दुनिया भर में भारतीयों पर बढ़ते नस्लवादी हमले

डबलिन उपनगर में 19 जुलाई 2025 को एक 40 वर्षीय भारतीय पुरुष पर बुरी तरह से हमला हुआ। हमलावरों ने इस मारपीट का वीडियो बनाया और उसे सोशल मीडिया पर अपलोड कर दिया। भारतीय मूल के 42 वर्षीय टैक्सी ड्राइवर लखवीर सिंह ने जब 1 अगस्त को डबलिन उपनगर में दो व्यक्तियों को ड्राप किया तो उन्होंने उस पर हमला बोल दिया। भागते हुए संदिग्ध चिल्लाये ‘अपने देश वापस जाओ’। एक छह साल की भारतीय मूल की लड़की पर 4 अगस्त को 8 व 14 वर्ष के बच्चों के समूह ने वाटरफोर्ड शहर में हमला किया। हमलावरों ने बच्ची के चेहरे पर घूंसे बरसाये, उसके बाल खींचे और साइकिल से टक्कर मारकर उसे गिराते हुए उससे कहा, ‘गंदी भारतीय, वापस इंडिया जाओ।’ डबलिन में भारतीय मूल के एक होटल शेफ लक्ष्मण दास 6 अगस्त को जब काम पर जा रहे थे, तो उन पर तीन संदिग्धों ने हमला किया और उनका फोन, क्रेडिट कार्ड्स व इलेक्ट्रिक बाइक लेकर फरार हो गये। 
भारतीय समुदाय ने इनके अलावा भी हाल के दिनों में अन्य हमलों को रिपोर्ट किया है। डबलिन में भारतीय दूतावास ने एडवाइजरी जारी की है, ‘हाल ही में आयरलैंड में भारतीय नागरिकों के विरुद्ध मारपीट की घटनाओं में वृद्धि हुई है... सभी भारतीय नागरिकों को सलाह दी जाती है कि वे अपनी व्यक्तिगत सुरक्षा के लिए उचित सावधानी बरतें और एकांत स्थानों से बचें, विशेषकर असुविधाजनक समय पर।’ आयरलैंड के न्याय मंत्री जिम ओ’कैलाघन का कहना है, ‘अधिकांश हमले युवा व्यक्तियों द्वारा किये गये प्रतीत होते हैं। मैं उम्मीद करता हूं कि इन पर जांच में जल्द प्रगति होगी।’ अधिकारियों का कहना है कि हिंसा को सोशल मीडिया बढ़ावा दे रहा है और अधिकतर युवा किशोरों के समूह भारतीयों को निशाना बना रहे हैं, जबकि जुवेनाइल कानून की वजह से हमलावरों के विरुद्ध कड़ी कार्यवाही करना कठिन हो रहा है। गौरतलब है कि डबलिन में आप्रवासी विरोधी प्रदर्शन भी हो रहे हैं।
लेकिन भारतीयों के खिलाफ नस्लवादी हिंसा व नफरत केवल आयरलैंड में ही नहीं बढ़ रही है। अमरीका, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया, इंग्लैंड आदि सभी जगह यही हाल है। अमरीका में तो जब से डोनाल्ड ट्रम्प दोबारा राष्ट्रपति बने हैं और उन्होंने मागा (मेक अमरीका ग्रेट अगेन) का नारा दिया है व अवैध आप्रवासियों को वापस भेजने का अभियान छेड़ा है, तब से यह समस्या अधिक चिंताजनक हो गई है। एक वीडियो वायरल है, जिसमें एक अमरीकी भारतीय मूल के व्यक्ति को गालियां देते हुए कह रहा है, ‘तुम मेरे देश में क्यों हो? मुझे तुम लोग पसंद नहीं हो। यहां पर तुम जैसे भारतीय बहुत अधिक हैं। तुम लोग सभी श्वेत देशों में बढ़ते जा रहे हो। मैं इससे तंग आ चुका हूं। अमरीकी इस से परेशान हैं। तुम वापस भारत जाओ।’ इसी प्रकार की नस्लवादी भावनाएं भारतीयों के खिलाफ हर जगह बढ़ती जा रही हैं। भारत सरकार की एक जांच के अनुसार ऑस्ट्रेलिया में एक साल में भारतीयों के खिलाफ 152 अपराध हुए, जिनमें से 23 नस्लवादी थे। 
यह सब क्यों हो रहा है? अर्थशास्त्र के विख्यात प्रोफेसर निर्विकार सिंह, जो ‘द अदर वन परसेंट इंडियंस इन अमरीका’ के सह-लेखक भी हैं, का कहना है कि भारत के मुद्दे भारतीय-अमरीकियों के विरुद्ध हेट क्राइम के रूप में सामने आते हैं। उनके अनुसार, ‘एक तरह से इस फेनोमेना से सभी भारतीय नागरिक पीड़ित हैं, सिख, मुस्लिम, हिन्दू या किसी भी अन्य धर्म के। लोकतंत्र हमें अपने मतभेद अहिंसा व समता से हल करने का अवसर देता है, लेकिन हम बहुत अधिक हिंसा देख रहे हैं।’ भारतीय आप्रवासियों को इस वजह से भी नस्लवाद व भेदभाव का सामना करना पड़ता है; क्योंकि वे सफल हैं, शिक्षित हैं व कड़ी मेहनत करने वाले प्रतीत होते हैं। 
अब अगर आयरलैंड की ही मिसाल ली जाये तो संयुक्त राष्ट्र के डाटा के अनुसार 2015 से 2024 तक यहां भारतीयों की संख्या लगभग तीन गुना अधिक हुई है। 2015 में आयरलैंड में 20,363 भारतीय थे, जो 2020 में बढ़कर 42,645 हो गये और 2024 में वे 70,228 थे। भारतीय मूल के लोग हेल्थकेयर व टेक से लेकर फाइनेंस व फार्मा तक में सक्रिय हैं और भारतीय मूल का एक व्यक्ति तो आयरलैंड का प्रधानमंत्री तक रहा है। भारतीयों की दिलचस्पी आयरलैंड में सेल्टिक टाइगर बूम (1987 से 2007) के दौरान हुई, जब वहां बहुत तेज़ी से आर्थिक प्रगति हुई थी। आयरलैंड ने जब 2015 में शिक्षा पूर्ण करने के बाद दो वर्ष का वर्क वीज़ा देना शुरू किया तो भारतीय छात्रों ने उस तरफ का रुख करना शुरू कर दिया और अंदाज़ा यह है कि इस समय भारतीय छात्रों की संख्या 10,000 है, जिनके लिए रोज़गार की अच्छी संभावनाएं हैं; क्योंकि स्थानीय तौर पर स्किल्ड लोगों की कमी है। कम कारपोरेशन टैक्स के कारण बहुराष्ट्रीय कम्पनियों की आयरलैंड में अच्छी संख्या है। एक अनुमान यह है कि इस समय आयरलैंड में लगभग 84,000 भारतीय मूल के लोग हैं, जिनमें से लगभग 34,000 पीआईओ और शेष एनआरआई हैं। 
इस समय भारतीय आयरलैंड में सबसे बड़ा देशज अल्पसंख्यक समूह हैं। इस वजह से उन पर यह आरोप लगने लगे हैं कि वे सभी मकान ले रहे हैं और राज्य लाभों पर ऐश कर रहे हैं। हालांकि आयरलैंड में अति दक्षिणपंथी (फार राइट) अल्पमत में हैं, लेकिन सोशल मीडिया पर अप्रवासी विरोधी नफरत बहुत अधिक है, जो युवा किशोरों को भ्रमित कर रही है। डबलिन में नवम्बर 2023 में जो अप्रवासी विरोधी प्रदर्शन हुए थे, उनमें बसों को फूंका गया और दुकानों को लूटा गया। उस समय लियो वरदकर (जिनके पिता महाराष्ट्र से हैं) प्रधानमंत्री थे। हालांकि सभी पृष्ठभूमियों के अप्रवासियों के साथ मतभेद किया जाता है, उन पर हमले होते हैं, लेकिन हिंसा का एक्सक्लूसिव निशाना जुलाई 2025 से भारतीयों को ही बनाया जा रहा है।
चिल्ड्रन एक्ट 2001 में नाबालिगों की गिरफ्तारी को ‘अंतिम विकल्प’ बताया गया है, जिससे हमलावरों के खिलाफ कड़ी कार्यवाही करना कठिन है। इस बीच भारतीय समुदाय इतना डरा हुआ है कि रात को घर से नहीं निकल रहा और पब्लिक ट्रांसपोर्ट से बच रहा है। जन्माष्टमी अपने परम्परागत स्थान से अलग जगह मनानी पड़ी और 15 अगस्त का ‘इंडिया डे’ जश्न स्थगित करना पड़ा। हालात सामान्य करने के लिए आयरलैंड में सोशल मीडिया के नफरती कंटेंट पर विराम लगाना आवश्यक है, लेकिन यह ज़रूरत तो भारत सहित सभी देशों में है।

-इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर 

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