वर्तमान राजनीति में गालियों को मिलता है विशेष महत्व

प्रधानमंत्री द्वारा चीन से भारत आते ही एक ऑनलाइन कार्यक्रम में अपनी मां को दी गई गाली को चुनावी मुद्दा बनाने से कुछ प्रश्न पैदा हुए हैं जिन्हें पूछना ज़रूरी है। पहला सवाल तो यह पूछा जा सकता है कि अगर प्रधानमंत्री की मां को किसी अनजान पिकअप ड्राइवर द्वारा दी गई गाली का बदला पूरे बिहार को लेना चाहिए, तो क्या गुजरात को यह बदला क्यों नहीं लेना चाहिए? क्या इस गाली कांड से केवल बिहार का ही हृदय विदीर्ण हुआ है? गुजरात समेत पूरे देश को यह बदला क्यों नहीं लेना चाहिए? क्या यह सोच कर अजीब नहीं लगता कि अपनी मां के सम्मान की रक्षा के लिए प्रधानमंत्री ने केवल उसी प्रदेश को क्यों चुना जहां चुनाव होने वाला है? आखिर मां को मिली गाली का चुनाव से क्या संबंध है?
दूसरा सवाल यह है कि मोदीजी और उनके एनडीए पार्टनरों ने केवल पांच घंटे का सांकेतिक बंद ही क्यों करवाया? गुजरात में तो पांच घंटे का सांकेतिक बंद भी नहीं कराया गया। उस गुजरात में जहां के मोदीजी स्वयं हैं और जहां की उनकी मां भी थीं। ऐसा क्यों है कि मोदीजी केवल बिहार के ही लोगों से अपना गुस्सा ज़ाहिर करने की अपील करते हुए दिखाई दिये? क्या यह पूरा देश उनकी मां का सम्मान नहीं करता, क्या पूरे देश को प्रधानमंत्री की मां क। इस जघन्य अपमान के प्रति रोष व्यक्त नहीं करना चाहिए? क्या इससे यह साबित नहीं होता कि प्रधानमंत्री इस गाली प्रकरण को किसी न किसी प्रकार वोटों में बदलना चाहते हैं? उनके लिए बिहार का चुनाव जीतना बहुत ज़रूरी है। अगर बिहार हार गये तो उनकी पहले से ही कमज़ोर होती जा रही सत्ता का ढांचा बुरी तरह से दरक जाएगा। जिस समय मैं इन प्रश्नों पर सोच रहा था, उसी समय मेरे सामने अचानक सोशल मीडिया पर मौजूद सोनिया गांधी का एक वक्तव्य आ गया। इसमें सोनिया जी यह कहते हुए देखी-पढ़ी जा सकती है कि ‘मैं भी एक मां हूँ’। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी, आपने मुझे कांग्रेस की ‘विधवा’ कह कर मेरा अपमान किया था। मुझे ‘जर्सी गाय’ कहा था, क्या यह एक मां का अपमान नहीं था? भाजपा आईटी सेल के लोग मेरे बारे में अपमानजनक ट्रेंड कराते रहे। आप लोगों द्वारा मुझे आज भी ‘विदेशी’ कहा जाता है। मेरी बीमारी का मज़ाक उड़ाते हुए आपने कहा कि मैं डर कर रायबरेली से भाग गई और राजस्थान से राज्यसभा गई। जबकि हकीकत यह है कि मैं बीमारी की वजह से चुनाव प्रचार नहीं कर सकती थी लेकिन आपने इसमें भी मेरा मज़ाक उड़ाया। क्या तब मेरा अपमान नहीं हुआ था? मैं अपना देश छोड़ कर हिंदुस्तान आई और अपनी मां जैसी सास को और अपने पति को शहीद होते देखा। अगर मैं चाहती तो विदेश लौट सकती थी लेकिन इस देश की मिट्टी से आज भी मुझे अपनी पति की खुशबू आती है। इसी देश की सरजमीं से मुझे उतनी ही मोहब्बत है जितनी अपनी मां से है और इसी सरजमीं पर अपनी आखिरी सांस तक रहूंगी। 
सोनिया का वक्तव्य एक और सवाल पैदा करता है। क्या सोनिया गांधी ने कभी अपने खिलाफ हुई गालीगलौज को चुनावी मुद्दा बनाने की कोशिश की? हम पहले से ही जानते हैं कि न राहुल गांधी ने और न ही उनकी मां ने इन बातों की बिना पर कभी वोट नहीं मांगे हैं लेकिन नरेंद्र मोदी मांगते हैं। उन्होंने पहले कर्नाटक के चुनाव में उनको मिली गालियों क। नाम पर वोट मांगे थे। तब उनकी इस कोशिश को कर्नाटक की जनता ने ठुकरा दिया था। जिस तरह सोनिया गांधी का सवाल है, उसी तरह प्रधानमंत्री से एक प्रश्न सुरेंद्र राजपूत का भी है जो कांग्रेस के प्रवक्ता हैं। सुरेंद्र राजपूत की एक खास बात है कि उन्हें शेरो-शायरी का शौक है और वे अपनी बातचीत में अच्छे जुबान पर चढ़ जाने वाले शेर भी कहते हैं। सुरेंद्र राजपूत ने सोशल मीडिया पर कहा है कि वे प्रधानमंत्री जी की इस बात से सहमत हैं कि उनकी मरी हुई मां को गाली देना करोड़ों मांओं को गाली देना है और दोषियों के खिलाफ कठोरता से कारवाई होनी चाहिए। पर जैसे उनकी मां है वैसे मेरी भी मां है। मेरी भी मरी हुई मां को भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता ने बहुत नीच, निर्लज्ज और भद्दी गाली दी थी। वह भी खुलेआम एक बहुत प्रतिष्ठित चैनल पर। राजपूत पूछते हैं कि क्या किया आपने उसके खिलाफ? क्या आपने माफी मांगी? प्रधानमंत्री को संबोधित करते हुए सुरेद्र राजपूत बताते हैं कि मैंने तो आपको पत्र भी लिखा था। क्या आपने कोई कार्रवाई की? क्या आपने एफआईआर की? क्या मेरी मां को गाली देने वाले भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय प्रवक्ता को आपने पार्टी से हटाया? वह आज भी प्रवक्ता के पद पर हैं। 
प्रधानमंत्री के लिए मेरे पास एक तीसरा सवाल भी है। यह सवाल दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की तरफ से पूछा जा सकता है। हम सभी को याद है कि दिल्ली की भाजपा सरकार की मुखिया रेखा गुप्ता ने अरविंद केजरीवाल की मां की चर्चा किस लहज़े और संदर्भ में की थी। जबसे रेखा गुप्ता मुख्यमंत्री बनी हैं तब से तो उनका यह कथन लोगों को और भी तीखे ढंग से याद आ गया है। रेखा गुप्ता के शब्द ़गौर करने काबिल हैं..  अरविंद केजरीवाल दिल्ली तेरे बाप की नहीं है जो तू यहां मुख्यमंत्री बनकर बकवास कर रहा है। दिल्ली जनता की है और जनता ही तुझे तेरी मां की कोख में वापस भिजवाएगी। कमीना कहीं का। रेखाजी यहीं पर नहीं रुकीं। उन्होंने यह भी कहा कि केजरीवाल अपना जन्मदिन कभी भी नहीं मनाता। उसने अपनी मां से घटना का वीडियो मांगा था जिसे वह दे नहीं सकी थी। रेखा गुप्ता तो अपने इन बयानों को वापिस भी नहीं ले सकतीं। ये उन्होंने लिखित रूप से ट्वीट करके रिकॉर्ड में दर्ज कर दिये हैं। दरअसल, उन्हें इन पर अफसोस नहीं बल्कि गर्व है। उन्हें दिल्ली का मुख्यमंत्री पद मिला ही अपनी इस गालीबाज़ प्रतिभा के कारण है। इस हिंदू राष्ट्रवादी पार्टी की राजनीतिक संस्कृति है ही इस किस्म की। जो भाजपा के विरोधियों को जितनी गाली देता है, उसके पार्टी में आगे बढ़ने की संभावनाएं और बढ़ जाती हैं। महिलाएं वैसे आम तौर पर पुरुषों के मुकाबले शिष्ट होती हैं। परन्तु भाजपा में रेखा गुप्ता जैसी महिलाओं को दूसरों की माओं का अपमान करने पर तरक्की मिलती है। प्रधानमंत्री को बताना चाहिए कि भाजपा में गाली देने वालों को खासतौर पर ‘मां की गाली देने’ वालों को पदोन्नति क्यों मिलती है।
शीर्ष पर बैठे हुए भाजपाइयों की यह विशेषता है कि वे अपनी गाली देने की क्षमता पर सार्वजनिक रूप से गर्व करते हैं। भाजपा के बिहार अध्यक्ष दिलीप जायसवाल अपने एक वीडियो में कहते हुए सुने जा सकते हैं कि वे राहुल गांधी को 50 गालियां देने के लिए तैयार हैं। उनके पास तो गालियों की एक पूरी डिक्शनरी है। जायसवाल जनता से कह रहे हैं कि आप शायद सुने भी होंगे कि कैसी-कैसी गालियां मैं जानता हूँ। बिहार भाजपा क। पूर्व अध्यक्ष सम्राट चौधरी अपने एक भाषण में गर्व से उपस्थित जनता को बता रहे हैं- मेरी तरफ देख लीजिए। मैंने क्या किया। विरोधी दल का नेता हुआ, तो एक नेता को इतना गाली दिया कि पूरे प्रदेश में सिर्फ सम्राट चौधरी ही दिखने लगा। गलत बोल रहा हूं क्या। यह भी एक हकीकत है कि एक ज़माने में हिमाचल प्रदेश के भाजपा अध्यक्ष ने राहुल गांधी को मंच से मां की गाली दी थी। चूंकि राहुल ने ‘चौकीदार चोर है’ का नारा लगाया था, इसलिए भाजपा नेता ने किसी दूसरे के हवाले से उन्हें मां की गाली दे दी। भाजपा के कई नेताओं ने गालियां बकने की अपनी क्षमता के दम पर ही राजनीति में प्रगति की है। दिल्ली की मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता ने इस विशिष्ट भाजपाई क्षमता में जेंडर इफेक्ट या महिला इफेक्ट पैदा किया है लेकिन मैं फिर कहूंगा कि अपनी पार्टी की इस खास किस्म की राजनीतिक संस्कृति के शिखर पर कोई और नहीं बल्कि नरेंद्र मोदी स्वयं बैठे हुए हैं। उन्हें तो गालियों का कलाकार कहा जा सकता है। सोनिया गांधी के लिए जिस तरह के अपशब्द (राहल गांधी को उन्होंने मूर्खों का सरदार कहा था) वे बोल चुके हैं, उनसे स्पष्ट है कि वास्तव में इस मामले में उनसे बेहतर कोई और नहीं है। 

लेखक अम्बेडकर विश्वविद्यालय, दिल्ली में प्ऱोफेसर और भारतीय भाषाओं के अभिलेखागारीय अनुसंधान कार्यक्रम के निदेशक हैं।

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