मोदी के मणिपुर दौरे से पहले महत्वपूर्ण त्रिपक्षीय समझौता

मणिपुर में देशज हिंसा को चलते हुए दो वर्ष से अधिक हो गये हैं। हालांकि इस बात से भी इंकार नहीं किया जा सकता कि राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू होने के बाद से हालात काफी हद तक नियंत्रित हुए हैं और सभी गुटों ने समझौते व शांति के संकेत भी दिये हैं। इस पृष्ठभूमि में जानकार सूत्रों का कहना है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इसी माह मणिपुर का दौरा कर सकते हैं। हालांकि उनकी संभावित मणिपुर यात्रा की कोई अधिकारिक तिथि घोषित नहीं की गई है, लेकिन अनुमान यह है कि उनकी जो 13-14 सितम्बर को असम व मिज़ोरम का दौरा निर्धारित है, उसी दौरान वह मणिपुर भी जायेंगे। चूंकि अन्य बातों का संज्ञान लेना होता है, इसलिए अंतिम घोषणा भले ही न हुई हो, लेकिन जानकार सूत्रों का दावा है प्रधानमंत्री मणिपुर अवश्य जायेंगे। 
गौरतलब है कि विपक्ष अक्सर मोदी की आलोचना करता है कि मैतेई व कुकी समुदायों के बीच जब से हिंसक टकराव आरंभ हुआ है, तब से वह एक बार भी मणिपुर नहीं गये हैं, जबकि दुनियाभर का दौरा करते हैं व देश में भी जगह जगह चुनावी सभाओं को संबोधित करते रहते हैं। आगे बढ़ने से पहले मणिपुर की देशज हिंसा को संक्षेप में समझना आवश्यक है। गैर-आदिवासी मैतेई समुदाय को अनुसूचित जनजाति का दर्जा दिलाने के लिए मणिपुर हाईकोर्ट ने राज्य सरकार से कहा था कि वह मैतेई समुदाय की मांग की सिफारिश केंद्र को भेजे। इससे राज्य के आदिवासियों को लगने लगा कि उन्हें जो आरक्षण लाभ मिल रहे हैं, उनमें बहुत कमी आ जायेगी। इसलिए 3 मई, 2023 को आल ट्राइबल स्टूडेंट्स यूनियन मणिपुर (एटीएसयूएम) ने आदिवासी एकता मार्च का आयोजन किया, जिसके बाद राज्य में हिंसा अचानक भड़क उठी, जो अभी तक नहीं रुकी है। इस हिंसा में अब तक 300 से अधिक जानें जा चुकी हैं, हज़ारों घायल हैं, 57,000 से अधिक लोग विस्थापित होकर सुरक्षा बलों के कैम्पों में शरण लिए हुए हैं और हज़ारों घरों व अन्य प्रतिष्ठानों को जलाकर राख कर दिया गया। 
मैतेई समुदाय मुख्यत: इम्फाल घाटी में रहता है, जोकि राज्य की कुल भूमि क्षेत्र का मात्र दसवां हिस्सा है। अधिकतर आदिवासी समुदाय पहाड़ों में रहते हैं। इस तरह यह घाटी बनाम पहाड़ी टकराव हो जाता है। चूंकि हिंसा पर राज्य सरकार नियंत्रण स्थापित करने में पूर्णत: असफल हो रही थी, इसलिए 15 फरवरी, 2025 को मणिपुर में राष्ट्रपति शासन लागू कर दिया गया और अब कुछ हालात सामान्य से दिखायी देने लगे हैं, विशेषकर इसलिए भी कि भाजपा की राज्य सरकार (जिसके कार्यकाल में हिंसा आरंभ हुई) को मैतेई समर्थक के रूप में देखा जा रहा था। प्रधानमंत्री 13 सितम्बर को मिज़ोरम में एक रेलवे प्रोजेक्ट का उद्घाटन करेंगे। इसके बाद अनुमान है कि वह इम्फाल के लिए फ्लाइट लेंगे। इसका संकेत 31 अगस्त, 2025 को मणिपुर के मुख्य सचिव पुनीत कुमार गोयल की अध्यक्षता में हुई बैठक से मिला, जिसके बारे में बताया गया कि ‘सितम्बर 2025 में एक वीवीआईपी की प्रस्तावित यात्रा की तैयारी के लिए बैठक आयोजित की गई थी’। पुलिस को दो जगह सुरक्षा व्यवस्था करने के आदेश दिये गये हैं- इम्फाल के कांगला किले में, जोकि मणिपुर का परम्परागत शक्ति केंद्र है और चुराचांदपुर के पीस मैदान में। इम्फाल मैतेई बहुल मणिपुर घाटी में है और चुराचांदपुर कुकी बहुल ज़िला है, पहाड़ी क्षेत्रों की सीमा पर। 
मणिपुर में प्रधानमंत्री की संभावित यात्रा पर प्रतिक्रिया मिश्रित है। अधिकतर लोग कह रहे हैं कि मोदी ‘बहुत देर’ से मणिपुर की यात्रा कर रहे हैं। कुकी-जो परिषद के प्रवक्ता गिन्ज़ा वुअलज़ोंग को उम्मीद है कि मोदी उनके समुदाय के प्रतिनिधियों व नेताओं से भी मुलाकात करेंगे, ‘अगर वह हमारी मुश्किलों को समझने व हमारे मुद्दों का समाधान करने के लिए आ रहे हैं’। वुअलज़ोंग को उम्मीद है कि मोदी आईडीपी (भीतरी तौर पर विस्थापित लोगों) की मुश्किलों को समझने के लिए राहत कैम्पों में भी जायेंगे। मोदी की यात्रा से मणिपुर की समस्या का कोई समाधान निकलेगा या शांति स्थापित होगी, फिलहाल कुछ भी कहना कठिन है। लेकिन इस बीच दो महत्वपूर्ण समझौते हुए हैं—एक कुकी-जो काउंसिल (केज़ेडसी) से इम्फाल-दीमापुर नेशनल हाईवे-2 खोलने के लिए ताकि गुड्स व लोगों का आना जाना हो सके और दूसरा कुकी मिलिटेंट्स गुटों के प्रतिनिधियों से कि वह मणिपुर की क्षेत्रीय अखंडता को बरकरार रखते हुए अपने ऑपरेशनों के स्थगन का नवीनीकरण करेंगे। 
भारत के गृह मंत्रालय, मणिपुर सरकार, कुकी नेशनल आर्गेनाइजेशन (केएनओ) और यूनाइटेड पीपल्स फ्रंट (यूपीएफ) के प्रतिनिधियों के बीच 4 सितम्बर, 2025 को ऑपरेशन स्थगन नवीनीकरण त्रिपक्षीय समझौता हुआ। हालांकि यह समझौता 2008 से ही लागू था, लेकिन फरवरी 2024 के बाद से इसका नवीनीकरण नहीं हो सका था। अब इसका एक वर्ष के लिए कुछ नई शर्तों के साथ विस्तार किया गया है। केएनओ व यूपीएफ  सात निर्धारत कैम्पों को कम असुरक्षित स्थानों पर शिफ्ट करने के लिए तैयार हो गये हैं, कैम्पों की संख्या में भी कमी लायी जायेगी। सीआरपीएफ  या बीएसएफ के निकटतम कैम्पों के पास हथियारों को रखा जायेगा, कैडर की फिजिकल वेरिफिकेशन होगी ताकि कोई विदेशी घुसपैठ न कर सके और कैडर को मुआवज़ा डीबीटी (डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर) के ज़रिये दिया जायेगा। 
पुराने समझौते का यह संशोधित नवीनीकरण मणिपुर में स्थायी शांति स्थापित करने के प्रयासों में ‘मील का पत्थर’ साबित हो सकता है बशर्ते कि केंद्र व राज्य सरकारें इस या उस पक्ष की तरफ झुकती हुई प्रतीत न हों। भाजपा के पूर्व मुख्यमंत्री एन. बिरेन सिंह व उनके समर्थकों को उम्मीद है कि मोदी की संभावित यात्रा के दौरान राष्ट्रपति शासन हटाने व फिर से भाजपा सरकार गठित करने की घोषणा की जायेगी। अगर ऐसा होता है तो यह राज्य के लिए दुर्भाग्यपूर्ण होगा क्योंकि आम धारणा यह है कि बिरेन सिंह की सरकार मैतेई समुदाय की तरफ झुकी रही व उसी के कारण ही मणिपुर में हिंसा की आग ठंडी न हो सकी और उसे बहुत देर से हटाने के बाद राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू किया गया। दूसरी ओर कुकी काउंसिल को उम्मीद है कि जो त्रिपक्षीय समझौता हुआ है, उससे पहाड़ी क्षेत्रों के लिए भारतीय संविधान के तहत अलग प्रशासनिक व्यवस्था गठित कर दी जायेगी। मैतेई समुदाय पहाड़ी क्षेत्रों के लिए अलग प्रशासनिक व्यवस्था के गठन का विरोध करता है। इससे अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि मणिपुर की समस्या बहुत जटिल है और उसका समाधान आसान नहीं है। 
-इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर 

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