भारत में पक्षियों का प्रसिद्ध गांव है मेनार
मेनार गांव में मैं पौ फटने के साथ ही पहुंच गया था, बिना किसी असुविधा के क्योंकि यह राजस्थान में उदयपुर के बहुत पास है, जहां मैं ठहरा हुआ था। सुबह होते ही मेनार में चिड़ियों का चहचहाना शुरु हो जाता है, खासकर हर मानसून के बाद से, जब दूरदराज़ से पक्षी जाड़ों के इस अपने घर में लौटने लगते हैं। दशकों से मेनार 100 से अधिक स्थानीय व ठंडे इलाकों से पलायन करके आने वाले पक्षियों का अभयारण्य बना हुआ है, जिनमें फ्लेमिंगो, पेलिकन, कूटस और लुप्त होने की कगार पर सारस क्रेन भी शामिल हैं। इन्हें देखने के लिए दूर-दूर से पक्षी प्रेमी आते हैं, जिससे मेनार राजस्थान का प्रमुख पर्यटक स्थल बन गया है।
लेकिन मेनार की विशेषता केवल उसकी जैव-विविधता ही नहीं है बल्कि उसके लोग भी हैं, जिनकी वजह से यह संभव हो सका है। पक्षियों को देखते हुए मेरी मुलाकात दर्शन मेनारिया से हुई, जिन्हें बचपन में हर पक्षी बत्तख ही मालूम पड़ता था, लेकिन अब वह पक्षी मित्र हैं, जिस पर उन्हें गर्व है। दर्शन इस समय एक कॉलेज में अध्यापक भी हैं। वह अपनी दोनों भूमिकाओं को बखूबी निभाते हैं और उस पीढ़ी का नेतृत्व भी करते हैं जो हर पक्षी के आगमन को पवित्र परम्परा के रूप में देखती है। मेनार का परों वाले मेहमानों से प्यार का सिलसिला लगभग दो शताब्दी पहले आरंभ हुआ। मुझे बताया गया कि 1832 में झील के किनारे एक ब्रिटिश अधिकारी ने एक पक्षी को गोली मार दी थी। उसे ग्रामीणों ने तुरंत ही गांव के बाहर खदेड़ दिया। यह कहानी लोककथा बन गई और इसने मेनार के अलिखित संरक्षण कोड की आधारशिला रखी। वह विरोध भक्ति में बदल गया। समय के साथ मेनार के लोगों ने अपने तालाबों- ब्रह्म तालाब, धंड तालाब व खेरोड़ा तालाब को जीवंत वेटलैंड्स में बदल दिया। इनके प्रयास अनदेखे न गये। मेनार को आधिकारिक तौर पर राजस्थान के पहले पक्षी गांव के रूप में मान्यता दी गई और उसे रामसर साईट घोषित किया गया। मेनार को 2023 में भारत के सर्वश्रेष्ठ पर्यटन गांव के पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
दरअसल, मेनार संरक्षण के लिए जीता जागता क्लासरूम है। दर्शन जब अपनी कक्षा में होते हैं और बाहर से अगर किसी पक्षी के चहचहाने की आवाज़ आ जाये तो वह अक्सर बीच वाक्य में ही अपने वाक्य को अधूरा छोड़ देते हैं, गीत सुनने के लिए। उन्होंने मुझसे कहा, ‘जब कॉपरस्मिथ बारबेट गाती है तो मैं छात्रों से कहता हूं कि उसके गीत को सुनो। जब छात्र पक्षी को देखेंगे और पहचानेंगे, तभी वह वास्तव में उनकी देखभाल करेंगे, उनकी केयर करेंगे।’ मेनार में संरक्षण केवल विषय नहीं है- वह जीवनशैली है। धार्मिक रीति-रिवाजों का आयोजन झील के किनारों पर किया जाता है ताकि मानव व प्रकृति का संबंध मज़बूत किया जा सके। मछली पकड़ने व गर्मियों की खेती को अपनी इच्छा से बंद कर दिया गया है ताकि पक्षियों के ठहरने की जगहों को सुरक्षित रखा जा सके। झीलों से पानी भी बहुत कम निकाला जाता है। ग्रामीण अपनी ज़रूरतों पर पक्षियों की ज़रूरतों को प्राथमिकता देते हैं।
राजस्थान वन विभाग द्वारा प्रशिक्षण प्राप्त पक्षी मित्र हाथ में बाइनोक्यूलर्स लेकर सुबह व शाम को झीलों की निगरानी करते हैं। वह पक्षियों की गतिविधियों, को लाग करते हैं, पलायन पैटर्न को ट्रैक करते हैं और खतरे की स्थिति में सावधान करते हैं। उनकी भूमिका दोनों वैज्ञानिक व चौकीदार की है। इस स्थानीय निगरानी ने, न केवल सामान्य जलमुर्गाबी को सुरक्षित रखने में मदद की है बल्कि उन प्रजातियों को भी जिन पर लुप्त होने का खतरा मंडरा रहा है या लुप्त होने की कगार पर हैं, जैसे इंडियन स्किम्मर, इजिपशन वल्चर और लम्बी चोंच वाला गिद्ध। दरअसल, यह एक ऐसा मॉडल है जिससे दुनिया सबक ले सकती है। फिल्मकार गुंजन मेनन ने मेनार की कहानी को अपनी पुरस्कार-विजेता डॉक्यूमेंट्री ‘विंग्स ऑ़फ होप’ (उम्मीदों के पर) में बयान किया है। वह इसे ‘विश्वसनीय नेतृत्व की कहानी’ कहती हैं। उनके अनुसार, ‘मेनार के लोग संरक्षण इसलिए नहीं करते कि उनसे ऐसा करने को कहा गया- संरक्षण उनके व्यक्तित्व का हिस्सा है।’
गुंजन की फिल्म को जैकसन वाइल्ड 2023 में ऑडियंस चॉइस अवार्ड मिला था। इस फिल्म में उन्होंने बताया कि ज़मीनी प्रयासों से वह हासिल किया जा सकता है जो अक्सर बड़े पैमाने की नीतियों से नहीं मिलता- मानव व प्रकृति के बीच में अच्छा तालमेल। मेनार से सबक लेना चाहिए कि प्रभावी संरक्षण के लिए हमेशा करोड़ों रुपये के बजट की ज़रूरत नहीं होती है और न ही स्टेट-ऑ़फ-द-आर्ट लैबों की। अक्सर सामूहिक इच्छाशक्ति, संयम और इकोसिस्टम के लिए सम्मान भी काम कर जाता है। जब मेनार के चमचमाते पानियों पर सूरज की रोशनी पड़ने लगी तो फ्लेमिंगो ने आसमान को गुलाबी कर दिया। यह नज़ारा मेरे दिलोदिमाग पर हमेशा के लिए नक्श हो गया। मुझे एहसास हुआ कि जब मानव व प्रकृति हाथ में हाथ डालकर चलते हैं तो हर बात मुमकिन हो जाती है।
-इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर




