सिर्फ गूगल के भरोसे न रहें, रास्ता भटका कर ले रहा जान
इन गूगल मैप्स या नेवीगेशन एप से छोटे और सीधे रास्ते ढूंढ़ने के चलते लोग किसी बंद गली, कीचड़, गड्ढे यहां तक कि नहर या नदी में जा गिरते हैं। ऐसी अपवाद के तौर पर हाल के दिनों में कुछ घटनाएं ही नहीं घटी, बल्कि डरावने अंदाज में पिछले कुछ महीनों के भीतर भी दर्जनों दुर्घटनाएं हो चुकी हैं, जिनमें कई लोगाें को गूगल द्वारा भटकाये गये रास्ते के कारण अपनी जान से भी हाथ धोना पड़ा है। सवाल है आखिर हम इतने असहाय क्यों हो गये हैं कि जिन रास्तों और जगहों से हम सदियों से वाकिफ रहे हैं, अब उन्हीं रास्तों को गूगल के जरिये न सिर्फ खोज रहे हैं, बल्कि उसके बताये गये पर आंख मूंदकर भरोसा कर रह हैं, आखिर इस भयावह समस्या का हल क्या है?
सोशल मीडिया के साथ साथ अब एआई भी तहलका मचाने के तैयार खड़ा है। चैट जीपीटी हमें जानकारी देने को बेताब है, तो हम सहयोगी टूल गूगल के कारण अपनी जान तक गंवा रहे हैं। लेकिन इस बात पर विचार नहीं कर रहे हैं कि हम जिस रास्ते से मंज़िल पर जा रहे हैं, क्या वह हमें सही दिशा दिखा रहा है? मोबाइल, लैपटॉप या कार के डैशबोर्ड पर लगी स्क्रीन पर अपनी डेस्टिनेशन डाली और चल पड़े। परिणाम कभी चलते चलते गूगल हमें नदी में ले जाता है, कभी किसी बंद गली में लाकर छोड़ देता है, तो कभी हम किसी गांव से दूर जंगल में इस कदर भटक जाते हैं कि रास्ता किधर है, कुछ पता नहीं चलता? हद तो यह है कि यही गूगल कभी पुलिस को दूसरे राज्य में ले जाकर उसे जनता से पिटवा देता है।
गूगल जब भटकाता है तब हमें याद आता है कि हम फंस गए हैं और हम मदद के लिए किसी को तलाशते हैं। यह सब कुछ कितना हास्यपद है कि गूगल एप की मदद से मुसीबत में फंसने के बाद, हम किसी दूसरे एप की मदद से निकलने की उम्मीद करते हैं। गूगल से रास्ता पूछना और उस रास्ते को बिना जाने-परखे शब्दश: फालो करना ठीक वैसा ही है जैसे किसी नंबर पर फोन लगाकर सीधे बात करना, यह जाने बिना कि सामने कौन है? जब से देश में फटाफटा उपभोक्ता संस्कृति जन्मी है, विभिन्न कंपनियां रातोंरात अपने ज्यादा से ज्यादा उपभोक्ता बनाने के लिए कहीं पर भी और किसी भी समय, हमारी रोजमर्रा की ज़रूरी चीजें उपलब्ध करा रही हैं। वस्तुएं उपलब्ध कराने वाली इन कंपनियों के डिलिवरी मैन तथा इसी तरह किराए पर टैक्सी सर्विस और दूसरी इंस्टेंट सेवाओं ने अपना समाज में गूगल के ज़रिये अपना शिकंजा कस लिया है। ऐसे में देश का हर नागरिक, यहां तक कि बच्चे भी लोकेशन या गूगल मैप पर निर्भर हो गये हैं। पता पूछने और तथ्यात्मक जानकारी रखकर कार्य अंजाम देने की परम्परा गूगल की भेंट चढ़ चुकी है।
हांलाकि, गूगल का दौर तो कोरोना से पहले ही आ गया था, लेकिन कोरोना ने इसे लोकप्रिय कर दिया। देश-दुनिया में कहीं भी जाना हो या किसी का पता जानना हो, किसी व्यक्ति की लोकशन देखनी हो या फिर आप कहां हैं, यह किसी को बताना हो, तो गूगल के मैप और लोकेशन का सहारा आज हर कोई ले रहा है। शादी-विवाह हो तो कार्ड पर विवाहस्थल की गूगलिया लोकेशन, अंतिम संस्कार के लिए श्मशान में पहुंचना हो तो शोक संदेश के साथ श्मशान की लोकेशन, बाज़ार में किसी दुकान पर जाना हो तो उसकी लोकेशन, गूगलिया मैप के साथ हाज़िर है। इतना कुछ होने के बाद भी हम लोकेशन या गूगल मैप के कारण धोखा खाते हैं और भारी नुकसान उठाते हैं,जो कि कई बार यह हमारी जान पर भी बन आता है। इतना कुछ होने के बाद भी हम समझदार नहीं हो रहे हैं। गूगल से आखिर हम रास्ता क्यों भटक रहे हैं? गूगल जो कि खुद को हमारा एक अच्छा मित्र कहता है, आखिर हमारा नुकसान कैसे करा रहा है? यह समस्या अब साइबर विशेषज्ञों को भी परेशान कर रही है। इसके लिए पहले यह देखना होगा कि गूगल काम कैसे करता है और हमारी मदद कैसे करता है? गूगल पर जब हम कुछ सर्च करते हैं या फिर उससे कहते हैं कि हमें दिल्ली के कनाट प्लेस ले चलो अथवा नैनीताल की सब्ज़ी मंडी में ले चलो, तो हमें जो जानकारी मिलती है, वह पूरी तरह से तकनीक पर आधारित होती है।
जिस जीपीएस के माध्यम से हम यहां पहुंचते हैं, वह नक्शा एल्गोरिद्म पर आधारित होता है। यह पूर्व में सुरक्षित किए गए डेटा के आधार पर हमें बताता है कि यह रास्ता है। वह शॉर्टकट और बेहतर रास्ता तो बताता है, पर इन रास्तों में हुआ कोई नया विकास नहीं बताता। इसे ऐसे समझें कि जिस तरह से चैट जीपीटी या एआई पूर्व में सुरक्षित जानकारी देते हैं, उसी तरह से गूगल मैप भी हमें पूर्व में सुरक्षित नक्शे से रास्ता बताता है जबकि कई बार यह कि जिस रास्ते पर हम जा रहे हैं, उस रास्ते पर कोई दुर्घटना अगर हो गई होती है या कोई दूसरी बाधा मौजूद होती है तो इन समस्याओं को गूगल मैप हमें नहीं दिखाता। हम हैं कि गूगल पर डाली गई अपनी ज़रूरत को ही देखते हैं, फिर उस पर चलते चले जाते हैं। नतीजा होता है—दुर्घटना।
ऐसा नहीं है कि गूगल का जीपीएस सिस्टम हमेशा गलत हो, वह सौ में बीस प्रतिशत छोड़कर हमेशा से सही रास्ते और उस पर क्या है, हमें बताता है। हां,जहां पर जीपीएस सिस्टम या तो कमज़ोर हो या फिर यहां पर डेटा अपडेट नहीं किया गया हो, वहां तथ्यों के गलत होने की आशंका होती है। यह वह जगह होती है, जो गांव का बहुत अंदरुनी हिस्सा हो, पहाड़ का नो नेटवर्क इलाका हो, तालाब-नदी का वह हिस्सा जो गूगल मैप अपडेट नहीं हुआ हो। जहां तक गूगल मैप की गलती की बात है तो यह एक साथ कई सैटेलाइट से जुड़ता है और ऐसे में उसके द्वारा गलत जानकारी देने की संभावना इसलिए बलवती हो जाती है, क्योंकि ज़रूरी नहीं है कि जो जानकारी एक सैटेलाइट दे रहा हो, वही जानकारी दूसरा भी दे रहा हो।
वैसे, जब कोरोना काल में गूगल मैप लोगों के लिए वरदान बन गया था। दवाएं और उनके साइड इफैक्ट, कौन-सा रास्ता कहां निकलेगा, कहां से सामान जल्दी मंगाया जा सकता है, जैसी बातों के लिए ही नहीं बल्कि डॉक्टर से सलाह लेने के लिए भी इसी गूगल को सर माथे पर बिठाया गया था। आखिर अब यह कैसे खलनायक बन रहा है? उन बयानों को इसके संदर्भ में देखा जाना चाहिए बल्कि मापदंड मानना चाहिए जिसमें कहा गया है कि गूगल से पूछकर कोई दवा न ले और चिकित्सक से सलाह लेकर ही उपचार करें। गूगल की गलती से बचने का सिर्फ एक उपाय है कि हम अपना दिमाग गूगल के साथ लगाएं और जो रास्ता या सुझाव वह हमें दे रहा है, उस पर चलने से पहले देख लें कि यह सही है या नहीं।
-इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर