शंघाई शिखर सम्मेलन में भारत की उपलब्धि
चीन के शहर तियानजिन में शंघाई सहयोग संगठन के हुए शिखर सम्मेलन में भारत को कूटनीतिक रूप से एक बड़ी सफलता मिली है। शिखर सम्मेलन के अंत में जारी किए गए घोषणा-पत्र में स्पष्ट रूप से आतंकवादियों द्वारा पहलगाम में पर्यटकों पर किए गए हमले की निंदा की गई है और यह भी कहा गया है कि आतंकवाद के प्रत्येक रूप की निंदी की जानी चाहिए और आतंकवादियों और आतंकवादियों को शह देने वालों की कानून के अनुसार जवाबदेही भी तय की जानी चाहिए। वैसे घोषणा-पत्र में पाकिस्तान में बलोच विद्रोहियों द्वारा ज़ाफर एक्सप्रैस और खुज़दार में किए गए हमले की भी निंदी की गई है और यह भी कहा गया है कि देशों द्वारा आतंकवाद संबंधी दोहरे मापदंड स्वीकार्य नहीं हैं।
यहां यह भी वर्णनीय है कि कुछ मास पहले चीन के एक अन्य शहर किंगदाओ में शंघाई सहयोग संगठन के रक्षा मंत्रियों की हुई बैठक में आतंकवाद और विशेष रूप से पहलगाम के घटनाक्रम की आलोचना करने संबंधी सदस्य देशों में आम सहमति नहीं बन सकी थी, और भारत के रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने पहलगाम के घटनाक्रम की आलोचना का संयुक्त बयान में ज़िक्र न होने के कारण उस पर हस्ताक्षर करने से भी इन्कार कर दिया था। इस तरह कहा जा सकता है कि पिछले कुछ महीनों में भारत की ओर से सीमा पार से आतंकवाद के विरुद्ध स्पष्ट और दृढ़ स्टैंड लेने के कारण शंघाई सहयोग संगठन के सभी सदस्य देशों को भारत के रुख को स्वीकार करना पड़ा है। इस शिखर सम्मेलन में भारत के प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने स्पष्ट रूप में आतंकवाद संबंधी भारत के दृष्टिकोण को पेश करते हुए यह कहा है कि आतंकवाद को किसी भी रूप में स्वीकार नहीं किया जाना चाहिए और आतंकवाद का संरक्षण करने वाली ताकतों का दृढ़ता से विरोध किया जाना चाहिए। भारत को मिली उपरोक्त कूटनीतिक सफलता के अतिरिक्त शंघाई सहयोग संगठन के सदस्य देशों का यह शिखर सम्मेलन और कई पक्षों से भी महत्त्वपूर्ण रहा है। इस शिखर सम्मेलन की ओर से जारी किए गए घोषणा-पत्र में अप्रत्यक्ष ढंग से अमरीका द्वारा अन्य देशों के विरुद्ध टैरिफ को एक हथियार के रूप में इस्तेमाल करने का भी संज्ञान लिया गया है। विश्व व्यापार विश्व संबंधी अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर एक संतुलित और तर्कशील दृष्टिकोण अपनाते हुए सभी भागीदार देशों के हितों को ध्यान में रखने की बात पर बल दिया गया है। यह बात भी कही गई है कि अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर सहयोग और व्यापार के लिए एक संतुलित वैश्विक व्यवस्था बनाई जानी चाहिए। शंघाई सहयोग संगठन के सदस्यों द्वारा अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर अमरीका और पश्चिमी देशों के दबदबे को कम करने के लिए एक नया बैंक बनाने संबंधी भी चर्चा की गई। रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने शंघाई सहयोग संगठन के सदस्य देशों के लिए साझी करंसी बनाने की ज़रूरत पर भी पुन: ज़ोर दिया।
यहां यह भी वर्णनीय है कि शंघाई सहयोग संगठन के सदस्य देशों का यह शिखर सम्मेलन उस समय हुआ है जब अमरीका द्वारा भारत-अमरीका व्यापार समझौते संबंधी कोई आम सहमति न बनने और भारत द्वारा रूस से तेल खरीदने की प्रतिक्रिया-स्वरूप, भारत की ओर से अमरीका को भेजी जाने वाली वस्तुओं पर 50 प्रतिशत टैरिफ लगा दिया गया है। इस कारण भारत एवं अमरीका के बीच संबंधों में कटुता आ चुकी है। इसी कारण ही प्रधानमंत्री की शंघाई सहयोग शिखर सम्मेलन में भागीदारी को अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर विशेष दिलचस्पी के साथ देखा जा रहा है।
समूचे रूप से यह कहा जा सकता है कि शंघाई शिखर सम्मेलन में कई पहलुओं पर भारत को कूटनीतिक रूप से अच्छी सफलता मिली है, परन्तु अमरीका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प की मनमानी नीतियों के कारण भारतीय विदेशी नीति के लिए बहुत-सी चुनौतियां भी पैदा हो गई हैं और आगामी समय में ही यह देखा जा सकेगा कि भारत इन चुनौतियों का किस तरह सामना करता है तथा रूस और चीन के साथ-साथ अमरीका सहित पश्चिमी देशों से अपने रिश्तों को किस सीमा तक संतुलित बनाकर रखने में सफल होता है।