साहित्य सभा दिल्ली द्वारा धर्मेन्द्र की इच्छापूर्ति

फिल्मी दुनिया के ‘ही-मैन’ धर्मेन्द्र के निधन पर मीडिया ने उनके मानवीय गुणों तथा ज़रूरतमंदों की सहायता वाली रुचि पर खूब प्रकाश डाला है। उनकी संगत में फिल्म अभिनेत्रियों के अत्यंत सुरक्षित होने वाले पक्ष को उभारते हुए उनके साथ काम करने वाली साधना, शर्मीला टैगोर, लता मंगेशकर, सायरा बानो, नूतन, आशा पारेश तथा ज़ीनत अमान ही नहीं सुरैया, मीना कुमारी तथा हेमा मालिनी के नाम भी चर्चा में हैं। जहां मीना कुमारी की साझ में कभी-कभी दोनों पर कविता लिखने का शौक भी हावी था। हेमा मालिनी उनका साथ पाने की इतनी इच्छुक थी कि उनके साथ विवाह के बंधन में बंध जाने को तैयार हो गईं। फिल्मी दुनिया में शायद धर्मेन्द्र ही ऐसे सितारे रहे हैं जिन्होंने दो विवाह किए और दोनों पत्नियां एक-दूसरे से मिल-जुल कर रहीं। पहली प्रकाश कौर दो बेटों व दो बेटियों की मां बनी और दूसरी हेमा मालिनी दो बेटियों की।  
पूरा एक दशक धर्मेन्द्र तथा मीना कुमारी की जोड़ी ने भी एकट्ठे काम करके कई फिल्में दीं, परन्तु धर्मेन्द्र ने लम्बा समय हेमा मालिनी के साथ फिल्में कीं। इस जोड़ी ने ‘शोले’, ‘राजा जानी’, ‘सीता और गीता’, ‘नवां जमाना’, ‘पत्थर और पायल’, ‘तुम हसीन मैं जवां’, ‘जुगनूं’, ‘मां’, ‘चाचा भतीजा’ आदि हिट फिल्में दीं। तीन सौ फिल्मों में अहम योगदान देने वाले यह अभिनेता गांव डांगो के निवासी केवल किशन सिंह दयोल के घर जन्म लेकर सिर्फ मुम्बई की फिल्मी दुनिया पर ही नहीं छाये, अपितु बंगाली फिल्मों में भी उतने ही चहेते रहे।
यह सबब की बात है कि 3 दिसम्बर, 2011 को चले गए 114 फिल्मों से जुड़े बॉलीवुड अभिनेता देव आनंद को भी इन दिनों में याद किया जा रहा है। 1948 से 1951 तक उनकी मुहब्बत के चर्चे सुप्रसिद्ध अभिनेत्री सुरैया से चले, परन्तु वह पक्के साथी न बन सके। अंत उन्होंने फिल्म अभिनेती कल्पना कार्तिक से शादी कर ली, जिन्होंने उनकी की फिल्म टैक्सी ड्राइवर में नायिका की भूमिका निभाई थी। इस जोड़ी का भी अंतिम सांस तक अच्छा साथ निभा। शायद इसलिए कि फिल्म जगत में एकट्ठे काम करने वाले एक-दूसरे को इनती अच्छी तरह जानने लग जाते हैं कि उनमें दोबारा कभी भी किसी तरह की दरार नहीं पड़ती। 
धर्मेन्द्र के स्वभाव का एक पक्ष यह भी था कि वह किसी बात के पीछे नहीं पड़ते थे। मीडिया ने बताया है कि वह अपने पैतृक गांव डांगो में अपने पिता के नाम पर लाइब्रेरी देखना चाहते थे। एक समय पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री बेअंत सिंह ने घोषणा भी की थी कि पंजाब सरकार धर्मेन्द्र की यह इच्छा अवश्य पूरी करेगी। यह घोषणा भी राजनीति तक ही सीमित थी। धर्मेन्द्र ने पीछा नहीं किया। अब मीडिया में धर्मेन्द्र की इस भावना का ज़िक्र करते हुए उनके निधन के बाद पंजाबी साहित्य सभा नई दिल्ली ने इसे अपनी ग्रामीण लाइब्रेरी योजना के माध्यम से पूरा करने का मन बना कर वह गांव डांगो के सरपंच अमृतपाल सिंह उर्फ बॉबी के साथ तालमेल कर रही है।
याद रहे कि यह साहित्य सभा होशियारपुर की गढ़शंकर तहसील के अधीन आते गांव बहिलपुर में जन्मे स्वर्गीय हरि सिंह ने 1943 में रजिस्टर्ड करवाई थी। प्रकाशक भापा प्रीतम सिंह के प्रयासों से आज इसके पास नई दिल्ली के माता सुंदरी गुरु द्वारा के निकट अपनी इमारत है, जिसका नाम पंजाबी भवन है। यह भवन इतना बड़ा है कि इसका कुछ हिस्सा किराये पर दिया होने के कारण सभा के कार्यालय तथा बैठकों का खर्च ही नहीं निकला, अपितु सभा ने पंजाब के गांवों में 200 ग्रामीण लाइब्रेरियां स्थापित करने का प्रबंध भी कर रखा है। डांगो गांव की लाइब्रेरी धर्मेन्द्र के नाम पर चलेगी या उनके पिता केवल किशन सिंह दयोल के नाम पर, इसका फैसला गांव की पंचायत ने करना है। यह भी बताना बनता है कि इस पंजाबी भवन का शिलान्यास 1990 में तत्कालीन विदेश मंत्री इन्द्र कुमार गुजराल ने किया था और इमारत सम्पूर्ण होने के बाद इसकी आर्ट गैरली का उद्घाटन तत्कालीन प्रधानमंत्री एच.डी. देवगौड़ा ने किया था। यहां एक बड़ी लाइब्रेरी भी है, जहां तीन दैनिक समाचार पत्र, एक  दर्जन मासिक, द्वि-मासिक तथा त्रि-मासिक पत्रकाएं लगातार आते हैं। सभा के प्रबंधकों को इस बात का अफसोस है कि उन्हें धर्मेन्द्र की इच्छा का पता नहीं था, नहीं तो उन्होंने गांव डांगो का लाइब्रेरी धर्मेन्द्र के जीवित रहते चालू करके इसका उद्घाटन धर्मेन्द्र से करवाना था। 
कुछ इसी तरह का अफसोस फिल्म जगत के प्रसिद्ध लेखक-निदेशक श्रीराम राघवन को है जिनकी धर्मेन्द्र की इक्कीस नामक फिल्म दिसम्बर 2025 में सिनेमा घरों का शृंगार बननी थी। इस फिल्म को जारी करने की जानकारी देने वाला पोस्टर तो गोवा में अंतर्राष्ट्रीय फिल्म फैस्टिवल द्वारा 24 नवम्बर, 2025 को दिखाया गया परन्तु इसके जारी होने से पहले ही इसका नायक सदा के लिए बिछुड़ गया। यह बात अलग है इसमें धर्मेन्द्र की निम्नलिखित पंक्ति वाली कविता ‘इक्कीस’ के दर्शकों को धर्मेन्द्र की याद दिलाती रहेगी।
‘अज्ज भी जी करदा है पिंड अपणे नूं जावां’ श्रीराम राघवन ने इस पंक्ति वाली कविता धर्मेन्द्र से उनके खंडेलवल फार्म हाऊस में सुनी तथा इसे फिल्म ‘इक्कीस’ में पिरो लिया था। उनके अनुसार धर्मेन्द्र गांव डांगो में चूल्हे के आगे बैठ कर सरसों के साग के साथ मक्की की रोटी भी खाना चाहते थे। उनकी यह इच्छा भी अधूरी रह गई। 
हिन्दी फिल्मों में लम्बे समय तक अपने अभिनय का डंका बजाने वाला धर्म सिंह दयोल से धर्मेन्द्र बना यह सितारा तो दुनिया में नहीं रहा, परन्तु उनकी फिल्म जगत की उपलब्धियां सदा याद रहेंगी।
अंतिका
सीरत के हम गुलाम हैं सूरत हुई तो कया
सुर्ख-ओ-सफेद मिट्टी की मूर्त हुई तो क्या।
 

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