दयनीय स्थिति में हैं देश के सरकारी स्कूल
देश में शिक्षा के धरातल पर स्थिति प्राय: अधिकतर राज्यों में बड़ी दयनीय है। कहीं पर शिक्षकों की संख्या न्यूनतम है, और कहीं पर विद्यार्थियों का नितांत अभाव पाया जाता है। स्थितियों की गम्भीरता का पता इस एक तथ्य से भी चलता है कि देश में एक लाख चार हज़ार 125 स्कूल ऐसे हैं जहां केवल एक ही शिक्षक सभी श्रेणियों की पढ़ाई के अलावा अन्य प्रशासनिक दायित्व भी निभाता है। बड़ी संख्या में ऐसे भी स्कूल पाये गये जहां एक या दो से अधिक शिक्षक नहीं हैं जिस कारण वहां के अधिकतर विद्यार्थियों की पढ़ाई का क्रम प्रतिदिन प्रभावित होता है। इसके विपरीत विद्यार्थियों के धरातल पर भी स्थित कमोबेश ऐसी ही है। देश में मौजूदा तौर पर कुल 14.71 लाख स्कूल हैं किन्तु इनमें से 7993 स्कूलों में पिछले शिक्षा-सत्र में एक भी छात्र का दाखिला रजिस्टर में दर्ज नहीं हुआ। शिक्षा के लिए गठित एकीकृत ज़िला सूचना प्रणाली की एक रिपोर्ट के अनुसार केन्द्र सरकार ने बेशक शिक्षा के धरातल पर अनेक नई नीतियां और कार्यक्रम तैयार किये हैं, किन्तु इनमें से अधिकतर कागज़ों से आगे नहीं बढ़े। इस रिपोर्ट का उद्देश्य देश के सभी राज्यों में शिक्षा मंत्रालयों की कार्य-प्रणाली का आंकलन कर डाटा आधारित जानकारी एकत्रित करना था। इस डाटा को राज्यों के शिक्षा मंत्रालयों की ओर से उपलब्ध कराया गया था।
इस रिपोर्ट से यह भी निष्कर्ष निकलता है कि यह स्थिति किसी एक राज्य की नहीं, अपितु अधिकतर राज्यों में एक जैसी है। जिन राज्यों के स्कूलों में एक भी विद्यार्थी ने दाखिला नहीं लिया, उनमें पश्चिम बंगाल अग्रणी है जहां ऐसे स्कूलों की संख्या 3812 है। दूसरे स्थान पर तेलंगाना है जहां 2245 स्कूलों में एक भी विद्यार्थी दाखिल नहीं हुआ। गनीमत यह है कि ऐसे स्कूलों वाले राज्यों में पंजाब शुमार नहीं है। हरियाणा और महाराष्ट्र समेत 15 ऐसे राज्य हैं जो इस शून्य छात्र-प्रवेश के अभिशाप से मुक्त हैं। बिहार को हालांकि देश के कुछ पिछड़े राज्यों में शुमार किया जाता है किन्तु इस राज्य में केवल 5 स्कूल ऐसे पाये गये जहां विगत सत्र में एक भी विद्यार्थी ने प्रवेश नहीं लिया।
इसी प्रकार देश के जिन राज्यों में केवल मात्र एक ही शिक्षक है, उनमें 12,912 की संख्या के साथ आंध्र प्रदेश सबसे आगे है। दूसरे और तीसरे स्थान पर उत्तर प्रदेश और झारखंड राज्य हैं जहां ऐसे स्कूलों की संख्या क्रमश: 9508 और 9172 है। पंजाब भी ऐसे ही राज्यों में शुमार है जहां इस प्रकार के 2431 स्कूल हैं। बिहार जो शून्य प्रवेश वाले स्कूलों में निचले स्थान पर था, किन्तु वहां भी एकमात्र शिक्षक वाले स्कूलों की संख्या 1865 है। राजस्थान, हिमाचल और हरियाणा भी ऐसी श्रेणी वाले राज्यों में शुमार हैं हालांकि इनमें एक शिक्षक वाले राज्यों की संख्या भिन्न-भिन्न है। शिक्षा मंत्रालय की इस रिपोर्ट के अनुसार पहले 21 विद्यार्थियों के लिए देश में एक शिक्षक हुआ करता था, किन्तु आज यह स्तर नीचे होते हुए 31 हो गया है। इसके बावजूद यदि इतनी बड़ी संख्या में एकमात्र शिक्षक वाले स्कूल इस देश में मौजूद हैं, तो फिर यहां शिक्षा का रब ही राखा है। सवाल यह भी है कि शिक्षा ही एक ऐसा ज़रिया है जो इन्सान को सभ्य और ज्ञानवान होने की गारंटी देता है, किन्तु शिक्षा प्रदान करने वाले मंदिरों की ऐसी दशा चिन्ता उपजाने के लिए काफी है। यह भी एक चिन्ताजनक स्थिति है कि जिन राज्यों में प्राइमरी से ही शिक्षा क्षेत्र बदहाल है, उनमें पंजाब की राजधानी क्षेत्र चंडीगढ़ और पश्चिम बंगाल शामिल हैं।
जहां तक पंजाब जैसे समृद्ध राज्य की बात है, यहां भी एकमात्र शिक्षक वाले स्कूलों की संख्या बहुतायत में होने से यह सवाल भी उपजता है कि हज़ारों शिक्षकों, कर्मचारियों की भर्ती के दावे सरकार द्वारा किये जाने के बावजूद ऐसी दुर्दशा क्यों है। हम समझते हैं कि किसी भी लोकतांत्रिक देश में शिक्षा ही वह ज़रिया होता है जो उसके नागरिकों को सभ्य और सुसंस्कृत बनाता है। शिक्षा वैसे भी किसी लोकतांत्रिक देश के नागरिकों का मौलिक अधिकार होता है। सरकारें प्राय: शिक्षकों की भर्ती के बड़े-बड़े दावे किया करती हैं किन्तु क्रियात्मक धरातल पर स्थिति क्या है, यह इस रिपोर्ट ने बता दिया है। नि:संदेह राज्यों की सरकारों और केन्द्र सरकार को इस ओर प्राथमिकता के आधार पर पहल करके न केवल शिक्षकों की कमी को दूर किया जाना चाहिए, अपितु विद्यार्थियों की भर्ती के लिए भी सतत् प्रयास किये जाने चाहिएं। केवल इसी आधार पर देश में शिक्षा के प्रकाश को फैलाया जा सकता है।