ट्रम्प के टैरिफ बम को कैसे निष्क्रिय करें

भारत पर 50 प्रतिशत टैरिफ लागू हो गया है। इसमें भारत की कामयाबी इस बात में है कि पूरा विश्व (पाकिस्तान और चीन भी) यह नया भारत है। आत्म सम्मान से भरपूर अपने पर थोपे जाने वाले फैसले न मानने वाला भारत। अपने देश की अवाम के हित चाहने वाला भारत, जो निडर है, अडिग है, अपने पांवों पर खड़ा है। रूस से कच्चा तेल और सैन्य उपकरण खरीदने पर भारत पर लगाया अतिरिक्त 25 प्रतिशत अमरीकी टैरिफ लागू हो गया है। 
अमरीकी गृह विभाग ने ड्राफ्ट नोटिस जारी कर इसकी घोषणा कर दी है। फार्मा, ऊर्जा और इलैक्ट्रॉनिक्स सामान को छोड़ कर अमरीका जाने वाले भारतीय सामान पर अब कुल टैरिफ 50 प्रतिशत होगा। इसी शोर-शराबे के बीच गुजरात के हंसलपुर में मारुति सुज़ुकी की पहली ई-विटारा को हरी झंडी दिखाने के बाद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने स्वदेशी अपनाने पर ज़ोर देते हुए कहा- स्वदेशी हर किसी का जीवन मंत्र होना चाहिए। प्रधानमंत्री ने कहा-स्वदेशी की मेरी परिभाषा बहुत सरल है। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि पैसा किसका निवेश किया गया है। वह चाहे डॉलर हो, पाउंड हो, मुद्रा काली हो या सफेद। महत्त्वपूर्ण बात तो यह है कि उत्पादन में पसीना देशवासियों का  हो, पैसा किसी और का हो सकता है, लेकिन पसीना हमारा है। 
इस सब में भारत का जो नुक्सान होना है, उसके लिए भारत जैसे तैसे झेल जाएगा, लेकिन नुक्सान अमरीका का भी कम नहीं होगा। उसकी वैश्विक चमक को धब्बा लगेगा और वह ‘ग्रेट अमरीका’ नहीं रह पाएगा। हाल ही में निक्की हेली ने अपने एक लेख में रिपब्लिकन खेमे के भीतर भारत-अमरीका रिश्तों को लेकर स्पष्ट आकलन प्रस्तुत किया है। भारत को एक ‘मूल्यवान’ साझेदार बताते हुए उन्होंने बताया कि उसे अपने से दूर करना अमरीका के लिए ‘रणनीतिक हादसा’ होगा। चीन के प्रति अमरीका के नरम रवैये से तुलना करते हुए हेली ने भारत पर लगाये टैरिफ की आलोचना की है। उनका यह लेख केवल इसलिए महत्त्व नहीं रखता कि वे भारतवंशी हैं, बल्कि यह संकेत देता है कि अमरीका के कीर्ति  निर्माता प्रतिष्ठानों में अब भी भारतीय मूल्यों के प्रति एक यथार्थवादी समझ मौजूद है। 
एक दृश्य देखिए-जेलेंस्की सहित यूरोपीय संघ के  बड़े नेता ट्रम्प के सामने बैठे हुए हैं। उस दृश्य में ट्रम्प एक हैडमास्टर जैसे लग रहे हैं बाकी नेता क्लास के बच्चों की तरह लग रहे हैं। अन्य सभी नेता भी अपने-अपने देश के उच्च स्तर पर हैं और देश की पूरी आबादी का प्रतिनिधित्व करते हैं, लेकिन ऐसी भावना उनमें नज़र आती नहीं। ट्रम्प के सामने। क्या वे सताए हुए भद्रजन नहीं लगते? लेकिन पुतिन ट्रम्प के सामने कभी छोटे नहीं पड़े। भारत ने भी वैसा ही आत्म-सम्मान दिखाया है। भारत-अमरीका संबंधों में शंका बाइडन काल में ही पैदा हुई 2022 में अमरीका ने पाकिस्तान के एफ-14 बेड़े के लिए 450 बिलियन डॉलर के रख-रखाव पैकेज को मंजूरी देकर नए सुरक्षा गठजोड़ के संकेत दिये। यूक्रेन युद्ध के दौरान रूस से तेल खरीद को भी उन्होंने विवादित मसला बनाया, बेशक भारत इससे अपनी रणनीतिक पहल देख रहा था। भारत की एस-400 मिसाइलों की खरीद पर प्रतिबंध नहीं लगे। लेकिन फिलहाल भारत के लिए अवसर है कि नई मंडियों की तलाश करे। उत्पादन की गुणवत्ता पर ध्यान दे। ब्राज़ील की तरह कृषि को अपनी ताकत बनाए। हमें सभी मोर्चों पर शत्रुता नहीं बढ़ानी है। चुपचाप आगे बढ़ते जाना है। अमरीका में रह रहे भारतीय भी अपनी भूमिका का निर्वाह कर सकते हैं।

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