कहानी-मां

(क्रम जोड़ने के लिए पिछला रविवारीय अंक देखें)


साथ जाने वाले सर ने व्यवस्था के प्रति आश्वस्त करते हुए शाम 5 बजे तक वापसी का निश्चित प्रोग्राम बताया। रविवार होने से राकेश की छुट्टी थी फिर आज भारत वेस्टइंडीज का क्रिकेट मैच भी था। राकेश तो दस बजे से ही टीवीके सामने बैठ गया।
तीन बजते बजते घर का सारा काम निपटाकर शोभा भी टीवी के सामने बैठी मैच देख रही थी। अचानक चौंक कर चिल्ला पड़ी ‘अरे देखो तो तीन बज गए पप्पू अभी तक स्कूल से नहीं आया।’ चिंता से खड़ी होकर घबरा रही शोभा को देख मुस्कराते हुए राकेश बोला शोभा तुम अभी से भूलने लगी आज रविवार है। स्कूल की छुट्टी है ना आज।
अरे हां मैं तो भूल गई पप्पू तो पिकनिक पर गया है, 5 बजे तक आएगा। शोभा की नज़र घडी पर गई, आज खाना जल्दी बनाना पडेगा, आते ही खाना मांगेगा पप्पू। खुद ही खुद से बोलती शोभा बमुश्किल आधा घंटा टीवी के सामने बैठी। चार बजते बजते फिर किचन में जा चुकी थी। शाम की चाय का प्याला राकेश को देते हुए शोभा ने हुक्म सुनाया ‘चाय पीकर पप्पू को लेने चले जाओ।’
अभी चार बजे हैं शोभा, उनकी वापसी 5 बजे होगी। थोडा रुको धैर्य रखो। राकेश की नज़रे टीवी पर थी। आखिरी 10 ओवर का मैच बचा था। स्थिति बहुत संघर्षपूर्ण थी कोई भी टीम जीत सकती थी। आधा घंटा बीतते ना बीतते फिर शोभा की आवाज किचन से आई ‘क्या टाइम हुआ है? 5 बज गए हों तो पप्पू को लेने जाना है।’
राकेश तन्मयता से मैच में डूबा था। दस मिनट बाद ही शोभा ने आकर टीवी का स्विच ऑफ कर दिया। ‘बस आ चुकी होगी बेचारा पप्पू इंतजार कर रहा होगा, जल्दी से पहुंचो।’
लेकिन शोभा अभी पौने पांच बजे हैं। तो क्या 15 मिनट पहले नहीं जा सकते? शोभा ने राकेश की एक ना सुनी।
प्लीज शोभा 15 मिनट में मैच भी खत्म होने वाला है थोडा रुको।
कैसे बाप हो तुम? बेटा दिन भर से बाहर है। वहां आ भी गया होगा और तुम्हें मैच की पड़ी है। अच्छा बाबा जाता हूँ तुम नहीं मानोगी।
राकेश तैयार होकर स्कूल पहुंचा। पांच बज रहे थे वहां बहुत से अभिभावक पहले से अपने बच्चो का इंतजार कर रहे थे। राकेश ने देखा घडी का कांटा सवा पांच बजा रहा था। 5 मिनट बाद वहां उपस्थित प्रधान अध्यापक से लोगों ने पूछना शुरू कर दिया था। राकेश ने देखा बच्चो का इंतजार करती महिलाओं की बेचैनी बढ़ने लगी थी। प्रधान सर का कहना था टूर का मामला है घंटा आध घंटा तो आगे पीछे हो सकता है। राकेश भी सहमत था इस बात से। अगले 20 मिनट तो कुछ चुप्पी में गुजरे लेकिन अब उपस्थित लोगों में बेचैनी शुरु होने लगी थी। राकेश ने संस्था प्रमुख के चेहरे पर प्रश्नसूचक नज़र डाली।
राकेश कुछ कहता तभी उसकी नज़र सामने से पैदल दौडी चली आ रही शोभा पर पड़ी। अरे... ! तुम क्यों आई? 
क्या हुआ बस अभी तक क्यों नहीं आई? शोभा ने बजाय उत्तर देने के प्रश्न किया।
अरे तो क्या हुआ टूर पर गए हैं इतनी देर तो हो सकती है।
ऐसे कैसे हो सकता है छोटे-छोटे बच्चे हैं, आप मोबाईल से पता कीजिये। शोभा ने वहां खड़े प्रधान सर से व्यग्रता से कहा। तभी प्रधान सर का मोबाईल बज उठा। बच्चों के साथ गए शाह सर का फोन था बता रहे थे वे रास्ते में हैं गाडी पंचर हो गई है पहिया बदल रहे हैं। आधा घंटा और लगेगा।
सुनते ही शोभा के चेहरे पर हवाईयां उड़ने लगी।
क्यों चिंतित हो रही हो आ जायेगा थोड़ी देर में। राकेश ने उसे सांत्वना दी।
पर छह बज रहे हैं, अंधेरा हो गया है, छोटा बच्चा है।
‘प्लीज शोभा थोडा साहस रखो’ राकेश ने उसे समझाया।
हां वो तो ठीक है पर आज से पहले पप्पू कभी अकेला दिन भर बाहर नहीं रहा है राकेश, उसे भूख भी...तभी शोभा का मुंह खुला का खुला रह गया सामने किसी बस की झलक दिखी, शोभा ने बेचैनी से आगे बढ़ कर उस पर नज़रे जमाई। लेकिन वो कोई और बस थी। राकेश ने शोभा के कंधे पर आहिस्ता से हाथ रखा उसे लगा शोभा का ममत्व धीरे-धीरे तूफान की शक्ल ले रहा है।
लो वो बस आ गई, प्रधान सर का स्वर जैसे ही गूंजा उपस्थित सभी लोगों में हर्ष की लहर दौड गई। शोभा की डबडबाई आंखों में, टपकते आंसुओं में राकेश को अचानक कुछ मिला। घर पहुंचते ही शोभा ने पप्पू को गले से लगा लिया। भूख लगी मेरे बेटे को? देख मैंने तेरे लिए खीर बनाई है। नहीं मम्मी हमने वहां खूब खाया है, नाश्ता भी किया है।
पप्पू को खाने की जिद करती शोभा का हाथ पकड़ कर राकेश ने पूछा ‘शोभा! आज तुम्हें दिन भर से क्या हो रहा है?’
क्यों कुछ भी तो नहीं, क्या हो रहा है मुझे?
तीन बजे से तुम पप्पू पप्पू की रट लगा रही हो तुम्हें मालूम है कि उसकी बस पांच बजे तक वापस आयेगी। उसे भरपूर खाना व नाश्ता दिया गया है फिर भी उसकी भूख को लेकर चिंतित हो?
तो इसमें क्या गलत है? शोभा ने पप्पू को लाड लड़ाते हुए कहा। मेरा बेटा है।
उसके सिर्फ एक घंटा लेट आने से तुम इतनी विचलित हो गई कि पैदल ही घर से दौड़ी चली आई और जरा सी बात पर अपने आंसू बहा डाले।
आश्चर्यचकित सी शोभा बोली, तुम कहना क्या चाहते हो राकेश? 
तुम्हारी उम्र क्या है शोभा अभी? राकेश ने बड़ा विचित्र प्रश्न किया।
30 वर्ष क्यों?
और पप्पू की?
क्या क्या पूछे जा रहे हो तुम पप्पू 7 साल का है। शोभा ने राकेश की और देखा राकेश की नम होती आंखे और भर्राये गले से चौंकती शोभा ठिठक गई ‘अरे तुम्हे ये क्या हो रहा है?’
शोभा अभी तुम्हारा मातृत्व महज 7 साल पुराना है, और तुम उसके लिए इतनी दीवानी हो, तुम्हारी उम्र तीस साल की है, तुम्हारी ममता सशक्त, बुद्धि और धैर्य युक्त है।
हां लेकिन उससे क्या? ऐसा क्यों पूछ रहे हो? शोभा को अभी भी बात का सिर पैर समझ नहीं आ रहा था। 
सात साल के बेटे के लिए तुम एक युवा मां अपना धैर्य और बुद्धि छोड़कर पप्पू के लिए इतनी व्यग्र हो रही थी, जरा सी देर होने पर उसकी भूख और सुरक्षित वापसी के लिए बेचैन हो रही थी। यदि तुम्हारा मातृव 35 साल पुराना होता और तुम्हारी बढ़ती उम्र के साथ धैर्य और बुद्धि का योगदान भी कमजोर होता जाता तो क्या तुम भी मां जैसी नहीं हो जाती? 
क्या मतलब तुम्हारा? कहते कहते शोभा अचानक चौंकी! उसे समझ आने लगा राकेश क्या कहना चाहता है।
ओह...राकेश...अब मैं समझी, शोभा की आंखे फैल गई-मैं सब समझ गई राकेश-सब कुछ...मां और बेटे का रिश्ता क्या होता है, बेटा भले ही बड़ा हो जाए मां की ना तो चिंता कम होती है ना ही भावना कमजोर होती है।
अपने पति की मां के प्रति दर्शाई भावना का एहसास कर शोभा का मातृत्व उफान पर आ गया।
बस मैं यही समझाना चाहता था। राकेश ने शोभा को गले लगा लिया, दोनों पति पत्नी की आंखें आंसूओं से नम थी। पप्पू दौड़कर अन्दर खेलने लगा था तभी मांजी की आवाज गूंजी, अरे बहू खाना लगाओ भई बहुत जोरों की भूख लगी है। (सुमन सागर)  (समाप्त)

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