जल प्रलय के सन्देश को समझना होगा

भारत के पंजाब राज्य को सबसे उपजाऊ धरती के राज्यों में सर्वोपरि गिना जाता है। इसका मुख्य कारण यही है कि यह राज्य खेती के लिये सबसे ज़रूरी समझे जाने वाले कारक यानी पानी के लिये सबसे धनी राज्य माना जाता है। वर्तमान में सतलुज, ब्यास, रावी आदि इसी पंजाब राज्य में बहती हैं। यही नदियां जो पंजाब को उपजाऊ भूमि बनाने और यहां की संस्कृति का आधार समझी जाती हैं, इन दिनों यही नदियां भारत से लेकर पाकिस्तान तक जल प्रलय का कारण बनी हुई हैं। इन नदियों के उफान पर होने का कारण जम्मू-कश्मीर व हिमाचल प्रदेश जैसे पहाड़ी क्षेत्रों में लगातार होने वाली तेज़ बारिश यहां तक कि अनेक स्थानों पर बादल फटने जैसी घटनाओं को माना जा रहा है। 
दरअसल पिछले कुछ दिनों हिमाचल प्रदेश, जम्मू-कश्मीर और पंजाब के जलागम क्षेत्रों में असामान्य रूप से भारी बारिश हुई। कई ज़िले तो ऐसे भी थे जहां केवल एक ही दिन में पूरे एक महीने की बारिश दर्ज की गई। जैसे केवल अमृतसर और गुरदासपुर में 150-200 मिमी से अधिक वर्षा दर्ज हुई। इससे शहरी जलनिकासी प्रणाली पूरी तरह फेल हो गयी। दुर्भाग्यवश हमारे देश के अधिकांश राज्यों में बरसाती जल निकासी प्रणाली प्राय: फेल ही रहती है। कथित भ्रष्टाचार, सरकार व प्रशासन की लापरवाही व गैर-ज़िम्मेदार जनता द्वारा नाले-नालियों में प्लास्टिक के लिफाले और बोतलें आदि सब कुछ फैंक देने जैसी प्रवृतिए जल निकासी प्रणाली के विफल होने में सबसे अहम भूमिका निभाती है। 
एक ओर तो भारी बारिश व जलभराव उसके बाद भाखड़ा नंगल डैम, पोंग डैम, रणजीत सागर डैम व शाहपुर कंडी डैम से अतिरिक्त पानी का छोड़ा जाना भी पंजाब की बड़े हिस्से की तबाही का कारण बन गया। इन डैमों से पानी छोड़ना भी इसलिये ज़रूरी हो गया था क्योंकि इनमें इनकी क्षमता से अधिक जलभराव हो गया था। उदाहरण के तौर पर भाखड़ा डैम का जल स्तर 1,671 फीट तक पहुंच गया था तो पोंग डैम का जलस्तर भी खतरे के निशान से ऊपर चला गया था। इसी के परिणाम स्वरूप राज्य की सतलुज, ब्यास और रावी नदियां उफान पर आ गईं। भारत से पानी छोड़ने के कारण ही पाकिस्तान के पंजाब प्रान्त में भी बाढ़ आई। इस स्थिति के मद्देनज़र भारत ने पहले ही मानवीय आधार पर पाकिस्तान को तीन चेतावनी जारी कर दी थी। 
भारतीय पंजाब के जो ज़िले इस भीषण जल प्रलय में प्रभावित हुये उनमें गुरदासपुर, पठानकोट, होशियारपुर, कपूरथला, अमृतसर, तरनतारन, फिरोज़पुर व  फाज़िल्का प्रमुख हैं जबकि ज़िला लुधियाना और जालंधर में भी बढ़ का प्रभाव देखने को मिला। दर्जनों पुल टूट गए, सैकड़ों पशु बह गये, अनेक पानी वाहन तेज़ बहाव में समा गये या मलबे में दब गए। व्यापक स्तर पर फसलें बर्बाद हो गईं। दर्जनों जगह से हाईवे व मुख्य मार्ग बंद हो गये।  इस प्रलयकारी हालात से जूझने में कई जगह पंजाब के किसान स्वयं को असहाय महसूस करते दिखाई दिये जो हमेशा पूरी हिम्मत व हौसले के साथ दूसरों की सेवा व सहायता के लिये तत्पर दिखाई देते हैं। एक अनुमान के अनुसार राज्य के एक हज़ार से अधिक गांव डूबे गये। 
अमृतसर के रामदास क्षेत्र में रावी नदी का धुसी बांध टूट गया, जिससे कई गांव डूब गए। इसी तरह गुरदासपुर, कपूरथला, फिरोज़पुर, फाज़िल्का, पठानकोट के कई गांव इस प्रलयकारी बाढ़ से बुरी तरह प्रभावित हुये हैं। गोया, इस बार की बाढ़ ने कृषि-प्रधान पंजाब की अर्थव्यवस्था को बुरी तरह प्रभावित कर  दिया। पंजाब और खासकर पहाड़ी क्षेत्रों में होने वाली भारी बारिश व बादल फटने जैसी अनेक घटनाओं ने मौसम वैज्ञानिकों व विशेषज्ञों को हैरत में डाल दिया है। इन हालात के लिये जहां दुर्लभ परिस्थितियों में पूर्वी, दक्षिणी और पश्चिमी मौसम प्रणालियों के एक साथ आने को ज़िम्मेदार माना जा रहा है, वहीं ग्लेशियर का लगातार पिघलते जाने भी बाढ़ को और अधिक भयावह बना रहा है। माना जा रहा है कि यह बाढ़ 1988 की उस भीषण बाढ़ से भी प्रलयकारी है जिसे हज़ार वर्षों में एक बार आने वाली बाढ़ की संज्ञा दी गयी थी। गोया, हमें जल प्रलय के इस सन्देश को समझना होगा कि इन हालात के लिये ग्लोबल वार्मिंग के परिणामस्वरूप होने वाला जलवायु परिवर्तन ही सबसे अधिक ज़िम्मेदार है और निश्चित रूप से विकास और इसके नाम पर पैदा किये गये ग्लोबल वार्मिंग के कारण यह हालात पूरी तरह मानवजनित हैं। 
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