फसली विभिन्नता के लिए फूलों की काश्त अपनाएं
पंजाब में फूलों की कृषि एक बढ़ता हुआ क्षेत्र है। फूलों की काश्त के अधीन क्षेत्रफल में वृद्धि हो रही है। इस वृद्धि के कई कारण हैं, जिनमें से एक कारण फूलों की किस्मों में आ रहा बदलाव है। किसान पहले फूलों की परम्परागत किस्में लगाते थे, जिनमें कमल, गुलाब, गेंदा (मैरीगोल्ड), चम्पा, सूरजमुखी, कनेर, मोगरा, चमेली आदि शामिल थे। गुलाब भारत में सबसे अधिक पसंद किया जाने वाला फूल रहा है और गेंदा एक परम्परागत फूल है जिसका इस्तेमाल धार्मिक समारोहों तथा सजावट आदि के लिए किया जाता रहा है। इसके अतिरिक्त चम्पा के फूलों को इत्र बनाने के लिए इस्तेमाल किया जाता है और सूरजमुखी अपने बड़े आकार तथा बढ़िया पीले रंग के कारण जाना जाता रहा है, परन्तु अब राष्ट्रीय तथा अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर इनकी मांग ज़्यादा नहीं रही।
किसानों ने भी अब इन परम्परागत किस्मों की बजाय नई किस्मों की बिजाई को प्राथमिकता देना शुरू कर दिया है, क्योंकि नई किस्मों के फूलों का मूल्य परम्परागत किस्मों के फूलों से अधिक है जिससे किसानों की आय में वृद्धि होती है। इन नई किस्मों में छोटे, मध्यम तथा बड़े कद वाली कई किस्में आती हैं। ब्रैचीकम, डेज़ी, पेज़ी, आइस प्लांट, स्वीट अलाइसम, फ्रैंच मैरीगोल्ड आदि छोटे कद वाली किस्में हैं। एक्रोक्लाइज़म, एस्टर, कार्नेशन, स्वीट विलीयम, प्टूनिया, क्लाकरिया, कैलेफोर्निया, पोपी, नमेशिया, गजानियां, साल्विया, वाल फ्लावर, जिप्सोफिला, स्टेटिस, कोडिडफ्ट, क्लैंडुला, फ्लौक्स, वर्बीना, डाईमोरफोथिका, नष्टर्शियम, सिनेरेरिया आदि मध्यम कद वाली तथा गुलदाउदी, कोर्न फ्लावर, स्वीट सुल्तान, डेहलिया, लार्कस्पर, अफ्रीकन गेंदा, एंट्राइनम, हैलीक्राइसम, होलीहॉक, कासमास, स्वीट पी, बिल्ज़ ऑफ आयरलैंड आदि बड़े कद वाली किस्में हैं।
पहले कृषि परम्परागत किस्मों तक सीमित थी, परन्तु अब किसान नई उच्च मूल्य वाली किस्मों को अपना रहे हैं और अपनी आय में वृद्धि कर रहे हैं। इसके अतिरिक्त फूलों के अधीन बढ़ रहे क्षेत्रफल का दूसरा कारण विवाह तथा अन्य समारोहों आदि में सजावट तथा तोहफे के रूप में फूलों के इस्तेमाल के रूझान के कारण घरेलू तथा अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर फूलों की मांग बढ़ रही है। कृषि एवं किसान कल्याण तथा बागवानी विभागों के फसली विभिन्नता के लिए किए जा रहे प्रयासों के कारण भी इस क्षेत्र में वृद्धि हो रही है। बागवानी विभाग द्वारा किसानों को फूलों की काश्त को अपनाने के लाभ बारे जानकारी उपलब्ध करवाई जा रही है और किसानों को गेहूं-धान फसली चक्र की बजाय बागवानी तथा फूलों आदि की काश्त से अधिक आय कैसे प्राप्त की जाए, संबंधी जागरूक किया जा रहा है।
पंजाब कृषि विश्वविद्यालय (पी.ए.यू.), लुधियाना नए अनुसंधान तथा प्रशिक्षण की सहायता उपलब्ध करके फूलों की कृषि को उत्साहित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। पंजाब सरकार की ओर से पंजाब राज्य बागवानी मिशन, बागवानी के एकीकृत विकास के लिए मिशन आदि कई ऐसी योजनाएं शुरू की गई हैं, जिनका प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से फूलों की कृषि करने वालों को लाभ पहुंचता है। ग्रामीण क्षेत्र के साथ-साथ शहरी लोगों में भी घरेलू स्तर पर बागीचियां लगाने का शौक बढ़ रहा है। लोग पर्यावरण संबंधी बढ़ रही समस्याओं के प्रति जागरूक हो रहे हैं और अपने घरों तथा पार्कों में विभिन्न तरह के फूल-पौधे लगा रहे हैं। घरेलू स्तर पर बागीचियां लगाने के भी कई लाभ हैं। फूल हमें ताज़ा आक्सीजन उपलब्ध करते हैं। बागीचियों में काम करते या समय गुज़ारते हुए हमारा मानसिक स्वास्थ्य भी काफी अच्छा रहता है। फूल तनाव (डिप्रैशन) को दूर करते हैं।
फूल बुज़ुर्ग व्यक्तियों की स्मरण-शक्ति बढ़ाते हैं, हमारे मिज़ाज (मूड) को ठीक रखते हैं और इनके निकट रहने वाले व्यक्ति अच्छी तथा गहरी नींद लेते हैं। फूलों की खुशबू हमारे दिमाग को क्रियाशील रखती है। जहां ये हमारी उत्पादकता और रचनात्मकता को बढ़ाते हैं, वहीं ये अपने अलग-अलग रंगों से आस-पास के दृश्य को भी चार चांद लगाते हैं। शहरों में पार्कों या रिक्त पड़े स्थानों को ये स्वच्छता भी उपलब्ध करते हैं, नहीं तो इन स्थानों पर नदीन उग पड़ते हैं। घरों में बागीचियां लगाने से हमारे खाली समय का उचित इस्तेमाल हो सकता है और शरीर की भी कसरत होती रहती है। फूल बीमार व्यक्ति को भी स्वस्थ महसूस करने में मदद करते हैं। एक बेरोज़गार व्यक्ति फूलों वाले गमले तैयार करके बेच सकता है, यह काम उसकी आय का भी साधन बन सकता है, फूलों की प्रतियोगिताओं में हिस्सा ले सकता है और ईनाम प्राप्त करके समाज में अपनी अलग पहचान बना सकता है।