पुतिन की भारत यात्रा : दोस्ती को मिले नये अर्थ
रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने भारत की दो-दिवसीय (4-5 दिसम्बर, 2025) यात्रा ऐसे समय की है जब अंतर्राष्ट्रीय भू-राजनीति बहुत ही नाज़ुक मोड़ पर खड़ी है। एक तरफ जहां ट्रम्प का टैरिफ युद्ध जारी है, तो दूसरी तरफ अफ्रीका, एशिया व यूरोप में तनाव, हिंसा, युद्ध व जेन-ज़ी आंदोलनों के बीच शांति के प्रयास भी जारी हैं और वेनेज़ुएला (दक्षिण अमरीका) पर अमरीकी हमले की आशंका निरंतर बढ़ती जा रही है। इस पृष्ठभूमि में पुतिन व प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नई दिल्ली में शिखर वार्ता (5 दिसम्बर, 2025) से कुछ महत्वपूर्ण बातें निकल कर आयी हैं, जो आश्चर्यजनक नहीं हैं। एक, इसने दोनों पक्षों के लिए रणनीतिक स्वयत्ता पुन: स्थापित की। रूस-यूक्रेन युद्ध के कारण मास्को अकेले पड़ने और चीन पर अत्यधिक निर्भरता की धारणा को तोड़ना चाहता था। अमरीका से कठिन व्यापार वार्ता के चलते भारत को भी रणनीतिक सहारे की आवश्यकता थी। पुतिन की यात्रा से ये दोनों बातें हासिल हो गई हैं। दूसरा यह कि वार्ता में यूक्रेन पर भी चर्चा हुई और मोदी ने इस बात को दोहराया कि भारत शांति के लिए हर प्रयास का समर्थन व सहयोग करेगा। यह स्वागतयोग्य कदम है, क्योंकि जितने लम्बे समय तक यह युद्ध चलता रहेगा, रूस चीन की ‘ज़ंजीरों में जकड़ा’ रहेगा, जो दोनों भारत व पश्चिम के लिए साझी चिंता है। तीसरा यह कि दोनों पक्षों ने माइग्रेशन व मोबिलिटी समझौता करके इस इच्छा को व्यक्त किया है कि वे द्विपक्षीय संबंधों को गति देना चाहते हैं और रणनीतिक आर्थिक सहयोग के लिए योजना विकसित करना चाहते हैं।
दरअसल यह ज़रूरी है कि भारत व रूस अपने आर्थिक समझौते को केवल रक्षा व ऊर्जा तक सीमित न रखें, बल्कि उसमें विविधता लेकर आयें और यह ज़रुरत बहुत लम्बे समय से महसूस की जा रही थी, जो इस वार्ता के बाद पूरी होती हुई प्रतीत हो रही है। हालांकि रक्षा व ऊर्जा का ध्यानपूर्वक संज्ञान लिया गया है, लेकिन भारत चाहता है कि रूस सैन्य हार्डवेयर की सप्लाई में तेज़ी लाये, जोकि बहुत अधिक विलम्ब से चल रहा है। नई दिल्ली ने इस बात को भी दोहराया है कि रूस सैन्य उपकरणों के देशज उत्पादन में भी उसकी मदद करे। ऊर्जा के संदर्भ में भारत एकदम स्पष्ट है कि वह केवल अपने हितों के आधार पर निर्णय लेगा यानी जहां से अच्छे दाम व स्थितियों का ऑफर होगा, वह उसका चयन करेगा। इस सब का अर्थ यह है कि बदलती वैश्विक दोस्ती, अमरीका के राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रम्प की सुबह-शाम बदलती नीतियों और चीन की मनमानी के साये में भारत व रूस अपने लिए अधिकतम रणनीतिक स्थान प्राप्त करने का प्रयास कर रहे हैं। ऐसे में पुराने दोस्तों द्वारा अपनी दोस्ती की बुनियाद को फिर से स्पर्श करना ताज़े, ठंडे हवा के झोंके की तरह है, जिसका निश्चित रूप से सकारात्मक वैश्विक प्रभाव पड़ेगा। अत: मोदी के इस बयान में कोई अतिश्योक्ति नहीं थी कि उथल-पुथल हो रहे संसार के बावजूद पिछले आठ दशकों से भारत व रूस के संबंध ध्रुव तारे की तरह रहे हैं, दिशा दिखाते हुए और आपसी सम्मान व विश्वास पर आधारित।
बहरहाल, दोनों देशों ने दर्जन से अधिक समझौतों व एमओयू पर हस्ताक्षर किये, जिनमें स्वास्थ्य, प्रवास व समुद्री सहयोग जैसे क्षेत्र शामिल हैं और साथ ही आर्थिक सहयोग का फ्रेमवर्क अपनाया, जिससे उम्मीद है कि अगले पांच वर्षों के दौरान व्यापार 100 बिलियन डॉलर तक पहुंच जायेगा। इससे ज़ाहिर होता है कि भारत व रूस अपने व्यापार का विस्तार करते हुए उसे रक्षा व ऊर्जा की सीमाओं से आगे ले जाने के इच्छुक हैं। इसमें संदेह नहीं है कि भारत के ऊर्जा विकास के लिए रूस तेल, गैस व कोयले का भरोसेमंद आपूर्तिकर्ता है और पुतिन ने वायदा किया है कि वह बिना रुके इन चीज़ों की सप्लाई करते रहेंगे। यह बहुत महत्वपूर्ण है, विशेषकर इसलिए कि ट्रम्प ने भारत पर 25 प्रतिशत टैरिफ व इसके अतरिक्त 25 प्रतिशत जुर्माना लगाते हुए भारत पर रूस से तेल न लेने का दबाव बनाया था और भारत की कुछ कम्पनियों ने कहा भी था कि वह रूस से तेल लेना बंद कर रही हैं। ट्रम्प का यह दबाव इस तथ्य के बावजूद था कि रूस-यूक्रेन युद्ध और कोविड-19 महामारी के दौरान वाशिंगटन ने स्वयं नई दिल्ली से से रूसी तेल लेने को कहा था ताकि कच्चे तेल के वैश्विक दामों को नियंत्रित रखा जा सके। अमरीका भी रूस से तेल आयात करता है, जिसके बारे में ट्रम्प का कहना था कि उन्हें मालूम नहीं। यह कैसा राष्ट्रपति है, जिसे यह तक मालूम नहीं कि उसके देश में क्या चीज़ कहां से आ रही है। खैर, रूस से ऊर्जा समझौता इस बात का स्पष्ट संकेत है कि भारत अपनी विदेश नीति को स्वतंत्र व आत्म-निर्भर रखना पसंद करता है और पुतिन ने भी इस बात की तारीफ की है। चूंकि भारत व रूस की दोस्ती का मज़बूत व महत्वपूर्ण पहलू हमेशा से ही ऊर्जा सुरक्षा रहा है। इसलिए नई दिल्ली ने नागरिक परमाणु सहयोग के महत्व पर भी बल दिया है।
ज़ाहिर है, भारत अपने ऊर्जा साथियों, चाहे नये हों या पुराने, से संबंध बनाये रखता है, विविधता की ज़रूरत को महसूस करता है और अपने ऊर्जा हितों को सुरक्षित रखने पर फोकस करते हुए तेल दामों में स्थिरता बरकरार रखने की आवश्यकता को भी समझता है। हालांकि पुतिन के साथ ‘मेक इन इंडिया’ पहल सहित रक्षा पर सामान्य चर्चा हुई, लेकिन अधिक फोकस आर्थिक सहयोग व प्रयासों पर रहा ताकि रूस को अधिक भारतीय वस्तुओं का निर्यात सुनिश्चित किया जा सके। इससे स्पष्ट हो जाता है कि ट्रम्प द्वारा टैरिफ में अनावश्यक वृद्धि करने के बाद अब भारत नये बाज़ारों की तलाश कर रहा है, जिसमें रूस एक भरोसेमंद साथी साबित हो सकता है। इसलिए उसके साथ रक्षा व ऊर्जा से आगे बढ़ते हुए अन्य चीज़ों के समझौते किये गये।
पुतिन चार वर्ष के अंतराल के बाद भारत आये ताकि 23वें भारत-रूस वार्षिक शिखर वार्ता में हिस्सा ले सकें। इन वार्ताओं का सिलसिला 2000 में आरंभ हुआ था, लेकिन इतना लम्बा अंतराल पहले कभी नहीं हुआ, लेकिन इसके महत्व से इंकार नहीं किया जा सकता, विशेषकर इसलिए कि जटिल भू-राजनीतिक खेल, जिसे स्वतंत्र रूप से हरकत कर रहीं मुख्य शक्तियां बदलते मैदानों में खेल रही हैं, में भारत व रूस के द्विपक्षीय संबंध अपने आप में एक खिलाड़ी के रूप में सामने आते हैं। हालांकि भारत के अल्प-कालीन विकल्प काफी हद तक इस बात पर निर्भर करते हैं कि ट्रम्प यूक्रेन युद्ध का अंत करा सकते हैं या नहीं। इसके लिए उन्होंने एक योजना भी सामने रखी है, लेकिन आज हम एक ऐसे विश्व में रह रहे हैं जिसमें दोस्त तेज़ी से बदल रहे हैं और विदेश नीति रणनीतिक स्वयत्ता पर निर्भर हो गई है। ऐसे में पुराने दोस्तों पर भरोसा करके भारत व रूस के संबंध न सिर्फ नये अर्थ हासिल कर रहे हैं, बल्कि वे दोनों देशों के लिए लाभ की स्थितियां उत्पन्न कर सकते हैं।
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