दुनिया के हित में नहीं है ईरान-इज़रायल युद्ध

ईरान पर इज़रायल के हमले से पश्चिम एशिया में एक बार फिर से तनाव बढ़ गया है। ये हमले ईरान के बहुत अंदर तक किए गए और परमाणु व बैलिस्टिक मिसाइल ठिकानों पर हमले करने के अतिरिक्त सशस्त्र बलों व आईआरजीसी के प्रमुखों को भी मार गिराया गया। ईरान ने भी जवाबी हमले किए हैं, लेकिन आज उसके पास सीमित विकल्प हैं। इज़रायल ने पिछले साल ही उसकी लेबनानी प्रॉक्सी हिज़बुल्लाह को बहुत कमज़ोर कर दिया था और सीरिया में तेहरान समर्थक असद शासन का पतन हो गया था। इसके अलावा इज़रायल का दावा है कि उसके नवीनतम हमलों में गोपनीय मोसाद सेल शामिल था, जिसने ईरान के भीतर से हमला करते हुए ईरानी एयर डिफेंस व बैलिस्टिक मिसाइल लांचर्स को नष्ट किया। इसका अर्थ यह है कि तेहरान का काउंटर-इंटेलिजेंस नेटवर्क अनेक मोर्चों पर विफल रहा है। 
इस बीच अमरीका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ईरान को धमकी दे रहे हैं कि अगर तेहरान ने अपने परमाणु कार्यक्रम पर वाशिंगटन के साथ ताज़ा समझौता नहीं किया तो इज़रायल उस पर और सैन्य हमले करेगा। इस मुद्दे पर अमरीका व ईरान के बीच वार्ता चल रही है, लेकिन तेहरान वाशिंगटन की इस बात को मानने के लिए तैयार नहीं है कि वह अपना परमाणु कार्यक्रम स्थगित कर दे। बहरहाल, अगर हमलों का उद्देश्य आयतुल्लाह को सख्त संदेश देना था, तो उनका विपरीत असर हो सकता है। तेहरान अपना परमाणु हथियार कार्यक्रम तेज़ कर सकता है और परमाणु अप्रसार संधि (एनपीटी) को छोड़ सकता है। इससे खाड़ी के अरब देशों में तनाव बढ़ सकता है और सऊदी अरब भी परमाणु हथियार बनाने पर बल दे सकता है। 
ज़ाहिर है इस सबका ऊर्जा दामों पर बहुत गहरा असर पड़ेगा। कच्चे तेल के दामों में पहले ही 9 प्रतिशत की वृद्धि हो चुकी है और इसमें अतिरिक्त इजाफा हो सकता है। सप्लाई चेनों पर भी इसका बुरा प्रभाव पड़ सकता है; क्योंकि खाड़ी में महत्वपूर्ण समुद्री मार्ग हैं। साथ ही हमें अंडर-सी केबल्स को भी नहीं भूलना चाहिए जिन्हें निशाना बनाया जा सकता है या उनका बतौर हथियार इस्तेमाल किया जा सकता है। भारत के लिए भी चीज़ें जटिल हो गई हैं। चाबहार बंदरगाह के ज़रिये ईरान हमें अफगानिस्तान के लिए महत्वपूर्ण वैकल्पिक व्यापार मार्ग प्रदान करता है। यही मार्ग सम्पर्क है केन्द्रीय एशिया के लिए इंटरनेशनल नार्थ-साउथ कॉरिडोर तक। अगर इस क्षेत्र में तनाव लम्बे समय तक चलता है, तो सब चीज़ों पर काले बादल छा जायेंगे। तेल अवीव व तेहरान के बीच सैन्य टकराव का बढ़ना दुनिया के हित में नहीं है, लेकिन नेतन्याहू, आयतुल्लाह व ट्रम्प के इरादे नेक नहीं लग रहे हैं। फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों ने कहा कि अगर ईरान जवाबी हमला करता है तो फ्रांस इज़रायल की रक्षा करने में मदद करेगा, लेकिन यह समर्थन बिना शर्त व बिना सीमा का नहीं है। पेंटागन भी पश्चिम एशिया में अपने युद्धपोत व अन्य हथियार तैनात कर रहा है ताकि इज़राइल की रक्षा की जा सके। 
लगभग चार दशक तक ईरान ने अरबों डॉलर, हथियार व सैन्य शक्ति का निवेश इज़रायल विरोधी नेटवर्क विकसित करने में किया, जिसे ‘एक्सिस ऑफ रेजिस्टेंस’ कहते हैं, कि जब इज़रायल से युद्ध होगा तो यह लोग ईरान के साथ खड़े हो जायेंगे, लेकिन पिछले एक वर्ष के दौरान यह एक्सिस बहुत कमज़ोर हो गया है और किसी को यह उम्मीद नहीं है कि इससे तेहरान की कोई अर्थपूर्ण मदद हो सकेगी। हिज़बुल्लाह, जो लेबनान में ईरान का सबसे मज़बूत सहयोगी है, ने ईरान पर इज़रायल के हमले की निंदा तो अवश्य की लेकिन उसने यह नहीं कहा कि वह इसका बदला लेगा। यमन के हूतियों ने भी ऐसा कोई संकेत नहीं दिया कि वह जवाबी सैन्य कार्रवाई करेगा। यह सही है कि एक्सिस पूरी तरह से नष्ट नहीं हुआ है, लेकिन बहुत कमज़ोर अवश्य हो गया है। एक्सिस इज़रायल को रक्षा की मुद्रा में लाने की स्थिति में नहीं है। ईरान ने दिसम्बर में अपने एक महत्वपूर्ण सहयोगी को भी खो दिया जब विद्रोहियों ने सीरिया में बशर अल-असद का तख्ता पलट दिया था। इराकी मिलिशिया में अभी कुछ दम खम ज़रूर बाकी है। इसका अर्थ यह है कि ईरान पर हमला उस समय किया गया है, जब वह अपनी सबसे कमज़ोर स्थिति में था। 
बहरहाल, इज़रायल के हमलों से ईरान अपमानित अवश्य हुआ है, लेकिन पराजित नहीं हुआ है। इसलिए यह मानकर बैठ जाना बहुत बड़ी भूल होगी कि ईरान खामोश बैठ जायेगा। इस लेख के लिखते समय ही यह खबर आ गई कि ईरान ने इज़राइल पर मिसाइलों की बारिश की है। ईरान के पहले हमले में इज़रायल में तीन लोग मारे गये और अनेक घायल हुए। ईरान के दूसरे हमले में 2 लोग मारे गये व 19 अन्य घायल हुए हैं। यह हमले ईरान के सुप्रीम लीडर आयतुल्लाह अली खामेनेई के टीवी संबोधन के बाद शुरू हुए, जिसमें उन्होंने कहा, ‘इस्लामी गणराज्य के सशस्त्र बल दुश्मन पर बहुत तगड़ी मार लगायेंगे।’ ईरान ने तेल अवीव के केंद्र में हमले किये हैं। दूसरी ओर इज़रायल ने भी ईरान पर ड्रोनों से हमला किया है। ज़ाहिर है दोनों देशों के बीच सैन्य टकराव निरन्तर बढ़ता जा रहा है और अगर विश्व समुदाय ने इस पर जल्द रोक न लगायी तो यह तीसरे विश्व युद्ध में भी बदल सकता है, जिस तरह से अमरीका, फ्रांस आदि इज़रायल के पक्ष में कूदने के लिए तैयार हैं और ईरान के समर्थन में रूस व चीन आने को तैयार हैं। 
युद्ध में कितना ही खून बहा लिया जाये, आखिर में फैसले वार्ता मेज़ पर ही होते हैं। ईरान व इज़रायल को भी आखिरकार वार्ता मेज़ पर ही आना होगा, लेकिन युद्ध का नतीजा यह हुआ है कि पश्चिम एशिया का एयरस्पेस बंद कर दिया गया है, यूरोप आने जाने वाली 1,800 उड़ाने प्रभावित हुई हैं। इज़रायल व ईरान के आम नागरिक तनाव में हैं। सैन्य टकराव तो इन दोनों मुल्कों में हो रहा है, लेकिन महंगाई व आर्थिक मंदी की मार दुनिया के लगभग सभी देशों को झेलनी पड़ेगी। 
इसमें कोई दो राय नहीं कि वर्तमान स्थिति के लिए इज़रायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ज़िम्मेदार हैं। उनका इज़रायल में ज़बरदस्त विरोध हो रहा है, लगभग रोज़ाना ही उनके खिलाफ सड़कों पर विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं और वह अनेक आर्थिक घोटालों में भी संदिग्ध हैं, जिससे संबंधित मामले अदालत में हैं। अपने खिलाफ  चल रहे अदालती मामलों से बचने के लिए पहले उन्होंने न्यायपालिका को ही एग्ज़ीक्यूटिव के अधीन करने का प्रयास किया, जो भारी विरोध के कारण असफल रहा। इसके बाद अपनी कुर्सी बचाये रखने के लिए वह अपने मुल्क को निरन्तर युद्ध में झोंके हुए हैं। हमास से बंदियों की रिहाई के लिए हुए समझौते को भी उन्होंने अपने स्वार्थ के कारण सफल नहीं होने दिया। इज़रायली अख़बारों का कहना है कि युद्ध बंद हुए तो नेतन्याहू अपने घोटालों के कारण जेल में होंगे। -इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर 

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