पाकिस्तान-अफगानिस्तान
विगत कुछ माह से पाकिस्तान व अफगानिस्तान में लगातार तनाव बढ़ रहा है। नवम्बर के आखिर में पाकिस्तान ने अफगानिस्तान की सीमावर्ती इलाकों में भारी बमबारी की थी। उसका कहना था कि तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान के लड़ाकों ने अफगानिस्तान के सीमावर्ती इलाकों में पनाह ली हुई है। वहां से वे लगातार पाकिस्तान के विरुद्ध हिंसक जेहादी कार्रवाईयां कर रहे हैं। इस मुद्दे को लेकर दोनों देशों के बीच सख्त तनाव बना हुआ है। पाकिस्तान लगातार यह आरोप लगाता रहा है कि तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान के गुरिल्लों को अफगानिस्तान की सरकार सिखलाई और हथियार दे रही है, जबकि पाकिस्तान ने अफगानिस्तान में तालिबान सरकार बनाने में पूरी मदद की थी। इससे पहले भी तालिबान का वहां शासन रहा था परन्तु इस बार उन्होंने साल 2021 से अफगानिस्तान का प्रशासन दोबारा से संभाला है।
अफगानिस्तान का दावा है कि पाकिस्तान तालिबान तो साल 2007 से ही सक्रिय हो गये थे, जिनका निशाना खैबर पख्तूनख्वा राज्य पर किसी न किसी तरह कब्ज़ा करके वहां से शरीयत का शासन कायम करना है। उनकी गतिविधियों के कारण पाकिस्तान में लम्बे समय से हालात लगातार खराब हो रहे हैं। इसके अलावा भी अफगानिस्तान और पाकिस्तान के बीच सीमाओं पर डुरंड लाईन को लेकर लम्बे समय से झगड़ा चल रहा है। अफगानिस्तान इस लाईन के समीप खैबर पख्तूनख्वा के बड़े हिस्से पर अपना अधिकार जताता आया है। पिछले साल नवम्बर के माह में पाकिस्तान द्वारा अफगानिस्तान के सीमावर्ती क्षेत्रों में की गई बमबारी के बाद तनाव बढ़ता-बढ़ता एक खतरनाक स्थिति में आ गया है। नि:संदेह पाकिस्तानी तालिबान अफगान तालिबानों से उत्साह ले रहे हैं। साल 1996 में पश्तून मूल के अफगान तालिबान ने अफगानिस्तान में हुकूमत बना ली थी। उसके बाद साल 2001 में अल ़कायदा द्वारा अमरीका पर किए गये हमले के बाद अमरीका ने हमला करके तालिबान की हुकूमत खत्म कर दी थी। 20 साल की लड़ाई के बाद 2021 में ही उन्होंने दोबारा देश पर कब्ज़ा किया है।
चाहे दोनों देशों के बीच समझौते करवाने के लिए ़कतर और तुर्की ने बहुत यत्न किए परन्तु अभी तक ये यत्न कामयाब नहीं हुए। पाकिस्तान के रक्षा मंत्री ़ख्वाज़ा मोहम्मद आसिफ ने स्पष्ट शब्दों में कहा है कि उसके देश को अब तालिबान से कोई उम्मीद नहीं और आपसी संबंध बनाने की सभी कोशिशें खत्म हो गई हैं। इसी दौरान अफगानिस्तान के महत्वपूर्ण मंत्रियों ने भारत का दौरा करके इससे हर तरह की सहायता की मांग की है। अफगानिस्तान में इस समय प्राथमिक ज़रूरतों को पूरा करने वाली वस्तुओं की बड़ी कमी है। उसके मंत्रियों ने दवाईयों की सप्लाई हासिल करने के लिए भारतीय दवाई कम्पनियों के साथ समझौता करने को प्राथमिकता दी है। पाकिस्तान के बारे में अफगानिस्तान के स्वास्थ्य मंत्री नूर जलाल जलाली ने कहा है कि उनका देश किसी का गुलाम नहीं है और वह विदेशी आदेशों को रद्द करते हैं। वह पड़ोसी देश के कि ‘आप जो भी करें, पहले हमसे पूछें’ के रवैये से सहमत नहीं हैं। अफगानिस्तान के आर्थिक मामलों बारे उप-प्रधानमंत्री मुल्ला अब्दुल घनी बरादर ने भी पाकिस्तान को चेतावनी देते हुए कहा कि वह किसी भी देश को अपनी क्षेत्रीय प्रभुसत्ता का उल्लंघन करने की अनुमति नहीं देंगे।
इस सारी स्थिति के देखते हुए यह महसूस होता है कि पाकिस्तान अपने ही बुने जाल में फंसता दिखाई दे रहा है। उसके द्वारा पोषित लश्कर-ए-तैयबा तथा जैश-ए-मोहम्मद आदि संगठनों के साथ-साथ अब इस क्षेत्र में इस्लामिक स्टेट तथा अलकायदा के गुरिल्लों की गतिविधियां भी चुनौती बनती जा रही हैं। पैदा हुई इस स्थिति से उसके पड़ोसी देश भी बड़े चिन्तित प्रतीत होते हैं। पाकिस्तान इस हालात से किस तरह निजात पाएगा, इसके बारे में कुछ भी नहीं कहा जा सकता। अफगानिस्तान के साथ सख्त लड़ाई होने का खतरा उसके सिर पर मंडरा रहा है। इसके अतिरिक्त उसके बड़े प्रांत बलोचिस्तान में भी हालात दिन-प्रतिदिन खराब हो रहे हैं। एक तरफ चाहे फील्ड मार्शल जनरल आसिम मुनीर ने देश में अपनी पकड़ मज़बूत कर ली है, दूसरी ओर अलग-अलग आतंकवादी संगठनों द्वारा तरह-तरह की दी जा रही चुनौतियां उसकी राह में खड़ी हैं। राजनीतिक अस्थिरता ने देश को डावांडोल कर दिया है। आर्थिक रूप में वह एक तरह से खोखला हुआ दिखाई दे रहा है। जब से दोनों देशों की यह लड़ाई तेज़ होने लगी है, अफगान मंत्रियों ने भारत के दौरे बढ़ा दिए हैं। पिछले दिनों वहां के वाणिज्य एवं उद्योग मंत्री हाजी नूरूदीन अज़ीज़ी भारत के दौरे पर आए थे। उन्होंने नई दिल्ली में कहा कि दोनों देशों का इस समय व्यापार एक अरब डॉलर (लगभग 8881 करोड़ रुपये) के करीब है, जिसके और बढ़ने की वह आशा करते हैं। नूरूदीन ने यह भी पेशकश की है कि वह भारत से जाने वाले कच्चे माल तथा मशीनरी पर सिर्फ एक प्रतिशत टैक्स लगाएंगे और साथ-साथ वहां उद्योग स्थापित करने के लिए मुफ्त ज़मीन भी दी जाएगी। इसके अतिरिक्त उद्योग को लगातार बिजली भी मिलती रहेगी। नए उद्योग को 5 वर्ष तक टैक्स से छूट भी दी जाएगी।
इसके साथ ही दोनों देशों ने हवाई कार्गो सेवाएं जल्द शुरू करने की योजना भी बनाई है। इसके माध्यम से काबुल-दिल्ली तथा काबुल-अमृतसर में हवाई जहाज़ों के ज़रिये सामान की ढुलाई के लिए विशेष प्रबंध किए जा रहे हैं। उन्होंने खनिज, कृषि, स्वास्थ्य तथा अन्य क्षेत्रों में भारतीय उद्योगों तथा तकनीकी संस्थाओं से अपना सहयोग बढ़ाने की बात भी की है। तालिबान प्रशासन बड़ी तेज़ी से अपने देश के पुनर्निर्माण के लिए तत्पर दिखाई देता है, जिसके लिए उसे भारत की बड़े स्तर पर सहायता की ज़रूरत होगी। आगामी समय में यदि पाकिस्तान तथा अफगानिस्तान के संबंध और बिगड़ते हैं तो इसका प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप में भारत पर प्रभाव पड़ना भी स्वाभाविक है, जो भारत के लिए किसी भी बड़ी चुनौती से कम नहीं होगा।
—बरजिन्दर सिंह हमदर्द

