दबाव से ऊपर उठ कर महाशक्तियों से संबंध बना रहा भारत

आपदा को अवसर में बदलना ही जीवन की चुनौती है। परिवार, समाज और देश के सामने संकट जैसी स्थिति खड़ी हो जाना एक सामान्य बात है। जो यह सोचता है कि बड़ी बड़ी मुसीबतें तो आयेंगी ही, वही उन पर विजयी होता है। जो इनका सामना होने पर यह मानने लगता है कि अब कुछ नहीं हो सकता और इसे अंतिम मानकर कुछ भी प्रयास करना छोड़ दे तो वह हारता ही नहीं, मृत के समान बन जाता है। 
भारत का एक नया अध्याय : 2025 का अंतिम पड़ाव एक महत्वपूर्ण मोड़ पर समाप्त हो रहा है। जहां एक ओर राष्ट्रपति ट्रम्प ने भारत की शक्ति परखने के लिए वर्ष की शुरुआत में 50 प्रतिशत टैरिफ  लगाकर आर्थिक मोर्चे पर हमारे सामर्थ्य को आंकने की यह सोच कर कोशिश की कि भारत लड़खड़ा जाएगा, वहीं दूसरी ओर दिसम्बर में राष्ट्रपति पुतिन का इतने समय तक हमारी सहन करने और बर्दाश्त करने की ताकत का जायज़ा लेने के बाद भारत आकर मोदी से हाथ मिलाना भविष्य में कुछ भी उलटफेर होने का संकेत है। यह न केवल ऐतिहासिक साझेदारी का प्रतीक है बल्कि अमरीका की दबाव डालने की नीति को भारत द्वारा विफल साबित करना है। यह हमारी रणनीतिक जीत है क्योंकि कोई ऐसे ही न तो गले मिलता है और न ही किसी के प्रति बेरुखी दिखाता है। अमरीका और रूस दोनों विश्व शक्ति होने का दावा करते रहते हैं और उनके बीच होड़ रहती है कि उनमें से कौन नम्बर वन कहलाये। इस सिलसिले में वे उन देशों से संपर्क साधने लगते हैं जो कभी उन्हें पीछे छोड़ सकते हैं। चीन का उदाहरण है जो अपने ही संसाधनों की बदौलत विश्व में इन्हें पीछे छोड़ने का मौका तलाशता रहता है। 
यह कोई साधारण बात नहीं है कि अमरीका ने अडिग रूख अपनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी और भारत ने विनम्रता से उसे यह संदेश देने में कोई कोताही नहीं की कि भारत बड़ा खिलाड़ी बनने की तरफ बढ़ रहा है। इसलिए ट्रम्प का शुक्रगुज़ार होना चाहिए कि उन्होंने उनकी तरह भारत प्रथम का नारा देशवासियों के दिल और दिमाग में बिठा दिया। हमारे जो क्षेत्र प्रभावित हो रहे थे, उनमें टेक्सटाइल, ज्वैलरी, फार्मास्यूटिकल और कृषि में निर्यात पर 30-35 प्रतिशत की कमी का अनुमान लगाया गया था जो एक बहुत बड़ी गिरावट या आपदा का संकेत था। इसे अवसर में बदलने के लिये सरकार ने व्यापारियों, उद्योगपतियों और युवा उद्यमियों को प्रोत्साहित कर उन्हें आत्मनिर्भर बनने का संकल्प दिलाया जिसका परिणाम एक नई ऊर्जा और विश्वास के रूप में सामने आया।
हम स्थिति को परिस्थिति के अनुसार बदलने में सक्षम हैं, यही बात समझने में ट्रम्प ने भूल कर दी। वाणिज्य मंत्री का यह कहना पर्याप्त था कि हम झुकेंगे नहीं बल्कि नए बाज़ारों की ओर बढ़ेंगे। इस प्रक्रिया में यूरोप, जापान, अफ्रीका के साथ बांग्लादेश, वियतनाम जैसे देशों के साथ व्यापार समझौते किए। इसी के साथ अमरीका की परवाह न करते हुए रूस-भारत व्यापार लगभग 70 अरब डॉलर तक पहुंच गया जिसे आने वालों वर्षों में दोगुना, तिगुना किए बिना अमरीका से मुकाबला करना संभव नहीं है। 
अनुसंधान और विकास : सरकार को सबसे पहले यह करना होगा कि आर एंड डी (अनुसंधान और प्रौद्योगिकी) विकास पर जीडीपी का खर्च पांच प्रतिशत करना होगा, विशेषकर सेमीकंडक्टर और इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों के क्षेत्र में उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए ताकि वैश्विक स्तर पर काम कर रही कंपनियां भारत में उपलब्ध सुविधाओं को भरोसेमंद पायें और यहां आयें। यही एक रास्ता है जो देश को उत्पादन हब बना सकता है। हमारी जो सप्लाई चेन है, उसे हम पर निर्भर होना ही हमें आर्थिक दृष्टि से बेहतर और स्वावलंबी बना सकता है। अमरीका का टैरिफ लगाकर हमें कमज़ोर कर पाना संभव नहीं है। अपनी टेक्नोलॉजी पर आधारित उत्पादन जारी रखना और हमारी वैज्ञानिक प्रयोगशालाओं और वैज्ञानिकों द्वारा विकसित तकनीक का उपयोग इसकी पहली शर्त है। ऐसी तकनीक जो विश्व में किसी के पास नहीं है और वह भी बहुत कम कीमत में उपलब्ध होना हमारी विशेषता है। दुर्भाग्य यह भी रहा है कि दशकों तक सरकारों ने विदेशी टेक्नोलॉजी पर भरोसा किया लेकिन पिछले कुछ वर्षों में जिस प्रकार से स्वदेशी तकनीक का इस्तेमाल कर भारत ने दुनिया को चौंकाया है, उससे स्पष्ट है कि वे शक्तियां जो हम पर हावी रहती थीं, उनके दिन अब समाप्त हुए क्योंकि यह नया भारत है जिसके नागरिक मौका मिलने पर चौका मारने में सक्षम हैं। 
इस दौरान जब पुतिन भारत आते हैं और जिस तरह की आत्मीयता दिखाते हैं, उससे यह तो विश्वास हो ही जाता है कि यह केवल औपचारिक नहीं है या एक बड़ी शक्ति का अपना प्रभुत्व जमाने की कवायद नहीं है बल्कि बराबरी के आधार पर संतुलन बनाने का प्रयास है। चाहे बात सैन्य उपकरणों की हो या ऊर्जा की, दोनों देशों का एक दूसरे के साथ दीर्घकालीन साझेदारी करना एक ओर अमरीका का वर्चस्व पूरे एशिया में कम करना है और दूसरी ओर भारत का इन देशों का नेतृत्व करना भी है। अनेक विश्लेषकों का कहना है कि यदि भारत मज़बूत स्थिति में होगा तो अमरीका को अलग-थलग कर सकता है। यही नहीं चीन का विकल्प भी बन सकता है। कह सकते हैं कि 2026 में भारत वैश्विक अर्थव्यवस्था में एक नया मॉडल बन सकता है। 
बुनियादी अंतर : यहां इस बात को भी ध्यान में रखना होगा कि अमरीका में पूंजीवाद और रूस में साम्यवाद आधारित राजनीतिक और सामाजिक व्यवस्था है। भारत के लिए इनमें से किसी एक या दोनों ही को अपनाना उसके हित में नहीं है। हमारी पारिवारिक, सामाजिक और ऐतिहासिक पृष्ठभूमि इन दोनों से अलग है। आर्थिक रूप से कमज़ोर या संपन्न होना इस बात पर निर्भर करता है कि हमारा इतिहास, संस्कृति और सभ्यता क्या रही है। हम पौराणिक कथाओं के माध्यम से अपने जीवन को संचालित करते हैं। 
पूंजीवादी या साम्यवादी देशों में ऐसी कोई परंपरा न होने से वे अक्सर हम पर ढोंगी, पोंगापंथी होने का आरोप लगाकर हम से श्रेष्ठ होने का ढोंग करते हैं। वे यह नहीं जानते कि यही हमारी पहचान है और हम इसी कारण उनसे बराबरी या बेहतरी का दावा करते हैं। इसलिए ट्रम्प का धन्यवाद कि उन्होंने अनायास आत्मनिर्भर बनने का उपहार दिया। इसी प्रकार पुतिन का अभिवादन भी क्योंकि उन्होंने प्राचीन मित्रता को नया जीवन दिया और यह एहसास दिलाया कि अमरीका से व्यापार जोखिमों से भरा है और रूस के साथ व्यावहारिक संबंधों पर आधारित हो सकता है। अब अमरीका के बजाय भारतीय रूस और चीन में पढ़ाई से लेकर बसने तक के सपने देखने लगे हैं। यह अमरीका के लिए चिंता की बात हो सकती है लेकिन हमारे लिए आपदा में अवसर के समान है। 

#दबाव से ऊपर उठ कर महाशक्तियों से संबंध बना रहा भारत