्लैंड लेकर गये, जहां वह अपने भाई के साथ लंदन के वेस्ट एंड में रहने लगे। कुछ समय के लिए साबू ने लंदन के स्कूल में शिक्षा भी प्राप्त की। ‘एलीफैंट ब्वाय’ ज़बरदस्त हिट रही, जिसके लिए अधिकांश प्रशंसा साबू को मिली और आलोचकों ने उन्हें ‘कम्पलीट नेचरल’ एक्टर घोषित किया।
इसके बाद साबू की 1938 में ‘द ड्रम’ फिल्म आयी, जोकि एईडब्लू मेसन की पुस्तक पर आधारित थी। इसमें नार्थ वेस्ट फ्रंटियर में एक काल्पनिक राज्य दिखाया गया है, जिसके राजकुमार अज़ीम (साबू) को अपने क्रूर चचा से जान का खतरा है। अज़ीम ड्रम बजाने वाले एक ब्रिटिश लड़के से दोस्ती कर लेता है। यह पहली टेकनीकलर फिल्म थी और इसने बॉम्बे व मद्रास में तहलका मचा दिया था। बहरहाल, साबू की सबसे यादगार फिल्म ‘द थीफ ऑफ बगदाद’ (1940) थी, जिसमें वह अबू की भूमिका में थे जो ज़ालिम वज़ीर को मात देकर राजकुमारी को बचाता है। इस फिल्म ने स्पेशल इफेक्ट्स, सिनेमेटोग्राफी व आर्ट डायरेक्शन के लिए तीन ऑस्कर जीते थे। ‘जंगल बुक’ (1942) में साबू ने मोगली का किरदार निभाया था और इस फिल्म की शूटिंग हॉलीवुड में हुई थी। इस फिल्म को भी अकादमी अवार्ड्स मिले थे। इस फिल्म के बाद साबू अमरीका में ही रहने लगे और उन्होंने दूसरे विश्व युद्ध के दौरान उसकी सेना में भी अपनी सेवाएं दी थीं। वह 40 से अधिक एयर मिशन में शामिल रहे और बी-24 एयरक्राफ्ट पर मशीन गनर थे। अपनी इस सेवा के लिए उन्हें फ्लाइंग क्त्रॉस व अन्य सैन्य सम्मानों से सम्मानित किया गया। लगभग उसी समय साबू ने यूनिवर्सल से अनुबंध किया और फलस्वरूप ‘अरेबियन नाइट्स’, ‘वाइट सेवज’, ‘कोबरा वुमन’ जैसी सफल व चर्चित फिल्मों में काम किया।
इसके अतिरिक्त वह इंग्लैंड में भी फिल्मों में काम करते रहे। 1949 की फिल्म ‘सोंग ऑ़फ इंडिया’ के सेट पर साबू की मुलाकात मर्लिन कूपर से हुई। दोनों में प्यार हो गया और उन्होंने जल्द ही शादी कर ली। साबू की 1963 में अचानक मृत्यु तक कूपर ही उनकी पत्नी रहीं। साबू को अमूमन एक ही प्रकार की भूमिकाएं मिल रही थीं, जिनसे वह तंग आ चुके थे। इसलिए वह कुछ अलग हटकर भी करने लगे। अपने भाई की मदद से उन्होंने रियल एस्टेट में निवेश किया और हर्रिंगे सर्कस में हाथियों के साथ तमाशा भी दिखाने लगे। ऐसा लगा जैसे उनका फिल्मी करियर समाप्त हो गया है। लेकिन फिर ‘हेल्लो एलीफैंट’ आयी जिसमें साबू की भूमिका नागौर के सुल्तान की थी। यह फिल्म हिट रही तो महबूब खान ने उन्हें ‘मदर इंडिया’ में बिरजू का रोल ऑफर किया (जिसे बाद में सुनील दत्त ने किया) लेकिन साबू ने उसे करने से इंकार कर दिया। बहरहाल, दिलचस्प यह है कि निर्देशक जॉर्ज ब्लेयर की फिल्म ‘साबू एंड द मैजिक रिंग’ (1957) में साबू को अपने ही नाम वाली फिल्म में काम करने का अवसर मिला। इसमें वह एक अस्तबल में काम करने वाले व्यक्ति हैं जो एक जिन से दोस्ती कर लेता है और हाथियों से बातें करता है।
साबू की 2 दिसम्बर, 1963 को अचानक दिल का दौरा पड़ने से मौत हो गई। वह मात्र 39 वर्ष के थे। अपनी मौत से दो दिन पहले वह रूटीन चेकअप के लिए गये थे और उनके डाक्टर ने उनसे कहा था, ‘अगर मेरे सारे रोगी तुम्हारी तरह स्वस्थ रहेंगे तो मेरा तो सारा काम बंद हो जायेगा।’
-इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर