नागालैंड का सांस्कृतिक महापर्व है हॉर्नबिल फेस्टिवल
भारत की उत्तर-पूर्वी पहाड़ियों में बसे नागालैंड की पहचान जितनी उसकी पहाड़ी सुंदरता से बनती है, उससे कहीं ज्यादा यह पहचान उसकी जनजातीय संस्कृति से निर्मित होती है। नागालैंड में 17 से अधिक प्रमुख जनजातियां हैं, इन सबकी अपनी अलग-अलग भाषाएं, परंपराएं, पोशाकें, मिथक, नृत्य-गीत और जीवनशैली है। नागालैंड की इन विभिन्न जातियों को अकसर उनकी भौगोलिक दूरियों और ऐतिहासिक कारणों से एक-दूसरे से पृथक या भिन्न मना गया है लेकिन साल 2000 से शुरु हुए एक उत्सव ने इन सभी जनजातियों को इंद्रधनुषी धागे में पिरोकर एक कर दिया है और यह उत्सव है- हॉर्नबिल महोत्सव। जिसे आज पूरी दुनिया ‘फेस्टिवल ऑ़फ फेस्टिवल्स’ के नाम से जानती है। इस महोत्सव के कारण नागालैंड की सारी जनजातियां 1 से 10 दिसंबर 2025 तक जब यह वार्षिक महोत्सव सम्पन्न होता है, तब इंद्रधनुषी धागे में गुथकर एक हो जाती हैं और फिर अपनी साझी सतरंगी आभा बिखेरती हैं।
लोकस्मृति का महोत्सव : वास्तव में हॉर्नबिल महोत्सव नागालैंड की जनजातीय लोकस्मृति का आख्यान है। पिछली सदी के आखिरी दशक में नागालैंड में सरकार के स्तर पर यह महसूस किया गया कि यहां अलग-अलग जनजातियों के कारण पारंपरिक धरोहरें तेजी से आधुनिकता के दबाव में गायब होती जा रही हैं। इसलिए तत्कालीन सरकार ने नागालैंड की सभी जनजातियों के युवाओं के बीच एक साझे महोत्सव की कल्पना की, ताकि इनके बीच अपनी-अपनी जनजातियों के पारंपरिक ज्ञान और रीति-रिवाजों को अक्षुण्ण बनाये रखने के लिए हॉर्नबिल जैसे एक फेस्टिवल की परिकल्पना की। यह सोच इतनी सही और संवेदनशील साबित हुई कि महज एक दशक में ही हॉर्नबिल महोत्सव ने न केवल समूचे नॉर्थ ईस्ट को बल्कि पूरे भारत को अपनी सांस्कृतिक चुबंकत्व से दीवाना बना दिया। हॉर्नबिल महोत्सव यह नाम भारत की महान पक्षी पर रखा गया है, जो नागालैंड में खासतौर पर लोककथाओं और प्रतीकात्मकता का प्रधान हिस्सा है। दरअसल हॉर्नबिल महोत्सव एक ऐसा मंच है, जहां नागालैंड में मौजूद सभी जनजातियाें के युवा अपना पारंपरिक ज्ञान, रीति-रिवाज, जीवन के विचार और पूर्वजों की महानता को साझा करते हैं। इसलिए यह नागालैंड की सभी जनजातियों का देखते ही देखते सबसे ज़रूरी और आकर्षक महोत्सव बन गया, क्योंकि इसके जरिये वे सभी अपनी सांस्कृतिक श्रेष्ठता को मंच में प्रस्तुत करने का मौका पाते हैं।
विविधता का जीवंत प्रदर्शन : हर साल 1 से 10 दिसंबर तक नागालैंड की राजधानी कोहिमा के पास स्थित किसामा हेरिटेज विलेज में यह उत्सव न सिर्फ जनजातीय संस्कृति का शानदार प्रदर्शन होता है बल्कि इस जीवंत सांस्कृतिक दर्शन से रूबरू होने के लिए पहले समूचे नॉर्थ ईस्ट और अब पूरे भारत के साथ-साथ विदेशी लोग भी इस चुबंकीय महोत्सव का आनंद लेने के लिए नागालैंड घूमने की अपनी योजना को अकसर 1 से 10 दिसंबर के बीच में बनाते हैं। यह उत्सव नागाआें की सामुदायिक संरचना को व्यापक बनाता है। इस उत्सव में गाये जाने वाले परंपरागत युद्ध गीत और नृत्य, प्रेम विरह की भावनाएं और लकड़ी की नक्काशी लेकर रंगीन आभूषणों तक की प्रदर्शनी सबका मन मोह लेती है। मालूम हो कि इस सांस्कृतिक उत्सव हॉर्नबिल में पारंपरिक व्यंजनों के साथ-साथ हर रंग, हर राग, हर ऊर्जा में आकर्षण रह-रहकर टपकता है। इस उत्सव के दौरान हेरिटेज विलेज किसामा समूचे नागालैंड का सांस्कृतिक उत्सव बनकर सामने आता है। प्रत्येक जनजातियों का सामुदायिक घर, इस हेरिटेज विलेज में अपने पारंपरिक रूप में तैयार किया जाता है। जहां इस दौरान आग जलती है, लोग इसके इर्द-गिर्द बैठकर कहानियां सुनाते हैं और देश-विदेश से आये पर्यटक नागालैंड की जनजातियों की अनकही बारीकियां देखते, समझते हैं।
एकता की डोर : नागालैंड का बहुवर्णिय समाज इस सांस्कृतिक महोत्सव के जरिये आपस में घुल मिल गया है। हॉर्नबिल महोत्सव ने नागालैंड की सभी जनजातियों को एक साझे पुल के जरिये जोड़ दिया है। पहले तो अलग-अलग जनजातियां एक दूसरे के अस्तित्व को नहीं स्वीकारती थीं और हर हाल में अपना वर्चस्व बनाने की कोशिश रहती थी। इस महोत्सव के शुरू होने के बाद अब उन सभी जनजातियों में पूरे साल ये होड़ रहती है कि हॉर्नबिल महोत्सव में कौन सी जनजाति अपनी सांस्कृतिक प्रस्तुति से सबका मन मोह लेगी और बाकियों पर हावी होगी। इस प्रतिस्पर्धा के कारण नागालैंड की जनजातीय संस्कृति जो 2000 के पहले डूबने के कगार पर थी, अब पूरे नागालैंड में सभी समुदायों की अपनी-अपनी संस्कृति विकास के चरम पर है। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि इस पर्व ने किस तरीके से यहां के जनजातीय समाज को आपस में जोड़ दिया है।
परंपरा और आधुनिकता का संगम : हॉर्नबिल केवल अतीत का उत्सव नहीं है। यहां अपने अतीत का वैभव प्रस्तुत करने के अलावा युवा रॉक कंसर्ट, बाइक रैली, एडवेंचर स्पोर्ट्स, फैशन शो, फोटोग्राफी एक्सपोर्ट और फूड फेस्ट का बढ़-चढ़कर प्रदर्शन करते हैं और आनंद लेते हैं। यह महोत्सव आधुनिकता के साथ-साथ अपनी परंपराओं का उत्सव मनाता है और अपनी परंपराओं को आधुनिकता का पूरक बनाता है। वास्तव में यह पर्व नागालैंड की विभिन्न जनजातियों को सबके बीच अपनी आधुनिक और पारंपरिक पहचान को मजबूत करता है। इस महोत्सव के शुरू होने के बाद जिस तरह से नागालैंड में जनजातियों के बीच भाईचारा, एकता और अपने को श्रेष्ठ साबित करने की आंतरिक प्रतिस्पर्धा को बढ़ाया है, इसके कारण इस सांस्कृतिक महोत्सव ने नागालैंड को सांस्कृतिक रूप से पुनर्जीवित किया है।
आर्थिक दृष्टि से भी है महत्वपूर्ण : नागालैंड का बड़ा हिस्सा आज भी ग्रामीण और हस्तशिल्प आधारित अर्थव्यवस्था पर चलता है। हॉर्नबिल महोत्सव यहां के स्थानीय कारीगरों, बुनकरों, किसानों और पकवान बनाने वालों तथा लकड़ी के शिल्पकारों के लिए जितनी साझी खुशियां लाता है, उससे कहीं ज्यादा साझा कारोबार लाता है। इस दौरान यहां देश-विदेश से लाखों की तादाद में सैलानी इस महोत्सव को देखने आते हैं। इससे स्थानीय होटलों, ट्रांसपोर्ट और होम स्टे की कमाई कई गुना हो जाती है। इस तरह देखें तो हॉर्नबिल महोत्सव नागा जनजातियों की सांस्कृतिक विरासत का सिर्फ संरक्षण ही नहीं करता बल्कि उसे भविष्य की पीढ़ियों के बीच पहुंचाने का जीवंत माध्यम भी है।
-इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर





