इंडिगो संकट को लेकर सवालों के घेरे में सरकार
इंडिगो एयरलाईन्स के उड़ान संकट का कोई समाधान खोजने के पथ पर बेशक केन्द्र सरकार ने कार्रवाई करते हुए इसकी उड़ान-संख्या पर दस प्रतिशत की कटौती आयद की है। प्रधानमंत्री मोदी ने भी इस संकट को बढ़ने न देने की बात कही है किन्तु उड़ानों को रद्द किये जाने की प्रक्रिया अभी भी जारी है, जो लगभग 4000 तक पहुंच गई है। केवल पिछले दो ही दिनों में ही एक हज़ार से अधिक उड़ानें रद्द हुई हैं। इन रद्द उड़ानों की भरपाई कौन-सी दूसरी कम्पनी करेगी, इसकी जानकारी भी किसी ने नहीं दी है। यह संकट कितना गम्भीर हो गया है, इसका इल्म इसे लेकर सर्वोच्च न्यायालय द्वारा चिन्ता व्यक्त किये जाने से हो जाता है। इससे यह भी पता चलता है कि इस संकट/समस्या के शीघ्र हल होने की सम्भावनाएं और क्षीण हुई हैं। सर्वोच्च न्यायालय ने इस पर भी चिन्ता व्यक्त की कि इंडिगो की हज़ारों उड़ानें रद्द अथवा स्थगित होने से लाखों यात्री हवाई अड्डों पर अथवा अन्य स्थलों पर परेशान हो रहे हैं। उनको स्वास्थ्य संबंधी और अन्य कई प्रकार की समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है। ऐसे जिन लोगों को होटलों में भी जगह नहीं मिल रही, वे हवाई अड्डों के ठंडे फर्श पर सोने को मजबूर हैं। यहां एकत्रित भीड़ देश के रेलवे स्टेशन जैसा नज़ारा पेश करती है। होटल उपलब्ध नहीं, तो मालिकों ने कमरों की दरें बढ़ा दी हैं। खाने-पीने की वस्तुओं के दाम भी आकाश चढ़ गये। दूसरी विमानन कम्पनियों ने टिकटों को लेकर लूट मचा दी। कुल मिला कर यह एक अराजकता जैसा माहौल बन गया है। तथापि अदालत ने इस मुद्दे पर तत्काल सुनवाई हेतु दायर याचिका को फिलहाल स्वीकार करने से इन्कार करते हुए आशा व्यक्त की है कि सरकार शीघ्र समुचित कार्रवाई करके इस व्यवधान को खत्म करने का प्रयास अवश्य करेगी।
नि:संदेह ऊपरी तौर पर देखने से यह प्रकट होता है कि यह संकट एक एकाकी इकाई इंडिगो से सम्बन्धित है, किन्तु गहराई से देखने पर पता चलता है कि यह एक पूरे सिस्टम के लड़खड़ा जाने से उपजा प्रतीत होता है। सरकार और कम्पनी स्पष्ट तौर पर प्रश्नों के कटघरे में खड़ी दिखाई देती हैं। नि:संदेह यह मामला किसी बड़ी कम्पनी द्वारा कार्पोरेट मुनाफाखोरी किये जाने का लगता है, यानि वेतन कम और कार्य-शोषण अधिक। इंडिगो ने भी यही किया यानि कम स्टाफ से अधिकाधिक कार्य। बेशक इससे यह संदेश भी निकलता है कि एक पूरे सिस्टम का काया-कल्प किये जाने की भी बड़ी आवश्यकता है। इस समस्या ने प्रबन्ध-व्यवस्था के कई पक्षों की पोल खोल कर रख दी है।
इंडिगो का मौजूदा संकट इकाई के भीतर की परिचालन त्रुटियों, संसाधनों की कमी और विशेष रूप से पायलटों की भारी कमी से उपजी समस्याओं के कारण पैदा हुआ है। इससे पहले सरकार ने पायलटों पर बढ़ते शारीरिक और मानसिक बोझ-दबाव के दृष्टिगत उनके कार्य-घंटों को घटाया, आराम के समय को बढ़ाया, और पायलटों को लम्बा विश्राम देने के नियम बनाये गये। बस, समस्या यहीं से शुरू हो गई। संकट-ग्रस्त कम्पनी पर मानकों के उल्लंघन और नई भर्ती न करने के आरोप लगे। समस्या से निपटने के लिए कम्पनी ने मौजूदा पायलट संख्या से ही काम चलाना चाहा। नये माणक लागू नहीं किये गये, तो कर्मचारियों में आंतरिक रोष उपजना बहुत स्वाभाविक था। इसके परिणाम-स्वरूप, स्टाफ की कमी का बहाना बना कर इंडिगो प्रबन्धन-व्यवस्था ने अनेक राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय उड़ानों को क्रमिक रूप से स्थगित अथवा रद्द करना शुरू कर दिया। समस्या इसलिए भी अधिक गम्भीर हुई कि राष्ट्र की कुल विमानन प्रणाली में 60 प्रतिशत की हिस्सेदारी इसी इंडिगो की है। इस कारण यात्रियों और उनके अभिभावक जनों की कठिनाइयों एवं परेशानियों में इज़ाफा हुआ। वास्तव में विकास और उन्नति की बढ़ती रफ्तार के दृष्टिगत विमानों से यात्रा करने वालों की संख्या निरन्तर बढ़ी है, किन्तु इसके ब-मुकाबिल विमानन कम्पनियों ने न तो विमानों की संख्या बढ़ाई, न चालक परिचालकों की ही नई नियुक्ति की। इस कारण समस्याओं का एक संजाल बुनता चला गया, जिसकी परिणति इंडिगो के मौजूदा संकट के रूप में सामने आई है।
इस सम्पूर्ण स्थिति में प्रश्न यह भी उठता है कि विश्व की दूसरी बड़ी अर्थ-व्यवस्था बनने जा रहे इस देश का विमानन सिस्टम इतनी शीघ्र पंगु कैसे हो गया कि कहीं कोई व्यवस्था दिखाई ही नहीं देती है। यह समस्या इंडिगो के कर्मचारी वर्ग एवं प्रबंधन के बीच सामंजस्यता और तालमेल न होने से भी स्वत: गम्भीर होते चली गई। सरकारी नियमों ने समस्या को और गम्भीर किया। यह संकट बड़ी देर से उबाल ले रहा था किन्तु सरकार इस दौरान गुम-सुम बनी रही। सरकार ने अब किराया-कानून आदि नियमों को लागू कर यात्रियों की वित्तीय बांह पकड़ने की कोशिश की है। करोड़ों रुपये का रिफंड भी हुआ है, किन्तु इस प्रयास को लेकर भी विमानन कम्पनी और यात्रियों के बीच तनाव बढ़ा है। हम समझते हैं कि इस माह की शुरुआत में ही सरकार यदि व्यवस्था को चाक-चौबंद करने हेतु कदम उठाती तो समस्या पर नियंत्रण किया जा सकता था। देश में विमान यात्रा का बाज़ार प्राय: दो कम्पनियों पर निर्भर रहा है। इनमें एक इंडिगो है। किसी भी लोकतांत्रिक समाज में सभी को समान अवसर मिलने चाहिएं। हम समझते हैं कि इससे पूर्व कि पानी सिर से ऊपर उठे, सरकार इंडिगो की प्रबंधन व्यवस्था और डी.जी.सी.ए. के बीच उपजी इस सम्पूर्ण स्थिति का अवलोकन कर इस संकट को समाप्ति की ओर अग्रसर करे। ऐसा करना देश और समाज को स्वस्थ बनाये रखने हेतु बहुत ज़रूरी है। यह भी, कि ऐसा करना जितना शीघ्र सम्भव हो सकेगा, उतना ही जन-समाज के हित में होगा।

