संकट ग्रस्त नेपाल
भारत के पड़ोसी देश नेपाल में एकाएक जो राजनीतिक भूकम्प आया है उसने बेहद आश्चर्यचकित कर दिया है। वहां कुछ दिन पहले बात सोशल मीडिया प्लेटफार्मों पर सरकार द्वारा प्रतिबन्ध लगाए जाने से शुरू हुई थी। इसके विरोध में भारी संख्या में युवक राजधानी काठमांडू की सड़कों पर उतर आए। उन्होंने राजनीतिक नेताओं के घरों पर हमले शुरू कर दिए। ताज़ा जानकारी के अनुसार आन्दोलनकारियों द्वारा एक पूर्व प्रधानमंत्री झालानाथ खानाल की पत्नी राजिल-लक्ष्मी चित्रकार को आग लगाकर जला दिया गया। एक और पूर्व प्रधानमंत्री शेर बहादुर दिओबा के घर में दाखिल होकर आन्दोलनकारियों ने उनकी और उनकी पत्नी से मारपीट की। संसद भवन और कई अन्य इमारतों को आग लगा दी गई। सरकार को सेना बुलानी पड़ी। पुलिस और सेना की गोली से लगभग 22 व्यक्ति मारे गए और 400 से भी अधिक घायल हो गए। इन घटनाओं ने लगी आग को लपटों में बदल दिया, जिस कारण वहां राजनीति अस्थिरता चरम सीमा पर पहुंच गई है। आखिर प्रधानमंत्री के.पी. शर्मा ओली को त्याग-पत्र देने के लिए विवश होना पड़ा और वह देश छोड़ कर किसी सुरक्षित स्थान पर चले गए हैं। ओली ने भी त्याग-पत्र देते हुए सेना को स्थिति सम्भालने के लिए कहा था।
नेपाल अनुपातन एक छोटा-सा देश है। इसकी जनसंख्या लगभग 3 करोड़ है, परन्तु आश्चर्यजनक बात यह है कि गरीब कहे जाते इस देश के 90 प्रतिशत लोग इंटरनेट का इस्तेमाल करते हैं। इसी साधन द्वारा विरोधियों की ओर से सरकारी भ्रष्टाचार को उजागर किया जाता रहा है और यह भी कि वहां रिश्वत का बोलबाला है। लगभग 17 वर्ष पहले वर्ष 2008 में नेपालियों ने हिम्मत दिखाते हुए सैकड़ों वर्ष से चली आ रही राजाशाही का अंत कर दिया था। इसमें वामपंथी पार्टियों का बड़ा योगदान था। के.पी. शर्मा ओली भी लड़े गए इस संघर्ष में शामिल थे। उनके साथ-साथ नेपाल में मार्क्सी नेता पुष्प कमल दहल (प्रचंड) का भी उभार हुआ था। लगभग 10 वर्ष के लम्बे संघर्ष के बाद राजाशाही का अंत हो गया था। उसके बाद चाहे वामपंथी पार्टियों का प्रभाव बढ़ गया था परन्तु वहां की राजाशाही के समय से ही नेपाली कांग्रेस ने अपनी पूरी पैठ बनाए रखी थी। इस पूरी कशमकश में नया संविधान बनाने के लिए लम्बा समय लगा था। मार्क्सी नेता पुष्प कमल दहल भी प्रधानमंत्री बने। के.सी. शर्मा ओली (जो कि हमेशा से ही चीन पक्षीय रहे थे और अब भी वह चीन का ही दम भरते रहे हैं) भी प्रधानमंत्री बनते रहे, परन्तु वहां समय-समय पर होते रहे चुनावों में कोई भी पार्टी पूर्ण बहुमत लेकर सरकार बनाने में असमर्थ रही। इसीलिए अब तक भी वहां मिलीजुली सरकार ही चलती रही है। नि:संदेह ओली इसके प्रधानमंत्री रहे हैं परन्तु इसके बावजूद बहुसंख्या में सदस्य नेपाल कांग्रेस के ही रहे हैं, परन्तु इस समय में ही ओली पर तानाशाही ढंग से सरकार चलाने का आरोप भी लगता रहा। पिछले कुछ समय में जनरेशन ज़ैड के बैनर तले हामी नेपाल नामक एक संगठन सामने आया जिसने देश में फैली ़गरीबी और भ्रष्टाचार को अपना मुख्य लक्ष्य बनाकर लोगों को अपने साथ जोड़ने का यत्न किया। लम्बी अवधि से बन रहे संकटमय हालात के दृष्टिगत इस संगठन को भारी समर्थन मिला, परन्तु अब इस संगठन का आन्दोलन हिंसक रूप धारण कर गया है।
आज हुई इस बड़ी उथल-पुथल के बाद नेपाल में अनिश्चितता बनी दिखाई देती है। सेना की ओर से कमान सम्भाले जाने की आशंका है परन्तु इसके साथ ही जनरेशन ज़ैड काठमांडू के मेयर बलेन शाह जो कलाकार और इंजीनियर भी हैं और लोकप्रिय नेता के रूप में उभरे हैं, को यह नया संगठन अंतरिम प्रधानमंत्री बनाने की मांग कर रहा है। ऐसे अनिश्चित और गड़बड़ वाले हालात में नेपाल के निकट भविष्य के हालात किस तरह के होंगे यह कहना मौजूदा समय में कठिन है परन्तु भारत के लिए नज़दीकी पड़ोसी होने के कारण ये हालात चिन्ताजनक ज़रूर हैं। पिछले कुछ वर्षों से इसके नज़दीकी पड़ोसी ऐसे हालात में से ही गुज़रते दिखाई दे रहे हैं, जिनमें पाकिस्तान के अतिरिक्त बांग्लादेश, म्यांमार और श्रीलंका भी शामिल हैं। भारत को इस कारण भी अधिक सचेत रहने की ज़रूरत होगी, क्योंकि उसी की भांति चीन भी नेपाल का पड़ोसी है और आज शक्तिशाली बन चुके चीन के दशकों से नेपाल के प्रति इरादे क्या हैं, उन्हें भी दुनिया जानती है। नि:संदेह इस समय नेपाल एक बड़े संकट में फंसा दिखाई दे रहा है।
—बरजिन्दर सिंह हमदर्द