बिहार वोटर अधिकार यात्रा के बाद राहुल की लोकप्रियता बढ़ी
राहुल गांधी के नेतृत्व में चली बिहार की वोटर अधिकार यात्रा ने देश की राजनीति में ‘गेमचेंजर’ का काम किया है। किस तरह, यह मैं आंकड़ों से साबित कर सकता हूँ। राहुल गांधी मोदी के एक ऐसे ‘चैलेंजर’ की तरह उभर आये हैं जिनकी लोकप्रियता का ग्राफ तेज़ी से ऊपर गया है जबकि मोदी की लोकप्रियता या तो घटी है या अपनी जगह थमी हुई है। आंकडे यह कहानी इतनी स्पष्टता से बिना किसी झोल के बताते हैं, राजनीति की कम समझ रखने वाला भी इसे समझ सकता है। इस यात्रा के समाप्न से एक दिन पहले राहुल गांधी ने समाजवादी पार्टी के नेता अखिलेश यादव के साथ कंधे से कंधे मिला कर जनता को अपना संदेश दिया। अखिलेश ने अपने चिरपरिचित प्रभावी अंदाज़ में कहा कि हमने भाजपा को अवध (उत्तर प्रदेश) में हराया, अब आप उसे मगध (बिहार) में हराइए। बात सही है, यानी विपक्ष को बिहार का चुनाव जीतना ज़रूरी है। यह एक अहम बात थी क्योंकि बिहार और देश की राजनीति मिलीजुली है। दोनों एक-दूसरे का विस्तार हैं। विपक्ष बिहार तभी जीतेगा, जब सारे देश में विपक्ष का ग्राफ ऊपर की तरफ जा रहा होगा। इसी तरह विपक्ष दिल्ली तब जीतेगा जब पूरे बिहार में विपक्ष का झंडा बुलंद हो रहा होगा।
अभी हाल ही में ‘इंडिया टुडे’ और ‘आज तक’ चैनलों पर देश का मूड बताने वाला एक ‘सी-वोटर’ का सर्वे आया। सी-वोटर ने प्रधानमंत्री के रूप में मोदी के प्रदर्शन पर जब अपने सैम्पल के सदस्यों से सवाल पूछा तो पता चला कि 2023 की जनवरी में कोई 72 फीसदी लोग उनकी सरकार के प्रदर्शन से खुश थे, 2024 में यह प्रतिशत 9 प्रतिशत गिर कर 63 पर आ गया और 2025 में इस समय 58 प्रतिशत पर है। यानी पिछले दो वर्ष में मोदी की स्वीकार्यता में करीब 14 फीसदी की गिरावट आई है। जब इसी तरह के सवाल को कुछ घुमा कर पूछा गया कि कितने लोग उन्हें प्रधानमंत्री के रूप में देखना चाहते हैं तो पता चला कि फरवरी, 2024 में 49 फीसदी लोग उन्हें प्रधानमंत्री के रूप में देखना चाहते थे। फिर उन्होंने हरियाणा और महाराष्ट्र के चुनाव जीत लिए जबकि ये दोनों चुनाव कांग्रेस को जीतने चाहिए थे। मोदी की रेटिंग फरवरी में 52 प्रतिशत पर पहुंची। जो अगस्त 2025 तक वहीं खड़ी है। आंकड़ों के अनुसार फरवरी, 2025 में मोदी की सरकार का प्रदर्शन 62.1 प्रतिशत पर था, जो अगस्त में घट कर 52.4 प्रतिशत पर आ गया। यानी 5-6 महीने में 10 फीसदी की भारी गिरावट मोदी की लोकप्रियता में है।
इसके मुकाबले राहुल की रेटिंग का क्या हाल है। पहली बात तो यह है कि इन आंकडों के अनुसार विपक्ष के ‘इंडिया’ गठबंधन में राहुल के अलावा कोई और चेहरा दिखाई ही नहीं दे रहा है। पहले ममता बनर्जी, अखिलेश यादव, अरविंद केजरीवाल और प्रियंका गांधी की चर्चा होती थी कि वे भी विपक्ष का प्रमुख नेता बनने के उम्मीदवार है। यह बहस अब पूरी तरह से खत्म हो गई है। ममता की रेटिंग केवल 8 फीसदी है, अखिलेश की 7, अरविंद की 6 और प्रियंका का 4 फीसदी है। इसके दो मतलब हैं—क्षेत्रीय शक्तियां राहुल को चुनौती देने की स्थिति में नहीं रह गई हैं और कांग्रेस के भीतर से राहुल बनाम प्रियंका का नैरेटिव चलाने वालों को गोट पूरी तरह से पिट चुकी है। राहुल ही विपक्ष की एकमात्र आस हैं। उनके पक्ष में 38 फीसदी के आंकडे जा रहे हैं। वे इस आस की कसौटी पर किस तरह से खरे उतर रहे हैं, आंकडे यह भी बताते हैं। विपक्ष के नेता के तौर पर उनके काम को अच्छा और बहुत अच्छा बताने वालों का आंकड़े पचास फीसदी पहुंच चुका है। यानी राहुल के काम की सराहना करने वाले लोग भाजपा को मिले 37 फीसदी वोटों से तेरह फीसदी ज़्यादा हैं। राष्ट्रीय नेता के तौर पर राहुल की स्वीकार्यता की रेटिंग फरवरी, 2024 में केवल 13.8 फीसदी थी जो अब उछल कर 25 फीसदी पर पहुंच गई है यानी मोदी 52 फीसदी पर थे औपर 52 पर ही हैं जबकि राहुल की स्वीकार्यता बढ़ गई है।
अब हमें देखना चाहिए कि यात्रा शुरू होने के बाद यानी 14 दिन के दौरान कांग्रेस, भाजपा, राहुल और मोदी की लोकप्रियता और जनता से जुड़ाव की स्थिति में क्या परिवर्तन हुआ है। आइए, इस पर सिलसिलेवार निगाह डालते हैं। ये आंकड़े हमने सोशल मीडिया के हाल-हवाल का पता बताने वाली वेबसाइट सोशल ब्लेड से लिए हैं। यह एक प्रामाणिक स्रोत है। सभी सोशल मीडिया के बारे में पता लगाने के लिए इसी वेबसाइट का इस्तेमाल करते हैं। यू-ट्यूब, इंस्टाग्राम, फेसबुक पर वही जीतता है, वही आगे रहता है जिसके पास बड़ा सब्सक्राइबर बेस होता है। इस मामले में भाजपा और नरेंद्र मोदी कांग्रेस और राहुल के मुकाबले पहले से ही बहुत आगे थे, लेकिन यात्रा ने यह खेल बदल कर राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) और मोदी-भाजपा को भौंचक्का कर दिया। पहले इंस्टाग्राम को देख लेते हैं। इस लोकप्रिय प्लेटफार्म पर पिछले 14 दिनों में भाजपा को 52 हज़ार लोगों ने लाइक किया। और कांग्रेस को कितनों ने लाइक किया जानते हैं। 7 लाख 95 हज़ार लोगों ने। फेसबुक पर भाजपा के पेज पर कोई पौने दो करोड़ लाइक थे, और कांग्रेस के पेज पर कुल इक्यासी लाख से कुछ ज़्यादा। लेकिन, चौदह दिनों में भाजपा को इस पेज पर कुल तीस हज़ार लोगों ने लाइक किया, जबकि कांग्रेस को तीन लाख 18 हज़ार लोगों ने अपना लाइक भेजा। यू-ट्यूब पर क्या हुआ, यह भी देखने की बात है। दोस्तो, इन चौदह दिनों में यू-ट्यूब पर भाजपा को मिले कुल दर्शकों की संख्या 62 लाख थी। लेकिन, सोशल ब्लेड वेब साइट के मुताबिक कांग्रेस को मिले दर्शकों की संख्या 30 करोड़ 60 लाख निकली। क्या इस अंतर को देख कर सिर नहीं घूम जाता। कहा बासठ लाख और कहां तीस करोड़ साठ लाख दर्शक। इसका सीधा मतलब है कि इन चौदह दिनों में यू-ट्यूब पर ज़्यादातर कांग्रेस ही देश की जनता के साथ जुड़ी हुई थी, भाजपा तो आसपास भी नहीं थी। लोगों में भाजपा क्या कर रही है, क्या नहीं कर रही है, यह जानने की इच्छी ही नहीं दिख रही थी। वोटर अधिकार यात्रा से पहले यू-ट्यूब पर कांग्रेस और भाजपा के सब्सक्राइबर तकरीबन बराबर-बराबर थे, लेकिन इन चौदह दिनों में यह बराबरी भी खत्म हो गई। भाजपा को नये सब्सक्राइबर कुल दस हज़ार मिले और कांग्रेस को मिलने वाले सब्सक्राइबरों की संख्या में राकेट की तरह दो लाख सत्तर लाख सब्सक्राइबर और जुड़ गए। कहां दस हज़ार और कहां पौने तीन लाख।
अब राहुल और मोदी के बीच तुलना के आंकडे आपके सामने रखूंगा। वोटर अधिकार यात्रा से पहले मोदी इस मामले में राहुल से काफी आगे थे। मोदी को निजी तौर पर फेसबुक पर पांच करोड़ से ज़्यादा लाइक मिले हुए थे और राहुल के पास केवल 83 लाख से कुछ ज़्यादा लाइक थे। लेकिन, पिछले 14 दिन में प्रधानमंत्री को लाइक करने वालों में केवल 63 हज़ार का इजाफा हुआ और राहुल गांधी को तीन लाख 78 हज़ार नये लोगों ने लाइक किया। इसी तरह इंस्टाग्राम पर भी राहुल गांधी ने पांच लाख 41 हज़ार फालोअर्स प्राप्त किये और मोदी इस दौरान केवल एक लाख 64 हज़ार फालोअर्स ही प्राप्त कर पाये। उल्लेखनीय है कि यू-ट्यूब पर एक चैनल मोदी जी का है, दूसरा राहुल का। बीन तीन दिनों में जिनमें यात्रा के चौदह दिन भी शामिल हैं, मोदी जी के खाते में साढ़े सात करोड़ नये सब्सक्राइबर आए, लेकिन राहुल ने बाज़ी मारते हुए 12 करोड़ बीस लाख सब्सक्राइबर प्राप्त किये। अगर वोटर अधिकार यात्रा के बाद या उसके दौरान ‘मूड ऑफ द नेशन’ सर्वेक्षण किया गया होता तो उसके आंकड़े कुछ और ही निकलते।
मौजूदा राजनीतिक हालात एक और बात कहते हैं कि राहुल गांधी जब मोदी को चुनाव में हरा कर प्रधानमंत्री कुर्सी पर बैठेंगे तो कहने वाले यह कहने से नहीं चूकेंगे कि इस बंदे ने पैदल चल-चल कर उस मोदी को हरा दिया जो रेंज रोवर और जेट में चलता था। इस बंदे ने जनता के बीच रह कर उस मोदी को हरा दिया जो सुरक्षा के बीच और जनता से अलग रहता था। जब राहुल कांग्रेस के अध्यक्ष थे और उनके नेतृत्व में पार्टी ने तीन विधानसभाएं जीत ली थीं और गुजरात में भाजपा को हार के कगार पर पहुंचा दिया था, तो राहुल की रेटिंग में ज़बरदस्त उछाल आया था और मोदी की रेटिंग काफी नीचे गिर गई थी। आज की राजनीतिक परिस्थिति फिर उसी क्षण का इंतज़ार कर रही है। बस एक विधानसभा चुनाव जीतने भर की बात है। मोदी और भाजपा की परतें उधड़ने का सिलसिला शुरू हो जाएगा।
-लेखक अम्बेडकर विश्वविद्यालय, दिल्ली में प्ऱोफेसर और भारतीय भाषाओं के अभिलेखागारीय अनुसंधान कार्यक्रम के निदेशक हैं।