फिर दोस्ती की राह पर भारत और मालदीव

एक वक्त ऐसा भी था जब भारत और मालदीव के रिश्तों में तनाव आ गया था, संदेह था और दूरी बढ़ रही थी, लेकिन अब वही रिश्ते फिर से गरमाहट और सहयोग की दिशा में लौटते दिख रहे हैं। साल 2023 के अंत में जब मोहम्मद मुइज़्ज़ू मालदीव के राष्ट्रपति बने तो नई दिल्ली के गलियारों में खलबली मच गई। वजह थी उनका चुनाव प्रचार, जिसमें ‘इंडिया आउट’ अभियान चलाया गया। भारतीय सैनिक वहां समुद्री निगरानी, मानवीय सहायता और आपदा प्रबंधन जैसे कार्यों के लिए तैनात थे लेकिन मुइज़्ज़ू की राष्ट्रवादी बयानबाज़ी ने सैनिकों की मौजूदगी को मालदीव की संप्रभुता पर खतरे के तौर पर दिखाया और भारतीय सैनिकों को देश से बाहर निकालने की बात की गई। इसके बाद माले-दिल्ली के रिश्ते तनातनी की राह पर चल पड़े।
राष्ट्रपति बनने के बाद मुइज़्ज़ू पहली आधिकारिक यात्रा पर भारत की जगह तुर्की गए। इसके साथ ही उन्होंने भारत के साथ हाइड्रोग्राफी समझौता नवीनीकृत करने से इन्कार कर दिया। उन्होंने एक चीनी शोध पोत को मालदीव के जलक्षेत्र में प्रवेश की अनुमति दी जिससे भारत की चिंता और बढ़ गई थी। इन घटनाओं के बीच मालदीव के कुछ नेताओं ने प्रधानमंत्री मोदी की पर्यटन को बढ़ावा देने वाली नीति पर टिप्पणी कर दी थी, जिससे दोनों देशों के रिश्तों में कटुता और बढ़ गई थी।
सही है मालदीव ने पिछले कुछ वर्षों में चीन की ओर झुकाव दिखाया है, लेकिन सच्चाई यह भी है कि भूगोल नहीं बदला जा सकता। भारत और मालदीव के बीच हिंद महासागर की साझी सीमाएं हैं, साझा हित हैं और ऐतिहासिक संबंध भी साझे हैं। इसलिए भले ही चीन का प्रभाव बढ़े, मालदीव भारत को दरकिनार नहीं कर सकता। क्षेत्रीय स्थिरता के लिए भारत की नीति यानी सिक्योरिटी एंड ग्रोथ फॉर आल इन द रीजन के तहत छोटे द्वीपीय देशों को साथ लेकर चलने की है।
ऐसे में रिश्तों में सुधार के लिए भारत ने सार्वजनिक प्रतिक्रिया देने की बजाय बैकचैनल डिप्लोमेसी का रास्ता अपनाया। चुपचाप बातचीत हुई और दोनों देश एक ऐसे समझौते पर पहुंचे जिसमें भारतीय सैनिकों को तकनीकी विशेषज्ञ भारतीय नागरिकों से बदल दिया गया। इससे मुइज़्ज़ू की जनता को भी जवाब मिला और भारत को भी राहत। मुइज़्ज़ू जून 2024 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के तीसरे कार्यकाल के शपथ ग्रहण समारोह में शामिल हुए थे। फिर अक्तूबर में उन्होंने भारत की आधिकारिक यात्रा की।
मार्च 2024 में राष्ट्रपति मुइज़्ज़ू ने एक इंटरव्यू में कहा कि भारत मालदीव का सबसे करीबी सहयोगी है। उन्होंने कभी ऐसा कोई कदम नहीं उठाया जो भारत-मालदीव रिश्तों को नुकसान पहुंचाए। मुइज़्ज़ू ने भारत से आर्थिक मदद की उम्मीद जताई। भारत ने भी सकारात्मक संकेत दिए। उसने मालदीव को दिए गए कज़र् की पुनर्भुगतान शर्तों को आसान किया और 50 मिलियन डॉलर के ट्रेजरी बिल की परिपक्वता अवधि एक साल और बढ़ा दी। यह आर्थिक सहयोग ऐसे समय पर आया जब मालदीव आर्थिक संकट से जूझ रहा था।
मालदीव की अर्थव्यवस्था पर्यटन पर टिकी हुई है। खासकर भारतीय पर्यटक उन महीनों में आते हैं जब पश्विमी देशों से पर्यटक नहीं आते। इस कारण भारतीय पर्यटक ऑफ. सीजन में भी मालदीव के पर्यटन उद्योग को जीवित रखते हैं। मालदीव मार्केटिंग एंड पब्लिक रिलेशंस कॉर्पोरेशन और भारत में मालदीव के उच्चायुक्त बालासुब्रमण्यम के बीच हालिया बैठक में इस बात पर चर्चा हुई कि कैसे भारतीय पर्यटकों की संख्या को और बढ़ाया जाए। इससे दोनों देशों को आर्थिक रूप से फायदा होगा।
खबर है कि प्रधानमंत्री मोदी 26 जुलाई को मालदीव के स्वतंत्रता दिवस समारोह में शामिल हो सकते हैं। मालदीव के विदेश मंत्री अब्दुल्ला खलील ने हाल ही में भारत दौरे के दौरान मुइज़्ज़ू की ओर से मोदी को यह निमंत्रण फिर से दोहराया। अगर मोदी जाते हैं तो यह उनकी मुइज़्ज़ू शासनकाल में पहली मालदीव यात्रा होगी। यह कदम संबंधों को और मज़बूती देगा। भारत और मालदीव के संबंध अब धीरे-धीरे संदेह की रात से निकलकर विश्वास की सुबह की ओर बढ़ रहे हैं। ये रिश्ता भूगोल, अर्थशास्त्र और आपसी सहयोग की ज़रूरतों पर आधारित है। यह दिखाता है कि कूटनीति में कोई दरवाज़ा कभी पूरी तरह बंद नहीं होता।  भारत और मालदीव  दोनों अपने हितों को समझते हैं और अब एक साथ आगे बढ़ने को तैयार हैं। (युवराज)

#फिर दोस्ती की राह पर भारत और मालदीव