नकली दवाइयों का काला कारोबार

अगर आप डॉक्टर की बताई मात्रा और सही समय पर दवाइयां ले रहे हैं और आपकी तबीयत में सुधार नहीं हो रहा है तो फिर आप जो दवा ले रहे हैं वह नकली हो सकती है। एक रिपोर्ट में दावा किया गया है कि भारत में हर चौथी दवा नकली है। बुखार, शुगर, ब्लड प्रेशर, पेन किलर से लेकर कैंसर तक की घटिया या नकली दवाएं मार्केट में हैं। कई नामी देसी-विदेशी कंपनियों के नाम की ये दवाइयां बिक रही हैं।
हाल ही में उत्तर प्रदेश की ताज नगरी आगरा में नकली दवाओं के बड़े सिंडिकेट का पर्दाफाश हुआ है। जांच में सामने आया है कि पुडुचेरी-चेन्नई में नकली दवाएं बनाकर आगरा में भंडारण कर चार राज्यों में खपाया जा रहा था। औषधि विभाग की टीम ने ऐसी आठ फर्मों की करीब 71 करोड़ की दवाएं सीज़ की हैं और तीन दवा कारोबारियों को गिरफ्तार किया है। सिंडिकेट में 40 दवा विक्रेताओं के शामिल होने के सुराग मिले हैं। दवाओं का काला कारोबार करने के लिए 15 डमी फर्म भी चिन्हित की हैं। इनके नाम पर पर ये कई राज्यों में कारोबार कर रहे थे। दवाओं को मंगवाने और भेजने में ये रेलवे सेवा का उपयोग कर रहे थे। पिछले साल नवम्बर में आगरा के शास्त्रीपुरम इलाके में पशुओं की नकली दवाएं बनाने की फैक्ट्री पकड़ी गई थी।
नकली दवाओं का कारोबार का नेटवर्क पूरे देश में फैला है। इंसानों ही नहीं जानवरों की दवाईयां भी नकली बनाई जा रही हैं। इस काले धंधे के तार ऊपर से नीचे तक जुड़े हुए हैं। देश के सबसे बड़े थोक दवा व्यापारिक केंद्रों में शुमार पैलेस पर पिछले तीन वर्षों में दिल्ली औषधि नियंत्रण विभाग और दिल्ली पुलिस ने छापेमारी कर 14 करोड़ से अधिक की नकली दवाएं पकड़ी हैं। खास बात यह है कि इनमें से ज्यादातर नकली दवाएं कैंसर, हृदय, किडनी, डायबिटीज और नसों के रोगों से संबंधित थी, जिन्हें नामी दवा कंपनियों के ब्रांड नाम से पैक कर बेचा जा रहा था। नकली दवाओं की पैकेजिंग, बारकोड-क्यूआर कोड मूल दवाओं जैसे होने से इनके खरीदार झांसे में आ जाते हैं, जिससे मरीज़ों की जान खतरे में पड़ जाती है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) का दावा है कि दुनिया में नकली दवाओं का कारोबार 200 बिलियन डॉलर (लगभग16,60,000 करोड़ रुपये) का है। नकली दवाएं 67 फीसदी जीवन के लिए खतरा होती हैं। बची हुई दवाएं खतरनाक भले ही ना हों, लेकिन उनमें बीमारी ठीक करने वाला साल्ट नहीं होता है, जिस वजह से मरीज़ की तबीयत ठीक नहीं होती है। आखिरकार मज़र् बिगड़ता चला जाता है, जिससे वह मौत के मुंह तक चला जाता है। नकली या घटिया दवाओं के आयात-निर्यात का भारत दुनिया का चौथा सबसे बड़ा बाज़ार है। एसोचैम की एक स्टडी के मुताबिक, भारत में 25 फीसदी दवाएं नकली या घटिया हैं। भारतीय मार्केट में इनका कारोबार 352 करोड़ रुपये का है।
विशेषज्ञों के अनुसार नामी ब्रांडेड कंपनियों के नाम से ही नकली या घटिया दवाइयां बनती हैं, क्योंकि इसके जरिए जालसाज मोटा मुनाफा कमाते हैं। दूसरी तरफ जेनेरिक दवाइयों के नकली होने के मामले अभी तक सामने नहीं आए हैं, क्योंकि इन्हें नकली बनाने पर कोई ज्यादा फायदा नहीं होता। जेनेरिक दवाइयां सस्ती होती हैं, जो उसी तरह का फायदा करती हैं, जिस तरह का लाभ ब्रांडेड दवाइयों से मिलता है। सरकार जेनेरिक दवाइयों को बढ़ावा दे रही है, जो काफी सस्ती होती हैं। इन्हें मेडिकल स्टोर और जन औषधि केंद्र से खरीदा जा सकता है।
कुछ ऐसी दवाएं हैं, जिन्हें ज्यादा मात्रा में लेने पर नशा होने लगता है। शराब और ड्रग्स से इन दवाओं का नशा काफी सस्ता होने से नशेड़ी इसका इस्तेमाल करते हैं। इस वजह से कफ सिरप, पेन किलर्स, डिप्रेशन पिल्स और मनोरोगियों को दिए जाने वाले इंजेक्शन की खपत बढ़ रही है। इसका फायदा दवा बनाने वाली कंपनियां भी उठा रही हैं, जो एक लाइसेंस पर कई फैक्ट्रियां चलाकर इन्हें धड़ल्ले से बना रही हैं। 
डिप्रेशन के इलाज के लिए दी जाने वाली गोली का आजकल रेव पार्टियों में काफी इस्तेमाल हो रहा है। नकली दवाओं की बिक्री बेहद गंभीर मामला है, लेकिन अगर लोग जागरूक नहीं हैं तो ये आसानी से पकड़ में नहीं आ पातीं। दूसरी सबसे बड़ी वजह है कमज़ोर निगरानी सिस्टम। कायदे से ड्रग कंट्रोल डिपार्टमेंट की ये जिम्मेदारी है कि वह नकली दवाओं की खरीद-फरोख्त करने वालों को पकड़ें। अगर नियमित तौर पर यह विभाग जांच करे तो नकली दवाएं बेचने वालों को नकेल डाली जा सकती है। नकली दवाएं मरीज़ों के लिए जानलेवा साबित होती हैं। ऐसे में ज़रूरी है कड़ी निगरानी की जाए।

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