गणेश विसर्जन : आस्था, संस्कृति और पर्यावरण का पर्व
आज गणेश विसर्जन पर विशेष
भारत त्योहारों की भूमि है। यहां प्रत्येक पर्व न केवल धार्मिक आस्था से जुड़ा होता है, बल्कि सामाजिक सद्भाव और सांस्कृतिक एकता का भी प्रतीक होता है। इन्हीं पर्वों में गणेश चतुर्थी और गणेश विसर्जन का विशेष स्थान है। गणपति बप्पा की प्रतिमाओं की स्थापना और फिर विसर्जन केवल पूजा-अर्चना की प्रक्रिया नहीं, बल्कि यह जीवन-दर्शन का भी प्रतीक है ‘जो आया है, उसे एक दिन लौटना ही होगा।’
महाराष्ट्र के प्रमुख त्योहार गणेश चतुर्थी का विस्तार होते-होते देश, विदेश तक पहुंच गया है और इसमें पंजाब भी शामिल है। यह उत्सव भाद्रपद मास की शुक्ल चतुर्थी से प्रारंभ होकर अनंत चतुर्दशी तक चलता है। दस दिनों तक भक्तजन गणपति की प्रतिमा को अपने घरों और पंडालों में स्थापित कर भक्ति-भाव से पूजा करते हैं।
अनंत चतुर्दशी के दिन गणपति को विदा करते समय जल में विसर्जन किया जाता है। इसे भगवान गणेश को उनके लोक में वापस भेजने की प्रक्रिया माना जाता है। भक्तजन प्रार्थना करते हैं कि अगले वर्ष पुन: ‘गणपति बप्पा मोरया’ के जयकारों के साथ वे उनके घर पधारें।
गणेश विसर्जन केवल पूजा-पाठ तक सीमित नहीं है बल्कि यह उत्सव समाज को एक सूत्र में बांधने वाला पर्व है। पंडालों में विभिन्न वर्गों के लोग मिलकर आयोजन करते हैं। सांस्कृतिक कार्यक्रम, भजन-कीर्तन और नाटक समाज में एकता और सहयोग की भावना को प्रबल करते हैं। लोककला, मूर्तिकला और संगीत को भी यह पर्व नया आयाम देता है। गणेश विसर्जन हमें यह सिखाता है कि जीवन क्षणभंगुर है। प्रतिमा की तरह हर मनुष्य को भी इस संसार में आकर अंतत: विदा होना होता है। इसलिए हमें वर्तमान का सदुपयोग करते हुए मानवताए भक्ति और सद्गुणों को अपनाना चाहिए।
पिछले कुछ वर्षों में गणेश विसर्जन से जुड़े पर्यावरणीय पहलुओं पर भी गंभीर चर्चा हो रही है। प्लास्टर ऑफ पेरिस (पीओपी) से बनी प्रतिमाएं और रासायनिक रंग नदियों और समुद्रों को प्रदूषित करते हैं। इसीलिए अब मिट्टी की प्रतिमाएं प्राकृतिक रंग और कृत्रिम विसर्जन कुंडों का प्रचलन बढ़ाया जा रहा है। यह न केवल पर्यावरण की रक्षा करता है, बल्कि भगवान गणेश की उस शिक्षा को भी सार्थक बनाता है जिसमें उन्होंने हमें प्रकृति के प्रति संवेदनशील होने का संदेश दिया है।
गणेश विसर्जन पर्व भक्ति, आस्था और उत्सव का संगम है। यह हमें त्याग, पुनर्निर्माण और जीवन की अस्थायीता का बोध कराता है। साथ ही यह हमारे समाज को एकता, सहयोग और पर्यावरण संरक्षण की दिशा में आगे बढ़ने की प्रेरणा भी देता है। गणपति बप्पा मोरया, मंगल मूर्ति मोरया!
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